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क्या महयात्षि मनु जयातिवयाद के पोषक थे ?

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नु्मृति जो सृसषट में नीति और धर्म ( कानून ) का निर्धारण करने वाला सबसे पहला ग्ंथ माना गया है , उस को घोर जाति प्रथा को बढ़ािा देने वाला भी बताया जाता है । आज स्थति यह है कि मनु्मृति वैदिक संस्कृति की सबसे अधिक विवादित पु्रक बना दी गई है । पूरा का पूरा दलित आनदोलन मनुवाद के विरोध पर ही खड़ा हुआ है । धयान देने वाली बात यह है कि महार्षि मनु की निंदा करने वाले इन लोगों ने मनु्मृति को कभी गंभीरता से पढ़ा भी नहीं है । ्िामी दयानंद द्ारा आज से 140 वर्ष पूर्व यह सिद्ध कर दिया था कि मनु्मृति में मिलावट की गई है । इस कारण से ऐसा प्रतीत होता है कि मनु्मृति वर्ण वयि्था की नहीं अपितु जातिवाद का
समर्थन करती है । महार्षि मनु ने सृसषट का प्रथम संविधान मनु ्मृति के रूप में बनाया था । कालांतर में इसमें जो मिलावट हुई उसी के कारण इसका मूल सनदेश जो वर्णवयि्था का समर्थन करना था , के ्थान पर जातिवाद प्रचारित हो गया ।
मनु्मृति पर दलित समाज यह आक्षेप लगाता है कि महार्षि मनु ने जनम के आधार पर जातिप्रथा का निर्माण किया और शूरिों के लिए कठोर दंड का विधान किया और ऊंची जाति विशेषरूप से ब्ाह्मणों के लिए विशेष प्रावधान का विधान किया । मनु्मृति उस काल की है , जब जनमना जाति वयि्था के विचार का भी कोई अस्रति नहीं था । अत : मनु्मृति जनमना समाज वयि्था का कही पर भी समर्थन नहीं
करती । महार्षि मनु ने मनुषय के गुण- कर्म – ्िभाव पर आधारित समाज वयि्था की रचना कर के वेदों में परमातमा द्ारा दिए गए आदेश का ही पालन किया है ( देखें – ऋगिेद- 10 / 10 / 10 / 11 / 12 , यजुिदेद-31 / 10-11 , अथर्ववेद-19 / 6 / 5-6 ) |
यह वर्ण वयि्था है । वर्ण शबद “ वृञ ” धातु से बनता है जिसका मतलब है चयन या चुनना और सामानयर : प्रयुकर शबद वरण भी यही अर्थ रखता है । मनु्मृति में वर्ण वयि्था को ही बताया गया है और जाति वयि्था को नहीं इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि मनु्मृति के प्रथम अधयाय में कहीं भी जाति शबद ही नहीं है बसलक वहां चार िरषों की उतपतत् का वर्णन है । यदि जाति का इतना ही महत्ि होता तो
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