प्रभावित इलाकों का दौरा किया । नारायणगंज और चंटगाँव के बीच रेल पटरियों पर तनदगोष हिंदुओं की हतयाओं ने मुझे अंदर से झकझोर दिया । मैंने पूिनी बंगाल के मुखयमंत्री से मुलाकात कर दंगा रोकने के लिये जरूरी कदमों को उठाने का आग्ह किया । 20 फरवरी 1950 को मैं बरिसाल पहुंचा । यहाँ की घटनाओं के बारे में जानकर में चकित था । बड़ी संखया में हिंदुओं को जिंदा जला दिया गया और महिलाओं से बलातकार किया गया । मैंने जिले के सभी दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया , मधापाशा के जमींदार के घर में 200 लोगो की मौत हुई और 40 घायल थे । मुलादी में एक प्रतयक्षदशनी ने बताया कि वहां 300 हिंदुओं का कतलेआम हुआ । मैंने खुद वहां नर कंकाल देखे जिनहें गिद्ध और कुत्े खा रहे थे । वहां पुरुषों की हतयाओं के बाद लड़तकयों को आपस में बाँट लिया गया ।
राजापुर में 60 लोग मारे गये । बाबूगंज में हिंदुओं की सभी दुकानों को लूटकर आग लगा दिया गया । पूिनी बंगाल के दंगे में 10,000 से अधिक हिंदुओं की हतयाएं हुई । अपने आसपास महिलाओं और बच्ो को विलाप करते हुए देख मेरा दिल पिघल गया और मैंने अपने आपसे पूछा , कया मै इ्लाम के नाम पर पातक्रान आया था ।”
दलितों को हिंददू होने की मिली सजा
मंडल ने अपने तयाग पत्र में आगे लिखा , “ पूिनी बंगाल में आज कया हालात हैं ? विभाजन के बाद 5 लाख हिंदुओं ने देश छोड़ दिया है । मुसलमानों द्ारा हिंदू वकीलों , हिंदू डॉकटरों , हिंदू वयापारियों , हिंदू दुकानदारों के बहिषकार के बाद उनहें आजीविका के लिये पलायन करने के लिये मजबूर करना पड़ा । मुझे मुसलमानों द्ारा हिंदुओं की बतच्यों के साथ बलातकार की लगातार जानकारी मिल रही है । हिंदुओं द्ारा बेचे गये सामान की मुसलमान पूरी कीमत नहीं दे रहे हैं । पातक्रान में इस समय न कोई नयाय है , न कानून का राज , इसीलिए हिंदू अतयतिक चिंतित हैं । पूिनी पातक्रान के अलावा पसशचमी पातक्रान में भी ऐसे ही हालात हैं । विभाजन के बाद पसशचमी पंजाब में लगभग एक लाख पिछड़ी जाति के लोग थे उनमे से बड़ी संखया को बलपूर्वक इ्लाम में परिवर्तित किया गया है । मुझे एक तल्ट मिली है जिसमे 363 मंदिरों और गुरूद्ारे मुस्लमों के कबजे में हैं । इनमे से कुछ को मोची की दुकान , कसाईखाना और होटलों में तबदील कर दिया है , मुझे जानकारी मिली है सिंध में रहने वाली पिछड़ी जाति की बड़ी संखया को जबरन मुसलमान बनाया गया है । इन सबका कारण एक ही है । हिंदू धर्म को मानने के अलावा इनकी कोई गलती नहीं है ।”
पाकिस्ामनयों ने रखा मंडल के कांधे पर बंददूक जोगेंरि नाथ मंडल ने अंत में लिखा ,
“ पातक्रान की पूर्ण र्िीर तथा उस निर्दयी
एवं कठोर अनयाय को एक तरफ रखते हुए मेरा अपना अनुभव भी कम दुखदायी और पीड़ादायक नहीं है । आपने प्रधानमंत्री और संसदीय पाटनी के पद का उपयोग करते हुए मुझसे एक वकरवय जारी करवाया था , जो मैंने 8 सितमबर को दिया था । आप जानते हैं मेरी ऐसी मंशा नहीं थी कि मैं ऐसा असतय और असतय से भी बुरा अर्धसतय वकरवय जारी करूं । जब तक मै मंत्री के रूप में आपके साथ और आपके नेतृति में काम कर रहा था मेरे लिये आपके आग्ह को ठुकरा देना मुमकिन नहीं था , पर अब मैं और अधिक झूठ दिखावा तथा असतय को अपनी अंतरातमा पर नहीं थोप सकता । मैंने अब निशचय किया कि मंत्री के तौर पर अपना इ्रीिा दूँ । मुझे उममीद है आप बिना किसी देरी के इसे ्िीकार करेंगे । आप इ्लातमक ्टेट के उद्ेशय को धयान में रखते हुए अब इस पद को किसी को भी देने के लिये ्िरंत्र हैं ।”
पाकिस्ान में धोखा खाकर भारत लौटे
भारत विभाजन के बाद मंडल पातक्रान के संविधान सभा के सद्य और अ्थायी अधयक्ष बने और पातक्रान के प्रथम कानून और श्म मंत्री बने । 1947 से 1950 तक वह पातक्रान की ततकालीन राजधानी कराची में रहे , 1950 में पातक्रान के ततकालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को अपना इ्रीिा देने के बाद मंडल वापस भारत लौट आये । अपने इ्रीिे में मंडल ने पातक्रानी प्रशासन के हिंदू विरोधी कायषों का वि्रृर हवाला दिया । उनहोंने अपने तयाग पत्र में सामाजिक अनयाय और अलपसंखयकों के प्रति पक्षपातपूर्ण वयिहार से संबंधित घटनाओं का वि्रृर उललेख किया । पातक्रान में मंत्रिमंडल से इ्रीिे के बाद जोगेंरि नाथ मंडल भारत आ गये । कुछ वर्ष गुमनामी की जिनदगी जीने के बाद 5 अकटूबर , 1968 को पसशचम बंगाल में उनहोंने अंतिम सांस ली । �
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