कुचरि रचे गए तथा बल का भी प्रयोग किया गया । ्परिणामसवरू्प समाज में उच्-निम्न का भेदभाव , कुरीतियाँ एवं कुप्रथाओं ने जनम लिया , जिससे ्पदूरा भारतीय समाज विघटित होकर कमजोर हो गया । इसे ्पुनः संगठित करने के लिए अनेक प्रयास तो हुए , किनिु प्र्दूतरि मनःससरति की जड़ता तथा अनावशयक निम्नता
एवं श्ेषठिा के अभिमान को समापि करके सामाजिक समरसता को ्पदूण्तरू्पेण स्थापित किए बिना सुधार के प्रयास किए गए , जिसके ्परिणाम आंशिक रू्प से ही हितकर रहे । अतः वर्तमान में सामाजिक समरसता की प्रसिातवि अवधारणा विशेष महत्त्वपूर्ण हो गई है ।
‘ सववे भवनिु सुखिनः ,’ सववे सनिु निरामयाः
्पर आधारित भारतीय संस्कृति के रोम-रोम में वैसशवक सामाजिक समरसता की सोच रची-बसी है । अगर हम वैसशवक मानव समाज ्पर निगाह डाले तो ्पदूरे विशव में सामाजिक विषमता का भाव मौजदू् है । कही ्पर यह जातिगत भेदभाव के रू्प में , तो कही रंगभेद के रू्प में , तो कही ्पर आर्थिक भेदभाव के नाम ्पर , मानव समाज
flracj & vDVwcj 2023 47