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हे बुद्धिमानों जो वाहनों को बनाने और चलिाने में चतुर और शिलपी जन होवें उनका ग्िण और सतकाि करके शिलप विद्ा कि उन्नति करो ( ऋगवेद 4 / 36 / 2 )। ऐसा ही आलिंकारिक वर्णन ऋगवेद के 1 / 20 / 1-4 एवं ऋगवेद 1 / 110 / 4 में भी चरलिरा है । जातिवाद के पोर्क अज्ानी लिोगों को यह सोचना चाहिए कि समाज में लिौकिक वयवहारों की सिद्धि के चलिए एवं दरिद्रता के नाश के चलिए शिलप विद्ा और उसको संरक्षण देने वालिों का उचित समरान करना चाहिए । इसी में
सकलि मानव जाति कि भलिाई है ।
शंका 11- जातिभेद कि उत्पत्ति कै से हुई और जातिभेद से क्ा
क्ा हानियां हुई ? समाधान- जातिभेद की उतपचत्त के मुखय कारण
कुछि अनार्य जातियों में उन्नत जाति किलिाने कि इच्छा , कुछि समाज सुधारकों द्ािा पंथि आदि कि स्थापना करना और जिसका बाद में एक विशेर् जाति के रूप में परिवर्तित होना थिा जैसे चलिंगायत
अथिवा बिशनोई , वयवसाय भेद के कारण जैसे ग्वालो को बाद में अहीर कहा जाने लिगा , स्थान भेद के कारण जैसे कानयकुबज रिाह्ण कन्नौज से निकलिे , रीति रिवाज़ का भेद , पौराणिक कालि में धर्माचायषों कि अज्ानता जिसके कारण रामायण , महाभारत , मनु ्रृचर आदि ग्रंथों में चरलिावट कर धर्म ग्रंथों को जातिवाद के सरथि्मक के रूप में परिवर्तित करना थिा । पूर्वकालि में जातिभेद के कारण समाज को भयानक हानि उठानी पड़ी थिी और अगर इसी प्रकार से चलिरा रहा तो आगे भी उठानी पड़डेगी । जातिभेद को मानने वालिा वयसकर अपनी जाति के बाहर के वयसकर के हित एवं उससे मैत्री करने के चवर्य में कभी नहीं सोचता और उसकी मानसिकता अनुदार ही बनी रहती है । इस मानसिकता के चलिरे समाज में एकता एवं संगठन बनने के स्थान पर शत्रुता एवं आपसी फुट अधिक बढ़ती जाती है ।
आर . सी . दत्त महोदय के अनुसार “ हिनदू समाज में जातिभेद के कारण बहुत सी हानियां हुई है पर उसका सबसे बुरा और शोकजनक परिणाम यह हुआ कि जहाूँ एकता और समभाव होना चाहिये थिा वहाूँ विरोध और मतभेद उतपन्न हो गया । जहाूँ प्रजा में बलि और जीवन होना चाहिये थिा वहाूँ चनब्मलिरा और मौत का वास है । ( आर . सी . दत्त -चसचवलिाइज़ेशन इन एसनसएंट इंडिया )।
सामाजिक एकता के भंग होने से विपरीत परिस्थितियों में जब शत्रु हमारे ऊपर आक्रण करता थिा तब साधन समपन्न होते हुए भी शत्रुओं कि आसानी से जीत हो जाती थिी । जातिवाद के कारण देश को शतासबदयों तक गुलिाम रहना पड़ा । जातिवाद के चलिरे करोड़ों हिनदू जाति के सद्य धर्मानररित होकर चवररमी बन गये । यह किसकी हानि थिी । केवलि और केवलि हिनदू समाज कि हानि थिी । आशा है कि पाठक गण वेदों को जातिवाद का पोर्क न मानकर उनिें शुद्रषों के प्रति उचित समरान देने वालिे और जातिवाद नहीं अपितु वर्ण वयवस्था का पोर्क मानने में अब कोई आपत्ति नहीं समझेंगे और जातिवाद से होने वालिी हानियों को समझकर उसका हर समभव तयाग करेंगे । �
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