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जाति प्था का अंतिम समय तक विरोध किया डा . अंबेडकर ने
रमेश सर्राफ
संविधान के रचयिता डा . भीम राव अंबेडकर का स्पना था भारतीय
कि भारत जाति-मुकि हो , औद्ोतगक राषट्र बने , सदैव लोकतांतत्क बना रहे । लोग डा . अंबेडकर को एक दलित नेता के रू्प में जानते है । जबकि उहोंने बच्पन से ही जाति प्रथा का खुलकर विरोध किया था । उनहोंने जातिवाद से मुकि आर्थिक दृसषट से सुदृढ़ भारत
का स्पना देखा था । मगर देश की राजनीति ने उनहे सर्वसमाज के नेता के बजाय दलित समाज का नेता के रू्प में स्थापित कर दिया । डा . अंबेडकर का एक और स्पना भी था कि दलित धनवान बनें । वे हमेशा नौकरी मांगने वाले ही न बने रहें अत्पिु नौकरी देने वाले भी बनें ।
बाबा साहब का मानना था कि वर्गहीन समाज गढने से ्पहले समाज को जाति विहीन करना होगा । आज महिलाओं को अधिकार दिलाने के
लिए हमारे ्पास जो भी संवैधानिक सुरक्षाकवच , कानदूनी प्रावधान और संसरागत उ्पाय मौजदू् हैं । इसका श्ेय किसी एक मनुषय को जाता है , वह हैं डा . अंबेडकर । भारतीय संदर्भ में जब भी समाज में वयापि जाति , वर्ग और लिंग के सिर ्पर वयापि असमानताओं और उनमें सुधार के मुद्ों ्पर चिंतन हो तो डा . अंबेडकर के विचारों और दृसषटकोण को शामिल किए बिना बात ्पदूरी
34 flracj & vDVwcj 2023