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हिंददू समाज और डा . आंबेडकर

वर्तमञान समय में रञाजनीतिक सुविधञा के हिसञाब से हर कोई डञा . आंबेडकर को अपने अपने तरीके से परिभञावषत करने में लगञा हुआ है , कुछ उनहें देवतञा बनञाने में लगे हैं तो कुछ उनहें केवल दलितों की बपौती मञानते हैं और कई उनहें हिनदुओं के विरोधी नञायक के रूप में रखते हैं । कुछ लोग तो आंबेडकर के धर्म-परिवर्तन के सही मर्म को समझे बिनञा ही आज दलितों को हिंदुओं से अलग कर उनहें एक धर्म के रूप में रखने की मञांग करने लगे हैं ।

कोई इस पर बञात ही नहीं करनञा चञाहतञा कि डञा . आंबेडकर कञा पूरञा संघर्ष हिंदू समञाज ओर राष्ट्र के सशकतीकरण कञा ही थञा । डञा .. आंबेडकर के चिनतन और दृष्ट को समझने के लिए यह ध्यान रखनञा जरूरी है कि वह अपने चिनतन में कहीं भी दुराग्रही नहीं है । उनके चिनतन में जड़तञा नहीं है । डञा . आंबेडकर कञा दर्शन समञाज को गतिमञान बनञाए रखने कञा है । विचञारों कञा नञािञा बनञाकर उसमें समञाज को डुबञाने-िञािञा विचञार नहीं है । डञा . आंबेडकर मञानते थे कि समञानतञा के बिनञा समञाज ऐसञा है , जैसे बिनञा हथियञारों के सेनञा । समञानतञा को समञाज के स्थाई वनमञा्यण के लिये धञावम्यक , सञामञावजक , रञाजनीतिक , आर्थिक एवं शैक्वणक क्ेत् में तथञा अनय क्ेत्ों में िञागू करनञा आि्यक है ।
भञारत के सर्वांगीण विकञास और राष्ट्रीय पुनरुत्थान के लिए सबसे अधिक महतिपूर्ण विषय हिंदू समञाज कञा सुधञार एवं आतम-उद्धञार है । हिंदू धर्म मञानव विकञास और ई्िर की प्राप्ति कञा स्ोत है । किसी एक पर अंतिम सतय की मुहर लगञाए बिनञा सभी रुपों में सतय को सिीकञार
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