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देखञा जञाए , तो दल-बदल कञानून के रहते यह संभव ही नहीं है कि कोई दलित-आवदिञासी विधञायक यञा संसद अपनी मजटी से वोट कर सके । हमने देखञा है कि कुछ सञाि पहले लोकसभञा में दलित-आवदिञासी सञांसदों ने एक फोरम बनञायञा थञा , इन िगगो के अधिकञारों के लिए , पार्टी िञाइन से ऊपर उठकर । दल-बदल कञानून के कञारण वह बेअसर रहञा है । आंबेडकर दूरदशटी नेतञा थे उनहें अहसञास थञा कि इन समूहों को बरञाबरी कञा दजञा्य पञाने के लिए बहुत समय लगेगञा , वे यह भी जञानते थे कि सिर्फ आरक्ण से सञामञावजक न्याय सुनिश्रित नहीं कियञा जञा सकतञा । हमने देखञा है कि पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिह , बञाबू जगजीवन रञाम , मञायञािती जी , आदि दलित-पिछड़े नेतञाओं पर किस तरह के जुमले और फिकरे गढ़े जञाते रहे हैं ।
डञा . आंबेडकर कञा पूरञा जोर दलित-वंचित िगषों में शिक्षा के प्रसञार और रञाजनीतिक चेतनञा पर रहञा है । आरक्ण उनके लिए एक सीमञाबद् तरकीब थी । दुभञा्यगय से आज उनके अनुयञायी इन बञातों को भुिञा चुके है । बड़ा सिञाि यह है कि सितंत्रा के 67 सञािों में भी अगर भञारतीय समञाज इन दलित-आवदिञासी समूहों को आतमसञात नहीं कर पञायञा है , तो जरूरत है पूरे संवैधञावनक प्रञािधञानों पर नई सोच के सञाथ देखने की , तञांकि इन िगषों को सञामञावजक बरञाबरी के सतर पर खड़ा कियञा जञा सके । आंबेडकर कञा मत थञा कि राष्ट्र वयषकतयों से होतञा है , वयषकत
के सुख और समृद्धि से राष्ट्र सुखी और समृद्ध बनतञा है । डञा . आंबेडकर के विचञार से राष्ट्र एक भञाि है , एक चेतनञा है , जिसकञा सबसे छोटञा घटक वयषकत है और वयषकत को सुसंस्कृत तथञा राष्ट्रीय जीवन से जुड़ा होनञा चञावहए । राष्ट्र को सिगोपरि मञानते हुए आंबेडकर वयषकत को प्रगति कञा केद्र बनञानञा चञाहते थे । वह वयषकत को सञाधय और रञाजय को सञाधन मञानते थे । डञा . आंबेडकर ने इस देश की सञामञावजक-सञांस्कृतिक वसतुगत षसथवत कञा सही और सञाफ आंकलन कियञा है । उनहोंने कहञा कि भञारत में किसी भी आर्थिक- रञाजनीतिक क्रांति से पहले एक सञामञावजक- सञांस्कृतिक क्रांति की दरकञार है ।
पंडित दीनदयञाि उपञाध्याय ने भी अपनी विचञारधञारञा में ‘ अंतयोदय ’ की बञात कही है । अंतयोदय यञावन समञाज की अंतिम सीढ़ी पर जो बैठञा हुआ है , सबसे पहले उसकञा उदय होनञा चञावहए । राष्ट्र को सशकत और स्वावलंबी बनञाने के लिए समञाज की अंतिम सीढ़ी पर जो लोग है उनकञा सोशियो इकोनॉमिक डेवलपमेंट करनञा होगञा । किसी भी राष्ट्र कञा विकञास तभी अर्थपूर्ण हो सकतञा है जब भौतिक प्रगति के सञाथ सञाथ आधयञाषतमक मूलयों कञा भी संगम हो । जहञां तक भञारत की विशेषतञा , भञारत कञा कलचर , भञारत की संस्कृति कञा सिञाि है तो यह वि्ि की बेहतर संस्कृति है । भञारतीय संस्कृति को समृद् और श्रे्ठ बनञाने में सबसे बड़ा योगदञान दलित समञाज के लोगों कञा है । इस देश में आदि कवि
कहिञाने कञा सम्मान केवल महर्षि वाल्मिकी को है , शास्त्ों के ज्ञातञा कञा सम्मान वेदव्यास को है । भञारतीय संविधञान के वनमञा्यण कञा श्रेय आंबेडकर को जञातञा है ।
वर्तमञान में कुछ देशी-विदेशी शषकतयञां हमञारी इन सञामञावजक-संस्कृतिक धरोहरों को हिंदृति से अलग करने की योजनञाएं बनञा रही है । मार्क्स की पू ंजीिञादी वयिस्था में जहञां मुठ्ी भर धनपति शोषक की भूमिकञा में उभरतञा है वहीं जञावत और नसिभेद वयिस्था में एक पूरञा कञा पूरञा समञाज शोषक तो दूसरञा शोषित के रुप में नजर आतञा है । जिसकञा समञाधञान आंबेडकर सशकत हिंदू समञाज में बतञाते है कयोंकि वह जञानते थे कि हिंदू धर्म न तो इसे मञानने िञािों के लिए अफीम है और न ही यह किसी को अपनी जकड़न में लेतञा है । वसतुतः यह मञानव को पूर्ण सितंत्तञा देने िञािञा है । यह चिरस्थायी रुप से विकञास , संपन्नतञा तथञा वयषकत व समञाज को संपूर्णतञा प्रदञान करने कञा एक सञाधन है । डञा . आंबेडकर के पञास भञारतीय समञाज कञा आंखों देखञा अनुभव थञा , तीन हजञार िषषों की पीड़ा भी थी । इसलिए आंबेडकर सही अथषों में भञारतीय समञाज की उन गहरी वसतुवन्ठ सच्चञाइयों को समझ पञाते हैं , जिनहें कोई मञाकस्यिञादी नहीं समझ सकतञा ।
डञा . आंबेडकर कञा सपनञा थञा कि एक जञावतविहीन , वर्गविहीन , सञामञावजक , आर्थिक , रञाजनीतिक , लैंगिक और सञांस्कृतिक विषमतञाओं से मुकत समञाज । ऐसञा समञाज बनञाने के लिए हिंदू समञाज कञा सशकतीकरण सबसे पहली प्रञाथमिकतञा होगी । यही आंबेडकर की सोच और संघर्ष कञा सञार है । आज आंबेडकर इस देश की संघर्षशील और परिवर्तनकञारी समूहों के हर महतिपूर्ण सिञाि पर प्रञासंगिक हो रहे हैं , इसी कञारण वह विकञास के लिए संघर्ष के प्रेरणञा स्ोत भी बन गए है । मेरञा मञाननञा है कि हिंदुति के सहञारे ही समञाज में एक जन-जञागरण शुरू कियञा जञा सकतञा है । जिसमें हिंदू अपने संकीर्ण मतभेदों से ऊपर उठकर सियं को विरञाट्-अखंड हिंदुस्तानी समञाज के रूप में संगठित कर भञारत को एक महञान राष्ट्र बनञा सकते हैं । �
iQjojh 2024 25