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तरह ही है । राजधानी लखनऊ में ही िड्िरे सरे मज़दूरों को बिना किसी सुरक्ा के सी्वर में उतार कर मैला साफ कर्वाया जाता है । पिछिरे दिनों ही लखनऊ में सी्वर सफाई के दौरान दो मज़दूरों की मौत हो गई । दरअसल सहादतगंज में तीन मज़दूरों को सफाई के लिए सी्वर लाइन में उतारा गया थिा , जिसमें सरे दो की दम घुटनरे सरे मौत हो गई , जबकि तीसररे को गंभीर हालत में ट्रामा सेंटर में भतथी कराया गया थिा । ्वहीं एक हादसा रायबररेिी के रोड पर अमृत योजना के तहत सी्वर सफाई के दौरान मौत हो गई थिी । स्पेशल कंडीशन के लिए हो खास इंतजाम केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिकता मंत्रालय की संस्था राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के आंकड़ों में साफ झलकता है कि
सी्वर में सफाई के दौरान दरेश में मौतों का सिलसिला फिलहाल थिमता नहीं नज़र आ रहा है । साल-2019 में सी्वर की सफाई के दौरान 110 लोगों की मौत हुई , जबकि-2018 में 68 और 2017 में 193 मौतें हुईं । ्वैसरे तो यरे ्वो मामिरे हैं जो आंकडों में गिन लिए जातरे हैं , िरेलकन कई ऐसरे मामिरे भी होतरे होंगरे जिनकी भनक तक नहीं लगती । हालांकि सी्वर सफाई के दौरान कुछ ऐसरे हादसरे काफी चर्चा में रहरे । सी्वर में सफाई के लिए एकट के तहत सफाई कर्मियों सरे सी्वरेज सफाई पूरी तरह गैरकानूनी है । अगर व्‍यसकत को सी्वर में उतारना ही पड जाए , तो उसके लिए कई तरह के नियमों का पालन जरूरी है । कहनरे का अथि्ष है कि स्पेशल कंडीशन में सफाई कमथी को कया व्यवस्था मिलनी चाहिए :
� कर्मचाररी का 10 लाख रुपये का बरीिा होना चाहिए
� कर्मचाररी से काम करी लिखित स्वीकृति लेनरी चाहिए
� सफाई से एक घंटे पहले ढककन खोलना चाहिए
� प्रलशलषित सुपरवाइज़र करी निगरानरी में ्री काम होगा
� ऑक्सीज़न सिलेंडर , मासक और जरीवन रषिक उपकरण देने होंगरे
धडल्े से हो रह़ी नियमों की अनदेख़ी
इन तमात कंडीशन के बा्वजूद नियमों की िड्िरे सरे अनदरेखी की जाती है । अगर यूं कहें कि मैला उठानरे ्वालों की जान की कीमत इस समाज में कुछ नहीं तो गित नहीं होगा । मामिरे
सरे जुड़े लोग कहतरे हैं कि सफाई के लिए आधुनिक मशीनों की सुल्विाएं नहीं होनरे और जयादातर जगहों पर अनुबंध की व्यवस्था होनरे सरे सफाईकर्मियों की मौतें हो रही हैं । अनुबंध की स्थिति में सरकारें सफाई कर्मियों के हितों का उचित धयान नहीं रखती हैं । लद्िी और हरियाणा जैसरे कुछ राजयों नरे सी्वर की सफाई के लिए मशीनों का इस्तेमाल शुरू किया है । हालांकि , ऐसी व्यवस्था पूररे दरेश में नहीं है और जहां है भी ्वहां पूरी तरह लागू नहीं है । भिरे ही कुछ लोग कह रहरे हैं लद्िी और हरियाणा में अब मशीनों का इस्तेमाल होता है , िरेलकन यरे भी सच हैं कि ऐसरे उदाहरण गिनरे-चुनरे ही हैं । हालांकि यरे हादसरे पूरी तरह सरे केंद्र और राजय सरकारों की मज़दूरों के प्लत सं्वरेदना की अपरेक्ा रखतरे हैं । िरेलकन दुर्भागय सरे जमीनी सतर पर इन अपरेक्ाओं की उपरेक्ा ही हो रही है ।
हादसों पर रोक के लिए हो कु छ ठोस
पू्व्ष राजय सांसद केसी तयागी नरे अपनरे एक िरेख में लिखा है कि ... मौजूदा कानून के तहत इस तरह की सफाई और शौचालयों का जारी रखना संल्विान के अनुच्छेद 14 , 17 , 21 और 23 का उ्िंघन है । साल 2014 के सुप्ीम कोर्ट के एक फैसिरे के तहत सभी राजयों ्व केंद्र शासित प्दरेशों को 2013 का कानून पूर्ण रूपरेर लागू करनरे , सी्वर टैंकों की सफाई के दौरान हुई मौतों पर काबू पानरे और मृतकों के आलश्तों को 10 लाख का मुआ्वजा दरेनरे का आदरेश दिया जा चुका है । पर कुछ नहीं हुआ । केसी तयागी के इस िरेख की आखिरी लाइन ‘’ पर हुआ कुछ नहीं ’’ कोई नई नहीं है । कयोंकि यरे हादसरे लगातार हमाररे समाज में होतरे रहतरे हैं , यहां तक इन हादसों को चुना्वी मुद्ा तक नहीं बनाया जाता । जिसका खामियाज़ा उन तमाम परर्वारों को उठाना पडता है जिन्हें पहिरे तो समाज में उचित सममान नहीं मिलता और फिर इस सरकारी लापर्वाहियों के तानरे बानरे में फंसकर घर का इकलौता कमानरे ्वाला भी नहीं रह जाता ।
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