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असंतुषट हो जाता हूूँ , मेरे चार पुत्र होने पर जितना आनंद होता , उतना मुझे मेरी पु्रक के प्रसिद्ध होने पर होता है ।“ बाबा साहब और पु्रकों का रिशरा कितना अटूट और प्रियकर है यह उपरोकर कथिन से ्पषट हो जाता है । बाबा साहब के पु्रक प्रेम उनकी साहितय से मानवतावादी विचारों की अपेक्षा रथिा लिेखक की आम आदमी के प्रति विचार की धारणा , कितनी यथिाथि्मवादी ओर जीवोनरुखी है यह दिखाई देती है ।”
डॉ . आंबेडकर का कहना है कि आम आदमी की महत्ता से प्रेरणा लिेकर लिेखकों को लिेखन करना चाहिए । वह कहते हैं , ‘ अपनी साहितय की रचनाओं में उदात्त जीवन मूलयों और सां्कृचरक मूलयों को परिषकृर कीजिए । अपना लिक्य सीमित मत रखिए । अपनी कलिर की रोशनी को इस तरह से परिवर्तित कीजिए कि गांव , देहातों का अंधेरा दूर हो । यह मत भूचलिए कि अपने देश में दचलिरों और उपेक्षितों की दूनिया बहुत बड़ी है । उसकी पीड़ा और व्यथा को भलिी-भांति जान लिीजिए और अपने साहितय द्ािा उनके जीवन को उन्नत करने का प्रयास कीजिए । उसमें सच्ची मानवता निहित है । बाबा साहब का साहिसतयक विचार मानवतावाद पर आधारित है ।’
वर्तमान समय में दुनिया का अधिकांश सर्वश्ेषठ साहितय आजादी की चाह के चलिए ही चलिखा जाता है । अगर हम भारतीय संदर्भ में बात करे तो यहां के दचलिर चवर्यक साहितय में भी सदियों से प्रताड़ित , शोचर्र , दमित , पराजित दचलिरों की आवाज और आकांक्षा वयकर होती है । दचलिर चवर्यक साहितय में सामाजिक ऐतिहासिक , अनुभवों की गहरी अभिवयसकर और मानव जीवन की दशाओं के बारे में अपनी अलिग अंरदृ ्मसषट है । इसमें विरोध एवं आक्ोश का ्वि है । इसमें रिाह्णवादी वयवस्था से पीड़ित और प्रताड़ित वयसकर की आवाज सुनाई देती है , इसमें वयवस्था से आजादी या ्वरनत्रता के साथि समता और बंधुतव की भावनओं की गहरी अभिवयसकर चरलिरी है ।
अतः वर्तमान में हिनदी दचलिर चवर्यक साहितयकार अपनी धारदार कलिर से कविता , कहानी , उपनयास , नाटक , सं्रिण , इतिहास एवं
आलिोचना आदि विधाओं के माधयर से दचलिर एवं शोचर्र समाज को प्रकाश और ऊर्जा प्रदान कर रहे है । वर्तमान में हिनदी दचलिर चवर्यक साहितय आन्दोलन हिनदी साहितय की मुखयरारा बन चुका है । दचलिरों की प्रतिषठा , समरान और अस्ररा , शिक्षा , संघर््म और संगठन , तार्किक सोच आदि सब मुद्े जो मनुषयरा की जरूरी शरतें है , जिसे दचलिर चवर्यक साहितय उठाता है । अतः दचलिर चवर्यक साहितयकार जहां अपनी कृतियों में समानता , भाईचारा और नस्ल या रंग के आधार पर किसी भी विभेद को नकारता है , वहीं वह धर्म , धन , सत्ता , दर्शन और जनर के आधार पर किसी श्ेषठरा और निकृषटरा की अवधारणा को
भी अ्वीकार है । इस प्रकार वह केवलि दचलिर के चलिए ही नहीं वरन पूरे समाज के चलिए इन विभेदों को मिटाना चाहता है । डॉ . आंबेडकर का मानना है कि दचलिरों को ्वयं अपना नेतृतव विकसित करना चाहिए । दचलिर चवर्यक साहितय का नेतृतव चनसशचर रूप से दचलिरों के हाथि में होना चाहिए अन्यथा वह अपना असलिी ्वरूप खो बैठडेगा । यही बात साहिसतयक संगठनों पर लिागू होती है । आज दचलिर चवर्यक पत्रिकाओं , दचलिर सम्मेलनों , गोसषठयों , सभाओं ने भी सामाजिक चेतना के पक्ष में साथि्मक कार्य कर परिवर्तन का मार्ग प्रश्र किया है ।
आज का दचलिर चवर्यक साहितयकार आधुनिकता बोध से अपने समाज , इतिहास और परमपिा का मूलयांगन करके मानतावाद के चलिए संघर््म कर रहा है । आज जिन दचलिर चवर्यक साहितयकारों को डॉ . आंबेडकर ने
जगाया , चेताया , शिक्षा का महतव समझाया और दुनिया को बदलिने के चलिए उसकी प्रस्थापित चवर्र वयवस्था को तोड़ने का आह्ान किया । आज दचलिर चवर्यक साहितय के मूलि में बोधिसतव डॉ . आंबेडकर का जीवन दर्शन है । आज भिन्न-भिन्न प्रदेशों के लिोग अपनी- अपनी प्रादेशिक भार्ाओं में डॉ . आंबेडकर के सभी आन्दोलनों से प्रेरित होकर आतरकथिा , कविता , कहानी , उपनयास , नाटक , गीत आदि चलिखने लिगे है ।
बौद्ध धर्म ्वीकार करने से पूर्व ही बोधिसतव डॉ . आंबेडकर ने तीन सूत्र – शिक्षित बनो , संगठित रहो , संघर््म करो का नारा दिया । आज
डॉ . आं बेडकर का कहना है कि आम आदमी की महत्ता से प्ेिणा लेकर लेखकों को लेखन करना चाहिए । वह कहते हैं , ‘ अपनी साहित्य की रचनाओं में उदात्त जीवन मूल्ों और सांस्ृवरक मूल्ों को परिष्ृर कीजिए । अपना लक्ष्य सीमित मत रखिए । अपनी कलम की रोशनी को इस तरह से परिवर्तित कीजिए कि गांव , देहातों का अं धेरा दूर हो ।
दचलिर चवर्यक साहितय की पृषठभूमि में यह तीनों सूत्र विधमान है । अतः मानव मुसकर की लिड़ाई में डॉ . आंबेडकर ने भारतीय समाज वयवस्था पर ही प्रश्न चिनि लिगा दिया । उनिोंने भारतीय समाज वयवस्था को नकारा ही नहीं उसके विरुद्ध संघर््म भी किया । उनके इनिीं विचारों में दचलिर चवर्यक साहितय के बीज चछिपे हैं । डॉ . आंबेडकर द्ािा समपाचदर एवं प्रकाशित मूकनायक , बहिषकृर भारत , समता प्रबुद्ध भारत इतयाचद पत्रिकाओं में दचलिर चेतना के ्विों को प्रमुखता दी गयी । डॉ . आंबेडकर के इनिीं विचारों को दचलिर चवर्यक साहितय की आिसमभक अवस्था कही जा सकती है । इनिीं पत्रिकाओं द्ािा दचलिर चवर्यक साहितय के समबसनरर बहुत सा साहितय प्रकाशन में आया । इसचलिए डॉ . आंबेडकर को दचलिर चवर्यक साहितय का प्रेरणा स्ोर कहा जाता है । �
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