eMag_Sept-Oct 2023_DA | Page 37

की । वह बॉन विशवतवद्ालय , जर्मनी भी गए । जदून , 1927 में , उनहें कोलंबिया विशवतवद्ालय द्ारा डॉकटरेट की उ्पाधि से सममातनि किया गया । वह अ्पने समय के एक दुर्लभ भारतीय राजनेता थे जिनहोंने कोलंबिया विशवतवद्ालय , लंदन स्कूल आफ इकोनोमिकस एवं बॉन विशवतवद्ालय में अधययन किया था ।
डा . अंबेडकर गरीब लोगों , अछटूिों के भागय के बारे में चिंतित थे । डा . अंबेडकर चाहते थे कि वे सविंत् हों । उनहोंने बड़ौदा महाराज की अधयक्षता में दलित वर्ग समाज की स्थापना की । उनहोंने समाज के दबे-कुचले वगषों के मुद्ों और आकांक्षाओं को उजागर करने के लिए 1927 में रूढ़ीवादी हिन्दू ्परम्पराओं की आलोचना करने के लिए एक मराठी ्पाक्षिक पत्रिका मदूकनायक और हिन्दू धर्म में जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए बहिष्कृत भारत की शुरुआत की । 1936 में उनहोंने इंडि्पेंडेंट लेबर ्पाटटी की स्थापना की । इसने 1937 के बंबई चुनाव में 13 आरक्षित और चार सामानय सीटों के लिए केंद्रीय विधान सभा का चुनाव लड़ा और रिमशः 11 आरक्षित और तीन अनय सीटों ्पर जीत हासिल की । उनके लिए लोकतांतत्क मदूलय सववो्परि थे !
सभी कठिनाइयों को धत्ा बताते हुए अ्पनी ्पढ़ाई ्पदूरी करने के बाद , डा . अंबेडकर ने अ्पना जीवन दलितों की मुसकि और सशसकिकरण के लिए समत्प्ति कर दिया । इसलिए संघर्ष उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गया । 1927 में , डा . अंबेडकर ने अ्पने हजारों अनुयायियों के साथ महाराषट्र के महाड़ में चवदार टैंक से ्पानी ्पीकर एक शांति्पदूण्त आंदोलन का नेतृतव किया , जबकि ततकालीन बॉमबे सरकार ने सी . के . बोले द्ारा प्रसिुि किए गए 192 प्रसिावों को सवीकार करते हुए अछटूिों को टैंक से ्पानी ्पीने सहित सार्वजनिक निधि से संचालित किए जाने वाले सार्वजनिक जलाशयों , कुओं और धर्मशालाओं का उ्पयोग करने की अनुमति दे दी थी ।
डा . अंबेडकर ने 3 मार्च 1930 को नासिक के कालाराम मंदिर में सभी हिंदुओं के सुरक्षित प्रवेश के लिए एक आंदोलन का नेतृतव किया ।
वह हिं्दू समाज और हिं्दू धर्मशासत् के ्पदूण्त ्परिवर्तन के ्पक्ष में थे और सभी हिंदुओं के लिए समान अधिकार सुरक्षित करने के ्पक्ष में थे । वे समावेशिता के ्पक्षधर थे । उनका मानना था कि जातिवाद और अस्पृशयिा हिं्दू धर्म , वेदों की भावना के खिलाफ है । इसका सार गुणवत्ा , नयाय , बंधुतव और भाईचारे में निहित है । उनहें आशचय्त हुआ कि इतने उदार हिं्दू धर्म में भी हिंदुओं के एक बड़े हिससे को अछटूि , यहां तक कि जानवरों से भी बदतर माना जाता है । यह उनका दर्द था ।
वह हिंदुतव के विरोधी नहीं थे । उनहें हिं्दू धर्म में आने वाले विकारों के खिलाफ नाराजगी थी । उनमें भारतीयता और राषट्रीयता करूट-करूट
कर भरी थी । हिन्दू धर्म से नाराजगी के चलते उनहोनें किसी अनय विदेशी धर्म के सरान ्पर बौद्ध धर्म को सवीकार किया जो कि विशुद्ध भारतीय संस्कृति का हिससा रहा है और जिसे कई सदियों से सम्पदूण्त भारतवर्ष में अशोक जैसे महान सम्ाटों के साथ-साथ ही सामानय जनता ने खदूब सवीकार किया । 14 अक्टूबर , 1956 को बौद्ध धर्म की उनकी सवीककृति उनके भारतीयता के प्रति अगाध प्रेम का ्परिचायक है । ऐसा कहा जाता है कि जब डा . अंबेडकर ्दूसरे गोलमेज सममेलन के दौरान महातमा गांधी से मिले , तो उनहोंने उनसे कहा कि वे उस धर्म को सवीकार
नहीं कर सकते जो मनुषयों को बिलली और कुत्ों के रू्प में मानता है , और वह एक ऐसे धर्म को अ्पनाएंगे जो हिं्दू धर्म के लिए कम हानिकारक हो । डा . अंबेडकर के वयसकितव की बहुमुखी प्रतिभा अतुलनीय थी । अ्पने आलोचकों को सुनने की उनकी क्षमता बेजोड़ थी । कई मुद्ों ्पर वीर सावरकर और महातमा गांधी के साथ अ्पने मतभेदों के बावजदू् , वे सामाजिक समानता के लक्य को प्रापि करने और अस्पृशयिा और जातिवाद जैसी घृणित बुराइयों से समाज को मुकि करने के विचारों में एकमत थे । डा . अंबेडकर हमेशा सशसत् संघर्ष के खिलाफ थे लेकिन समाज के वंचित वगषों के समान अधिकार को लेकर वंचित वगषों की आ्पसी एकता के साथ अहिंसक संघरषों और आन्ोलनोें को करने के अटटूट हामी थे । वह चाहते थे कि समाज के दलित और उत्पीड़ित वर्ग एकजुट रहें और ज्ान और शिक्षा प्रापि करें ताकि वे उत्पीड़ित न हों ।
हमारे संविधान के निर्माता के रू्प में , डा . अंबेडकर ने हमें एक मजबदूि , सवसर और अधिक समावेशी समाज बनाने का मंत् और रोडमै्प दिया है । समाज के वंचित वगषों , अल्पसंखयकों , अनय त्पछड़े वगषों , महिलाओं और मज्दूरों के लिए उनकी प्रतिबद्धता आज भी एक सच्े मार्गदर्शक की तरह राह दिखाती है । वह केवल दलितों के नहीं अत्पिु समानता और समरसता चाहने वाले देश के सभी 135 करोड़ लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधितव करते हैं । उनहोंने लोगों के दिलों में एक शाशवि सरान हासिल किया है । सामाजिक समरसता के क्षेत् में उनका योगदान अतुलनीय है ।
डा . अंबेडकर को सच्ी श्द्धांजलि सामाजिक समरसता को कायम करने , गरीबी को समापि करने का संकल्प लेने और राषट्रीय अवसरों और सुविधाओं को सांझा करने में सभी के लिए नयाय और समानता सुतनसशचि करने से होगा । जाति , ्पंथ , धर्म और क्षेत् के विचारों से ऊ्पर उठकर हमें भारत को विशव गुरु बनाना है । चारों ओर से अचछे विचार आने दें और उनहें अमृत काल में ्पदूरे विशव में फैला दें ।
( लेखक हरियाणा के राजयपाल हैं ।)
flracj & vDVwcj 2023 37