eMag_Oct 2021-DA | Page 43

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घृणा से बने चित्त के नेता थे पेरियार

कम्ुनिस्टों ने बनाया गांधरीरादरी पेरियार को अलगाववादरी पूरा्शग्ह से प्रेरित और निराधार हैं पेरियार के विचार

अरुण प्रकाश xka

धीवादी परेरियार के जीवन की बड़ी त्ासदी थी कमयुलन्टों सरे मिलना । इसी के बाद वह अलगाववादी हुए । भारतीयता , भारत और भारतीय संविधान का विरोध शुरू किया । दोहरापन ऐसा अपनाया कि अग्तय मुनि के वयाकरण सरे सुसंस्कृत तमिल को ' द्रविड़ ' कहकर ्वीकारा िरेलकन संस्कृत वयाकरण दर्शन का अनुसरण करनरे वाली भाषाओं को रिाह्मणवादी भाषा कहकर नकार दिया ।
नकारामिकता का पर्याय बने पेरियार
वा्तव में दरेखा जाए तो रामा्वामी शुरू में अच्छे विचारक थरे । समाज को िरेकर वह सजग और चिंतित थरे । उनके द्ारा कु्छ अच्छे प्यास भी हुए । िरेलकन , कमयुलन्ट होनरे के बाद सिर्फ नरेता रह गए थरे । उस नरेता का लचति घपृणा सरे बना था । जाति लविरेष के प्लत घपृणा , भाषा , दरेि और संविधान के प्लत घपृणा । उनमें नकार भर गया था और हृदय जड़ हो गया था । जड़ हृदय का मनुषय विधवंसक होता है , हमनरे कई बार दरेखा है । ऐसा वयस्त नरेता हो जायरे तो नाश तय है । उनहोंनरे आह्ान किया कि दक्षिण के राजय आजादी की लड़ाई सरे अपनरे को अलग रखें । अलग द्रविडनाडु बनरे । गनीमत यह थी कि उनके नाम पर जितना प्ोपरेगैंडा आज है , तब उनकी वैसी ्वीकार्यता नहीं थी । इसलिए दक्षिण के लोगों नरे उनके आह्ान को अनसुना किया ।
अलगाववादियों के प्ति हो समग्र दृहटिकोण परेरियार के अलगाववादी अभियान की
तीक्णता पालक्तान और खालि्तान के मांग सरे कम न थी । जनमत मिलता तो जिन्ाह न सही , िरेलकन िरेख अबदुलिा जैसा चररत् बनतरे । उनके अभियान को अधिकतर तमिल लोगों नरे बहुत गंभीरता सरे नहीं लिया था । िरेलकन , तब भी एक वर्ग पर उसका प्भाव पड़ा जिससरे आज भी राजनीतिक रूप सरे अलगाववादी भावनाएं जिंदा हैं । उनका दल उसरे जगाए रखनरे में ही अपना अस्ततव समझता है । हमारा द्वेत यह है कि हम अबदुलिा और जिन्ा के लिए अलगाववाद का अलग मापदंड प्योग करतरे हैं , जबकि परेरियार के लिए दूसरा । अलगाववाद पर हमारा ्टैंड पारदिटी होना चाहिए । उसरे समता जैसरे शबद की खाल सरे ढकना नहीं चाहिए । या फिर जिन्ा , अलिामा और सुहरावदटी भी बरी । िरेख अबदुलिा और गिलानी भी लनदणोष । अनयथा परेरियार भी दोषी ।
निराधार विरोध पर टिकी राजनरीति
जो आरोप लगतरे हैं कि दक्षिण पर उतिर हावी रहा । उनहें इस पर गंभीरता और निषपक्षता सरे चिंतन करके दरेखना चाहिए । सच पू्छा जाए जो वैचारिक रूप सरे दक्षिण ही उतिर पर हावी है । असल में विवाद उतिर-दक्षिण का नहीं है । शंकर , माधव , रामानुज , रमण को हमनरे कभी दक्षिण की दृष्टि सरे नहीं दरेखा । तमिल लोगों नरे भी अग्तय को उतिर की दृष्टि सरे नहीं दरेखा । हिंदी विरोध भी घपृलणत हृदय का गढ़ा हुआ विरोध है । रॉबर्ट कॉडवरेि का षडयंत् है जिसरे डीएमके आज भी पोषित कर रही है । जबकि भाषा विज्ालनयों नरे सिद्ध कर दिया है कि हिंदी और
तमिल के वा्य विनयास और लकयापद में अनय की तुलना में अधिक सामयता है ।
बड़ी लकीर खींचना बेहतर
्पषट रहरे कि समता का कोई समर्थक जातीय , भाषाई घपृणा का प्चार नहीं कर सकता । पहाड़ खोदकर खाई कर दरेनरे सरे समतल धरती नहीं बनरेगी , बस खाईयों और पहाड़ों का ्थान बदल जायरेगा । इस हैंगओवर सरे उबरना होगा , कि ्थालपत का अपमान करनरे सरे आपका ्वालभमान सिद्ध हो जाएगा । अलबतिा अपनरे ्वालभमान को ्थालपत , पोषित व पुसषपत — पलिलवत करनरे के लिए बड़ी लकीर खींचनरे वाली नीति अपनाई जानी चाहिए । समता का विमर्श ही करना है तो आंबरेडकर , जयोलतबा और नारायण गुरु अधिक तार्किक और वयवहारिक हैं । परेरियार के तमाम अच्छे कामों को उनहीं की घपृणा के राहु नरे ग्स लिया । यही घपृणा की प्ासपत है । सोचिए , विचारियरे । �
vDVwcj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 43