भोलिे-भालिे दचलिर उस साजिश और विशवासघात के जालि में फंस गये । दचलिरों को लिालिच यह दिया गया थिा कि इस्लाम में जाति नहीं है , इस्लाम में रंगभेद नहीं है , इस्लाम में वंश भेद नहीं है , इस्लाम में छिूआछिूत नहीं है , इस्लाम में सद्ावना है , इस्लाम में भाईचारा है , इस्लाम में बराबरी का अधिकार है । इसी तरह के विशवासघात और साजिश ईसाइयों ने भी रची । इस्लाम और ईसाइयों की साजिश में दचलिर फंस गए और फिर मुसलिरान भी बने और ईसाई भी बनें । जब ये मुस्लिम और ईसाई बने थिे , तब इनिें खुशी बहुत थिी , कयोंकि इनिें तत्काल धन
और सुविधाओं से लिैश किया गया थिा । लिेकिन न तो इनिें छिूआछिूत से निजात चरलिी और न उनिें बराबरी का अधिकार दिया गया ।
हिनदू , बौद्ध और सिख दचलिरों का आरक्षण लिूटने के चलिए गजब का तर्क दिया जा रहा है । इनके तर्क सुनेंगे तो आप दंग रह जायेंगे और निषपक्ष विशलिेर्ण करेंगे तो पायेंगे कि इस्लाम और ईसाइत ने सनातन के चखलिाफ कितनी बड़ी साजिश की थिी , सनातन के चखलिाफ कितना बड़ा झूठ खड़ा किया थिा । इस्लाम और ईसाईयत के मौलिचवयों और पादरियों का कहना है कि उनके मजहब में छिूआछिूत नहीं है और न ही जाति भेद है और न ही काम की कसौटी पर
कोई अपमान जनक बात है । लिेकिन सच यह है कि मुसलिरानों और ईसाइयों के बीच में जाति भी है , छिूआछिूत भी है और काम के आधार पर अपमान भी हैI इसचलिए इनिें भी दचलिर की श्ेणी में आरक्षण चरलिना चाहिए । उनके इस तक और इस कसौटी पर देखेंगे तो फिर सनातन में भी कहीं से भी कोई छिूआछिूत नहीं रहा है । इस संबंध में सनातन धर्म के प्रचंड ज्ारा और दचलिर विचारक रथिा पूर्व सांसद विजय सोनकर शा्त्री कहते हैं कि भीमराव अंबेडकर अपनी पु्रक में कहते हैं कि वेद में कोई जाति या फिर छिूआछिूत नहीं है , यह किसी तरह से सनातन
का चवर्य नहीं है , छिूआछिूत चौथिी शताबदी की देन है जबकि सनातन तो लिाखों सालि पुराना धर्म है । विजय सोनकर शा्त्री कहते है कि मुसलिरानों के भारत पर कबजा करने के साथि ही साथि भारत में छिूआछिूत विकरालि रूप से धारण किया । विजय सोनकर शा्त्री आगे कहते हैं कि ईसाई और इस्लाम उनिें अच्छा लिगता और इस्लाम व ईसाई दचलिरों के चलिए अनिवार्य मजहब होते तो फिर अंबेडकर बौद्ध कयों बनते ?
अगर मुसलिरानों और ईसाईयों को भी दचलिर मानकर आरक्षण दे दिया गया तो फिर कया होगा ? एक तरह से भारत की सनातन सं्कृचर समा्र हो जायेगी , राजनीति भी मुस्लिम और
ईसाइयों की गुलिाम हो जायेगी , खासकर भारत को इस्लामिक राज में तब्दील करने की मजहबी और जिहादी काम आसान हो जायेगा । अभी विधान सभा और लिोकसभा सीटें जो दचलिरों के चलिए आरक्षित हैं । उन पर कबजा मुसलिरानों का भी होगा । चूंकि जनसंखया में ईसाई कम है और मुसलिरान जयादा हैं । इसचलिए इस प्रसंग का सबसे जयादा लिाभ मुसलिरानों को ही होगा । विधान सभाओं और लिोकसभा में मुसलिरानों की हि्सेदारी बढडेगी तो फिर मुसलिरान जिहादी- मजहबी प्रसंग पर ब्लैकमैचलिंग और सौदेबाजी करेंगे , ब्लैकमैचलिंग और सौदेबाजी में मुसलिरानों की जिहादी-मजहबी मानसिकताएं भी तुषट होगी । दचलिर फिर से हाशिये पर खिडे रहेंगे , उनकी स्थिति वर्तमान से भी बदत्तर होगी ।
जिन मुस्लिम और ईसाई जातियों को दचलिर की श्ेणी में आरक्षण चाहिए उनिें पिलिे से ही आरक्षण चरलि रहा है । मुस्लिम की दर्जनों जातियों को चपछििडे वर्ग में आरक्षण चरलि रहा है । जब मंिलि आयोग की सिफारिशें लिागू हुई थिी तब मुस्लिम जातियों को भी चपछििडे वर्ग के आरक्षण से जोड़ा गया थिा । इसके अलिावा विभिन्न राजय सरकारों ने समय-समय पर अपनी वोट राजनीति की जरूरत के अनुसार मुसलिरानों की जातियों को चपछििडे वर्ग में शाचरलि कर आरक्षण देने का काम किया है । जब ईसाइयों और मुसलिरानों को पिलिे से ही चपछििडे वर्ग में आरक्षण चरलि रहा है तो फिर ये दचलिरों के आरक्षण को कयों लिूटना चाहते हैं ।
चरिटिश शासनकालि में भी मुसलिरानों और ईसाइयों को आरक्षण देने की मांग हुई थिी , जिसे ठुकरा दिया गया थिा । डॉ आंबेडकर खुद ही मुसलिरानों और ईसाइयत को आरक्षण देने से मना कर दिया थिा । दचलिरों को आरक्षण कोई जाति के आधार पर नहीं है , बसलक भेदभाव के शिकार लिोगों की कसौटी पर चरलिा है । निसंदेह तौर पर कोई दचलिर जब मुसलिरान बनता है और ईसाई बनता है तो फिर उसकी जाति समा्र हो जाती है और उसकी दचलिर पहचान भी समा्र हो जाती है । फिर जाति के भेदभाव का प्रश्न ही नहीं उठता है । �
vDVwcj & uoacj 2022 19