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डॉ . विवेक आर्य

िरेद और शूद्र tk

तिवाद स्य समाज के माथे पर एक कलंक है । जिसके कारण मानव मानव के प्रति न केवल असंवेदनशील बन गया है , अपितु शत्रु समान वयिहार करने लग गया है । सम्र मानव जाति ईशिर कि संतान है । यह तथय जानने के बाद भी छुआ छूत के नाम पर , ऊँच नीच के नाम पर , आपस में भेदभाव करना अज्ानता का बोधक
है । अनेक लेखकों का विचार है कि जातिवाद का मूल कारण वेद और मनु ्मृति है , परनरु वैदिक काल में जातिवाद और प्राचीन भारत में छुआछूत के अस्रति से तो विदेशी लेखक भी ्पषट रूप से इंकार करते है । [ It is admitted on all hands by all western scholars also that in the most ancient . Vedic religion , there was no caste system . — ( Prof . Max Muller writes in
‘ Chips from a German Workshop ’ Vol . 11 , P . 837 )]
वैदिक काल में वर्ण वयि्था प्रधान थी जिसके अनुसार जैसा जिसका गुण वैसे उसके कर्म , जैसे जिसके कर्म वैसा उसका वर्ण । जातिवाद रूपी विष वृक्ष के कारण हमारे समाज को कितने अभिशाप झेलने पड़े । जातिवाद के कारण आपसी मतभेदों में वृद्धि हुई , सामाजिक एकता और संगठन का नाश हुआ जिसके कारण विदेशी हमलावरों का आसानी से निशाना बन गये , एक संकीर्ण दायरे में वर-वधू न मिलने से बेमेल विवाह आरमभ हुए जिसका परिणाम दुर्बल एवं गुण रहित संतान के रूप में निकला , आपसी मेल न होने के कारण विद्या , गुण , सं्कार , वयिसाय आदि में उन्ति रुक गई । शंका 1 . जाति और वर्ण में कया अंतर है ? समाधान - जाति का अर्थ है उद्भव के आधार पर किया गया िगनीकरण । नयाय सूत्र में लिखा है समानप्रसवासतमका जाति : ( नयाय दर्शन- 2 / 2 / 71 ) अर्थात जिनके प्रसव अर्थात जनम का मूल सामान हो अथवा जिनकी उतपतत् का प्रकार एक जैसा हो वह एक जाति कहलाते है ।
आककृतिर्जातिलिङ्ाखया- नयाय दर्शन- 2 / 2 / 65 अर्थात जिन वयसकरयों कि आककृति ( इसनरियादि ) एक समान है , उन सब की एक जाति है ।
हर जाति विशेष के प्राणियों के शारीरिक अंगों में एक समानता पाई जाती है । सृसषट का नियम है कि कोई भी एक जाति कभी भी दूसरी जाति में परिवर्तित नहीं हो सकती है और न ही तभन् तभन् जातियाँ आपस में संतान को उतपन् कर सकती है । इसलिए सभी जातियाँ ईशिर निर्मित है नाकि मानव निर्मित है । सभी मानवों कि उतपतत् , शारीरिक रचना , संतान उतपतत् आदि एक समान होने के कारण उनकी एक ही जाति हैं और वह है मनुषय ।
वर्ण – ब्ाह्मण , क्षत्रिय , वैशय और शूरि के लिए प्रयुकर किया गया " वर्ण " शबद का प्रयोग किया जाता है । वर्ण का मतलब है जिसका वरण किया जाए अर्थात जिसे चुना जाए । वर्ण को चुनने का आधार गुण , कर्म और ्िभाव होता
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