को गायत्री मंत्र की दीक्षा देने के उपरांत ही उसका वा्रतिक मनुषय जनम होता है | यह जनम मृतयु और विनाश से रहित होता है । ज्ानरुपी जनम में दीक्षित होकर मनुषय मुसकर को प्रापर कर लेता है | यही मनुषय का वा्रतिक उद्ेशय है | सुशिक्षा के बिना मनुषय ‘ मनुषय ’ नहीं बनता ।
इसलिए ब्ाह्मण , क्षत्रिय , वैशय होने की बात तो छोडो जब तक मनुषय अचछी तरह शिक्षित नहीं होगा तब तक उसे मनुषय भी नहीं माना जाएगा ।
2 / 146 : जनम देने वाले पिता से ज्ान देने वाला आचार्य रूप पिता ही अधिक बड़ा और
माननीय है , आचार्य द्ारा प्रदान किया गया ज्ान मुसकर तक साथ देता हैं । पिता द्ारा प्रापर शरीर तो इस जनम के साथ ही नषट हो जाता है ।
2 / 147 : माता-पिता से उतपन् संतति का माता के गर्भ से प्रापर जनम साधारण जनम है । वा्रतिक जनम तो शिक्षा पूर्ण कर लेने के उपरांत ही होता है ।
अत : अपनी श्ेषटरा साबित करने के लिए कुल का नाम आगे धरना महार्षि मनु के अनुसार अतयंर मूर्खतापूर्ण ककृतय है । अपने कुल का नाम आगे रखने की बजाए वयसकर यह दिखा दे कि वह कितना शिक्षित है तो बेहतर होगा ।
10 / 4 : ब्ाह्मण , क्षत्रिय और वैशय , ये तीन
वर्ण विद्याधययन से दूसरा जनम प्रापर करते हैं । विद्याधययन न कर पाने वाला शूरि , चौथा वर्ण है । इन चार िरषों के अतिरिकर आयषों में या श्ेषठ मनुषयों में पांचवा कोई वर्ण नहीं है । इस का मतलब है कि अगर कोई अपनी शिक्षा पूर्ण नहीं कर पाया तो वह दुषट नहीं हो जाता । उस के ककृतय यदि भले हैं तो वह अचछा इनसान कहा जाएगा और अगर वह शिक्षा भी पूरी कर ले तो वह भी तद्ज गिना जाएगा । अत : शूरि मात्र एक विशेषण है , किसी जाति विशेष का नाम नहीं ।
‘ नीच ’ कुल में जनमें वयसकर का तिर्कार नहीं :
किसी वयसकर का जनम यदि ऐसे कुल में हुआ हो , जो समाज में आर्थिक या अनय दृषटी से पनप न पाया हो तो उस वयसकर को केवल कुल के कारण पिछड़ना न पड़े और वह अपनी प्रगति से वंचित न रह जाए , इसके लिए भी महार्षि मनु ने नियम निर्धारित किए हैं ।
4 / 141 : अपंग , अशिक्षित , बड़ी आयु वाले , रूप और धन से रहित या निचले कुल वाले , इन को आदर और / या अधिकार से वंचित न करें कयोंकि यह किसी वयसकर की परख के मापदणड नहीं हैं ।
प्राचीन इतिहास में वर्ण परिवर्तन के उदाहरण
:
ब्ाह्मण , क्षत्रिय , वैशय और शूरि वर्ण की सैद्धांतिक अवधारणा गुणों के आधार पर है , जनम के आधार पर नहीं | यह बात तसि्फ कहने के लिए ही नहीं है , प्राचीन समय में इस का वयिहार में चलन था । जब से इस गुणों पर आधारित वैज्ातनक वयि्था को हमारे तदगभ्रमित पुरखों ने मूर्खतापूर्ण जनमना वयि्था में बदला है , तब से ही हम पर आफत आ पड़ी है जिस का सामना आज भी कर रहें हैं ।
( a ) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे । परनरु उच् कोटि के ब्ाह्मण बने और उनहोंने ऐतरेय ब्ाह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की । ऋगिेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्ाह्मण अतिशय आवशयक माना जाता है ।
( b ) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे । जुआरी और हीन चरित्र भी थे । परनरु बाद में उनहोंने अधययन
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