eMag_Oct-Nov 2022_DA | Page 23

चरलिेगा । बदलिे में अंग्ेज सरकार को एक ऐसी जमात चरलिरी । जो दिखने में तो हिंदु्रानी होती । मगर अंग्ेज सरकार की हर सही या गलिर नीति का सरथि्मन अंधभकर के समान करती । जो किसी भी स्थानीय विद्रोह में अपने ही हिंदु्रानी भाइयों के विरुद्ध अंग्ेजों का साथि देती । जो अपने हिंदु्रानी भाइयों को नीचा और अंग्ेजों को उच्च समझती । इससे अंग्ेजी राज सदा के लिे चलिए उस देश में राज दृढ़ हो जाता ।
इस प्रकार से ईसाई चर्च , अंग्ेज सरकार और अंग्ेज वयापारी तीनों को हर प्रकार से लिाभ होता ।
वर्तमान में भी चर्च ऑफ़ इंग्लैंड का करोड़ों पौणि बहुराषट्ीय कंपनियों में लिगा हुआ है । चर्च कंपनियों के माधयर से जिन देशों में धन कमाता है , उनिीं देशों को उनिीं का धन चर्च में दान के नाम पर वापिस भेजता है । इसे कहते है " मेरा ही जूता मेरे ही सर " विदेशी सोच वालिे विदेशी का तो भलिा हो गया मगर हमारे निर्धन , अशिक्षित , वंचित देशवासियों को कया चरलिा । यह चिंतन का चवर्य है । कालिे अंग्ेज बनने और गलिे में क्ास टांगने के पशचार वनवासियों की जीवन शैलिी में वयापक अंतर आया । पिलिे वह स्थानीय भूदेवताओं , वन देवताओं आदि को मानते थिे । अब वो ईसा मसीह को मानने लिगे । वनवासियों में शिक्षा चाहे कम थिी । मगर धार्मिक सदाचार उनकी जीवन शैलिी का अभिन्न अंग थिा । भूदेवता कहीं रुषट न हो जाये , इसचलिए
अशिक्षित आदिवासी पाप-पुणय का विचार करता थिा । भूदेवताओं के नाराज होने से प्राकृतिक विपदा न आये । इसचलिए वह किसी को सताने में विशवास नहीं रखता थिा । भूदेवताओं का भय ईसाई बनने के साथि समा्र हो गया । उसके स्थान पर पाप क्षमा होने की मानयरा प्रचचलिर हो गई । सारा दिन पाप करो और सांय जाकर चर्च में पापों को ्वीकार कर लिो । सभी पाप क्षमा हो जायेंगे । अच्छा तरीका चरलि गया । ईसाई बने आदिवासियों में बड़ी तेजी से वयचभचार , शराब आदि नशे की लिर , कुचटलिरा , झूठ -फरेब ,
रलिाक आदि फैलि गए । उत्तर पूर्व भारत इस परिवर्तन का साक्षात प्रमाण है । वहां शिक्षा तो है मगर सदाचार नहीं है । आदमी निकमरे हो चलिे है कयोंकि नशे ने उनका जीवन बर्बाद कर दिया है । जबकि औरतें परिवार का पेट पालिने के चलिए अकेलिे संघर््म कर रही है । ऐसे में टूटते परिवार , घरेलिू झगड़डे , विवाद आदि ने समाज को हिलिा कर रख दिया है ।
मगर ईसाई चर्च को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । कयोंकि उसका राजनीतिक हित सुरक्षित है । सारा ईसाई समाज संगठित होकर पादरी के कहने पर वोट करता है । इसचलिए चुनावी मौसम में राजनेता पादरियों के घरों के चककि लिगाते आसानी से दिख जाते है । कुलि चरलिाकर विदेश में बैठडे ईसाई पोप अपनी हिंदु्रान पादरियों की फौज की सहायता से न केवलि राजसत्ता को
चनददेश करते है , अपितु स्थानीय सरकार में दखलि देकर अपने हित के कानून भी बनवाते है । नागा सर्या आदि इसी सुनियोजित रणनीति का भाग है । स्थानीय वनवासियों का जीवन ईसाई बनने से नरकमय हो गया है । उसने सदाचार के बदलिे केवलि वयावसायिक शिक्षा प्रा्र कर लिी । मगर ईसाइयत ग्िण कर उसने अपना मूलि-धर्म , अपनी सभयरा , अपने पूर्वजों का अभिमान , अपनी मानसिक ्वरंत्रता , अपनी सं्कृचर , अपनी भार्ा , अपनी जीवन शैलिी , अपना गौरवासनवर इतिहास , अपनी धर्म खो दिया ।
हिनदू समाज का कर्तवय ऐसी परिवेश में अतयंर महतवपूर्ण है । हिनदू समाज ने कुछि अनाथिालिय , शिक्षा के चलिए विद्यालय तो अवशय खोलिे मगर वह अलप होने के कारण प्रभावशालिी नहीं थिे । हिनदू समाज में संगठन न होने के कारण कोई भी हिनदू नेता शुद्धि कर परिवर्तित वनवासियों को वापस शुद्ध करने में प्रयासरत नहीं दिखता । हिनदू समाज के धर्माचार्य मठाधीश बनकर मौज करने में अधिक रुचि रखते है । ऐसी सर्याओं पर विचार करने का उनके पास अवकाश नहीं हैं । हिनदू समाज का धनी वर्ग धर्म के नाम पर दिखावे जैसे तीथि्म यात्रा , साईं संधया , विशालिकाय संगमरमर लिगे मंदिर , ्वण्म और रत्न जड़ित मूर्तियों में अधिक रुचि रखता है । जमीनी ्रि पर निर्धन हिंदुओं का सहयोग करने का उसे कोई धर्माचार्य मार्गदर्शन नहीं करता । एक अनय हिनदू समाज का धनी वर्ग है जिसे मौज-र्री सैर सपाटडे से फुरसत नहीं चरलिरी । इसचलिए ऐसे ज्वलंत शीलि मुद्ों पर उसका कोई धयान नहीं है । इस व्यथा का मुखय कारण ईसाई समाज द्ािा संचाचलिर कानवेंट ्करूलिों में चरलिी शिक्षा है । जिसके कारण वे लिोग पूरे सेक्युलर होकर निकलिरे है । ईसाइयों ने वनवासी समाज का नाश केवलि भारत में ही नहीं किया । एशिया , अफ्ीका , लिैटिन अमेरिका सभी स्थानों पर अपनी चतुर रणनीति , दूर दृसषट , सुनियोजित प्रयास , एक दिशा , संगठित होने के कारण पूरे विशव पर आधिपतय बनाया है । हमने समय रहते इस रणनीति से सीख लिी होती तो आज हमारे देश के वनवासी मानसिक गुलिाम और विदेशियों की कठपुरलिी नहीं बनते । �
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