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विकास और दिशा की चुनौती से जूझता दलित साहित्य
बेहद उज्वल है दलित साहित्य का भविष्य मुख्यधारा में आ रहा दलित लेखन
कंवल भारतरी vk
ज दलित साहितय के समक् उतनी चुनौतियाँ नहीं हैं , जितनी हमाररे समय में थिीं । हमारा तो जयादातर समय और ऊर्जा दलित साहितय के ल्वरोधियों सरे संघर्ष करनरे में ही खर्च हुई । के्वि दलक्रपंथिी ही नहीं , बल्क कुछ ्वामपंथिी भी , हालाँकि साररे नहीं , दलित साहितय के ल्वरोधी थिरे । ्वरे भीतर सरे आज भी ल्वरोधी हैं , पर अब दलित साहितयकार उनके ल्वरोध की पर्वाह नहीं करतरे । उनका बहुत ही भोंडा और हासयासपद तर्क पहिरे यह होता थिा कि “ जब दलितों की बात हम कर ही रहरे हैं , तो फिर अलग सरे दलित साहितय की कया जरूरत है ? ्वर्णव्यवस्था के पक् में भी ब्राह्मणों के प्ाय : ऐसरे ही कुर्तक थिरे , जैसरे , शूद्रों को पढ़नरे- लिखनरे की कया जरूरत है , जब उनकी सहायता के लिए ब्राह्मण मौजूद है , या शूद्र को हलथियार रखनरे की कया जरूरत है , जब क्त्री उसकी सहायता के लिए मौजूद है , या शूद्र को धन रखनरे की कया जरूरत है , जब उसकी सहायता के लिए ्वै्य धन रखता है ? िरेलकन सच यह है कि इनमें सरे किसी नरे भी शूद्रों की सहायता के लिए न कलम चलाई , न हलथियार उठाए । और न धन खर्च किया । शूद्रों का उत्थान तभी हुआ , जब उन्होंनरे स्वयं शिक्ा ग्हण की , हलथियार रखरे और धनार्जन किया । इसी प्कार दलक्र पंलथियों और ्वाम पंलथियों दोनों नरे ही दलितों के दुखों को अनुभ्व नहीं किया । जब अनुभ्व ही नहीं किया , तो ्वरे लिखतरे भी कया ? इसलिए
दलित समाज के दुख तभी साहितय में आए , जब स्वयं दलित िरेखकों नरे कलम उठाई ।
अब ज्ादा बड़ी है चुनौत़ी
दलित साहितय को स्थापित करनरे के लिए हमनरे बहुत लंबी लड़ाई लड़ी है । इसके लिए अखबार निकािरे गए , मंच बनाए गए , संगठन बनाए गए और ल्वरोधियों को तार्किक ज्वाब दिए गए । कुछ जन-संस्कृति मंच जैसरे कुछ ्वामपंथिी संगठन हमाररे समथि्षन में आए । हमनरे उनके मंचों सरे भी दलित साहितय का पक् रखा ।
परिणामत : 1990 के दशक में ही कुछ राष्ट्रीय अख़बारों और पत्रिकाओं नरे दलित ल्वमर्श को छापना आरमभ किया । दलित साहितय और ल्वमर्श को स्थापित करनरे में ओमप्काश ्वा्मीलक , मोहनदास नैमिशराय , ्योराजसिंह बरेचैन , और मैं सब टीम-भा्वना सरे एकजुट होकर योजना बनाकर काम करतरे थिरे । िरेलकन मौजूदा दौर और भल्वष्य की चुनौतियों की बात करें तो यह चुनौती अब जयादा बड़ी है । हालाँकि स्थापना का संघर्ष अब नहीं है , परन्तु ल्वकास और दिशा की चुनौती अभी भी है । दलित साहितय आज प्गति पर है ,
42 ebZ 2022