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हिन्दू समाज में औचित्यहीन भेदभाव एवं विदेशी कु चक्र
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न भौतिक एवं आधयासतरक शसकरयों की ऊर्जा समपूण्म रिह्ाणि में प्रवाहित हो रही है , उनिीं शसकरयों का अविच्छिन्न योग हिनदू कहा जाता है । इन शसकरयों के योग से निर्मित भारतीय मानव जहां कहीं भी निवास करता है , उसे हिनदू समाज कहा जाता है । प्राचीनकालि में हिनदू समाज अपने मर्यादित आचरण ,
धार्मिक परमपिाओं , जीवन मूलयों पर आधारित प्रथिाओं , सतयचनषठ वयवहार , वैज्ाचनक दृसषटकोण , भ्ारृतव की भावना , पड़ोसी धर्म का समरान रथिा वसुधैव कुटुमबकम् जैसी विशेर्राओं पर अडिग थिा । परनरु मधयकालि में विदेशी आक्ारकों एवं शासकों ने हिनदू समाज में अपने-अपने पंचथिक भाव के अनुरूप बदलिाव करने के चलिए हिंसा , उतपीड़न और
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