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जनम से कोई समबनि नहीं है ।
2 / 168 : जो ब्ाह्मण , क्षत्रिय या वैशय वेदों का अधययन और पालन छोड़कर अनय विषयों में ही पररश्म करता है , वह शूरि बन जाता है | और उसकी आने वाली पीतढ़यों को भी वेदों के ज्ान से वंचित होना पड़रा है | अतः मनु्मृति के अनुसार तो आज भारत में कुछ अपवादों को छोड़कर बाकी सारे लोग जो भ्रषटाचार , जातिवाद , ्िाथ्त साधना , अनितिशिास , विवेकहीनता , लिंग-भेद , चापलूसी , अनैतिकता इतयातद में लिपर हैं – वे सभी शूरि हैंI
2 / १२६ : भले ही कोई ब्ाह्मण हो , लेकिन अगर वह अभिवादन का शिषटरा से उत्र देना नहीं जानता तो वह शूरि ( अशिक्षित वयसकर ) ही है । शूरि भी पढ़ा सकते हैं : शूरि भले ही अशिक्षित हों तब भी उनसे कौशल और उनका विशेष ज्ान प्रापर किया जाना चाहिए ।
2 / 238 : अपने से नयून वयसकर से भी विद्या को ग्हण करना चाहिए और नीच कुल में जनमी उत्म ्त्री को भी पत्ी के रूप में ्िीकार कर लेना चाहिए ।
2 / 241 : आवशयकता पड़ने पर अ-ब्ाह्मण से भी विद्या प्रापर की जा सकती है और शिषयों को पढ़ाने के दायिति का पालन वह गुरु जब तक तनददेश दिया गया हो तब तक करे । ब्ाह्मणति का आधार कर्म : महार्षि मनु की वर्ण वयि्था जनम से ही कोई वर्ण नहीं मानती | मनु्मृति के अनुसार माता- पिता को बच्ों के बालयकाल में ही उनकी रूचि और प्रवृतत् को पहचान कर ब्ाह्मण , क्षत्रिय या वैशय वर्ण का ज्ान और प्रशिक्षण प्रापर करने के लिए भेज देना चाहिए ।
कई ब्ाह्मण माता-पिता अपने बच्ों को ब्ाह्मण ही बनाना चाहते हैं परंतु इस के लिए वयसकर में ब्ह्मणोचित गुण , कर्म , ्िभाव का होना अति आवशयक है | ब्ाह्मण वर्ण में जनम लेने मात्र से या ब्ाह्मणति का प्रशिक्षण किसी गुरुकुल में प्रापर कर लेने से ही कोई ब्ाह्मण नहीं बन जाता , जब तक कि उसकी योगयरा ,
ज्ान और कर्म ब्ह्मणोचित न हों ।
2 / 157 : जैसे लकड़ी से बना हाथी और चमड़े का बनाया हुआ हरिण तसि्फ नाम के लिए ही हाथी और हरिण कहे जाते हैं वैसे ही बिना पढ़ा ब्ाह्मण मात्र नाम का ही ब्ाह्मण होता है ।
2 / 28 : पढने-पढ़ाने से , चिंतन-मनन करने से , ब्ह्मचर्य , अनुशासन , सतयभाषण आदि व्रतों का पालन करने से , परोपकार आदि सतकम्त करने से , वेद , विज्ान आदि पढने से , कर्तवय का पालन करने से , दान करने से और आदशषों के प्रति समर्पित रहने से मनुषय का यह शरीर ब्ाह्मण किया जाता है ।
शिक्षा ही वा्रतिक जनम :
महार्षि मनु के अनुसार मनुषय का वा्रतिक जनम विद्या प्रासपर के उपरांत ही होता है | जनमरः प्रतयेक मनुषय शूरि या अशिक्षित है | ज्ान और सं्कारों से ्ियं को परिष्कृत कर योगयरा हासिल कर लेने पर ही उसका दूसरा जनम होता है और वह तद्ज कहलाता है | शिक्षा प्रासपर में असमर्थ रहने वाले शूरि ही रह जाते हैं |
यह पूर्णत : गुणवत्ा पर आधारित वयि्था है , इसका शारीरिक जनम या अनुवांशिकता से कोई लेना-देना नहीं है |
2 / 148 : वेदों में पारंगत आचार्य द्ारा शिषय
28 flracj 2022