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अछूत जातियों को दलित ्वग्ष के रूप में संबोधित किया है , बौद्ध धर्म अपनानरे के पीछ़े भी उनका मकसद दलितों को एक अ्पसंखयक धार्मिक ्वग्ष में बदलनरे का थिा । पर यह हो नहीं पाया । दलित जातियों में न तो शिक्ा है , न इतिहास और संस्कृति के सतर पर कोई न्वजागरण उनमें हुआ है , कांग्रेस , भाजपा और आरएसएस की ब्राह्मर्वादी प्लतक्ांलत नरे भी उनको अलग-थििग रखनरे में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है , इसलिए उनमें उस दलित-चरेतना का ल्वकास नहीं हो पाया , जो उनको एकसूत्र में बाँध सकती । हमाररे पश्चमी उत्र प्दरेश में जाट्वों और ्वा्मीलकयों की बससतयां पास-पास हैं , मैंनरे कभी उनके बीच संघर्ष नहीं दरेखा । ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक समुदाय में कोई गमी हुई हो , और दूसररे समुदाय नरे मदद करनरे सरे इनकार कर दिया हो । मरेररे अपनरे शहर में तो दलित आन्दोलन का संचालन जाट्वों और ्वा्मीलकयों नरे मिलकर चलाया है । यहाँ की एकता यह थिी कि एक गैर-दलित िरेखक की मरेहतर औरतों पर एक बहुत ही अ्िीि और आपलत्जनक कहानी एक पत्रिका में छपी , तो उस िरेखक और पत्रिका के खिलाफ
एफआईआर लिख्वानरे और िरेखक को गिरफतार करानरे का काम जाट्वों नरे ही किया थिा ।
शिक्षा से आएग़ी दलित उपजातियों में जागरूकता
दलित समाज की उपजातियों में सामाजिक एकता तभी आएगी , जब उनमें शिक्ा आयरेगी । जैसरे-जैसरे उनमें शिक्ा का ल्वसतार होता जायरेगा , एकता की कमी दूर होती जायरेगी । दलितों के एक न होनरे के लिए ब्राह्मण-राजनीति भी काफी हद तक जिम्मेदार है । उसनरे दलित और महादलित का खरेि खरेिकर आरक्र पर महाझूठ फैलाकर कि ्वा्मीलकयों का हिससा जाट्व खा रहा है , उन्हें एक-दूसररे का दु्मन बना दिया है । इस खरेि को समझना होगा । ब्राह्मण-राजनीति महादलितों को लशलक्त नहीं बना रही है , बल्क उन्हें अलशलक्त बनाकर अपनरे हित में इस्तेमाल कर रही है । उन्हें डा . आंबरेडकर सरे अलग करके गाँधी और हिंदुत्व सरे जोड़कर रखा जा रहा है । अगर ्वा्मीलक जातियां आंबरेडकर सरे जुड़ेंगी , तो उनमें दलित-चरेतना का ल्वकास होगा । हिंदुत्व सरे जुड़े रहकर उनमें दलित चरेतना नहीं आएगी ।
इसलिए दलित बुद्धिजील्वयों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को उनके बीच तरेजी सरे आंबरेडकर- ्वैचारिकी को िरे जानरे की जरूरत है ।
दलित सादहत् का उज्जवल भविष्य
सभी को खरीदकर पढ़ना तो मरेररे लिए संभ्व नहीं है । िरेलकन जो सोशल मीडिया पर ्वरे लिखतरे हैं , उसको जरूर पढ़ता हूँ । उन पर टिपपरी करना मैं यहाँ उचित नहीं समझता , कयोंकि उनमें काफी-कुछ ऐसा लिखतरे हैं , जो मरेरी समझ सरे पररे है । ्वरे आन्दोलन सरे जुड़े हुए िरेखक नजर नहीं आतरे । िरेलकन जो आन्दोलन सरे जुड़े िरेखक हैं , उनका ज्वाब नहीं । ्वरे काफी ल्वचारोत्तेजक और गमभीर िरेखन कर रहरे हैं । दलित साहितय में एक नया नाम मोहन मुकत का उभरकर आया है । अभी तक पहाड़ी परर्वरेश सरे कोई दलित िरेखक नहीं आया थिा । मोहन मुकत नरे इस कमी को पूरा कर दिया है । दलित चरेतना की पहाड़ी अनुभूतियाँ पहली बार साहितय में आ रही हैं । ऐसरे सशकत िरेखक ही दलित साहितय का सुंदर भल्वष्य बनाएंगरे ।
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