पक गया वो दोबारा चाक पर नहीं चढ़ता है । कयूं नृप-नारी नींदिये , कयूं पनिहारिन कौ मान । मांग संवारै पील कौ , या नित उठि सुमिरै राम ।। अर्थ : कबीरदास कहते हैं कि रानी को यह नीचा ्थान कयूं दिया गया और पनिहारिन को इतना ऊंचा ्थान कयूं दिया गया ? इसलिये कि रानी तो अपने राजा को रिझाने के लिये मांग संवारती है , श्ृंगार करती है लेकिन वह पनिहारिन नितय उठकर अपने राम का सुमिरन करती है । दुखिया भूखा दुख कौं , सुखिया सुख कौं झूरि । सदा अजंदी राम के , जिनि सुखदुख गेलहे दूरि ।। अर्थ : कबीर कहते हैं कि दुखिया भी मर रहा है और सुखिया भी- एक बहुत अधिक दुख के कारण और अधिक सुख के कारण । लेकिन रामजन सदा ही आनंद में रहते हैं । कयोंकि उनहोंने सुख और दुख दोनों को दूर कर दिया है । कबीर का तू चिंतवे , का तेरा चयंतया होई । अणचंतया हरि जी करै , जो तोहि चयंत न होई ।। अर्थ : कबीर कहते हैं तू कयों बेकार की चिंता कर रहा है , चिंता करने से होगा कया ? जिस बात को तूने कभी सोचा ही नहीं उसे अचिंतित को भी तेरा हरि पूरा करेगा । कबीर सब जग हंडिया , मांदल कंधि चढ़ाइ । हरि बिन अपना कोऊ नहीं , देखे ठोंकि बजाइ ।। अर्थ : संत कबीर कहते हैं कि मैं सारे संसार में एक मंदिर से दूसरे मंदिर का चककर काटता फिरा । बहुत भटका । कंधे पर कांवड़ रख पूजा की सामग्ी के साथ । सभी देवी-देवताओं को देख लिया , ठोक-बजाकर परख लिया । लेकिन हरि को छोड़कर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे मैं अपना कह सकूं । कबीर संसा कोउ नहीं , हरि सूं लागया हेत । काम क्ोि सूं झूझड़ा , चौड़े मांड्ा खेत ।। अर्थ : कबीर कहते हैं कि मेरे तचत् में कुछ भी संशय नहीं रहा , हरि से लगन जुड़ गयी । इसीलिये चौड़े में आकर रणक्षेत्र में काम और क्ोि से जूझ रहा हूं । मैं जाणयूं पढ़िबो भलो , पढ़िबो से भलो जोग । राम नाम सूं प्ीलत करी , भल भल नीयौ लोग ।। अर्थ : कबीर कहते हैं- पहले मैं समझता था कि पोथियों का पढ़ा बड़ा आदमी है । फिर सोचा कि पढ़ने से योग साधन कहीं अचछा है । लेकिन अब इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि राम नाम से ही सच्ी प्रीति की जाये तो ही उद्धार संभव है । राम बुलावा भेजिया , दिया कबीरा रोय । जो सुख साधु संग में , सो बैकुंठ न होय ।। अर्थ : कबीर कहते हैं कि जब मेरे को लाने के लिये राम ने बुलावा भेजा तो मुझसे रोते ही बना । कयोंकि जिस सुख की अनुभूति साधुओं के सतसंग में होती है वह बैकुंठ में नहीं ।
वैध मुआ रोगी मुआ , मुआ सकल संसार । एक कबीरा ना मुआ , जेहि के राम अधार ।। अर्थ : कबीरदास कहते हैं कि वैद्य , रोगी और संसार नाशवान होने के कारण ही उनका रूप-रूपांतर हो जाता है । लेकिन जो राम से आसकर हैं वो सदा अमर रहते हैं । दया आप हृदय नहीं , ज्ान कथे वे हद । ते नर नरक ही जायेंगे , सुन-सुन साखी शबद ।। अर्थ : कबीर कहते हैं कि जिनके हृदय में दया का भाव नहीं है और
ज्ान का उपदेश देते हैं , वो चाहे सौ शबद सुन लें , लेकिन नरकगामी ही होंगे । जेती देखो आतम , तेता सालिगराम । साधू प्तषि देव है , नहीं पाहन सूं काम ।। अर्थ : संत कबीर कहते हैं कि जितनी आतमाओं को देखता हूं उतने ही शालिग्ाम दिखाई देते हैं । प्रतयक्ष देव तो मेरे लिये सच्ा साधु ही है । पाषाण की मूर्ति पूजने से मेरा कया भला होने वाला है । �
flracj 2022 25