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प्दरेश के सरगुजा जिला सरे हुआ थिा । इनके 1930-32 के अधिकांश खतियान में जाति या कौम लोहार दर्ज है । इस मामिरे सरे 2006 को ततकािीन कार्मिक सलच्व नरे सभी उपायुकत को पत्र लिख कर अ्वगत कराया थिा ।
बताई जा रह़ी लिपिकीय त्ुटि
पू्व्ष ल्विायक दरे्व कुमार धान नरे जन्वरी 2022 में मुखय सलच्व सरे इस तरह की जमीन की रलजसट्री रोकनरे और पू्व्ष में हुई रलजसट्री को अ्वैध घोषित करनरे का आग्ह किया थिा । उन्होंनरे लिखा कि लोहरा अनुसूचित जनजाति के 1932-35 के खतियान में लिपिकीय त्रुटि के कारण लोहार दर्ज है , जिसका सपष्टीकरण टीआरआइ के प्लत्वरेदन सरे हुआ थिा । कार्मिक नरे इसके आलोक में 2006 में आदरेश भी दिया थिा । आदरेश के आलोक में रांची के ततकािीन डीसी नरे लोहरा अनुसूचित जनजाति के खतियान में दर्ज लोहार जमीन की खरीद-बिक्ी में सीएनटी की धारा-46 के तहत खरीद-बिक्ी सुनिश्चत करनरे के लिए राजस्व ए्वं भूमि सुधार ल्वभाग सरे मार्गदर्शन मांगा थिा । इसके बाद राजस्व , भूमि सुधार ल्वभाग नरे ्वर्ष 2008 को रांची डीसी को पत्र लिख कर कहा कि लोहरा अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आता है और लोहरा जाति के लोगों को सीएनटी के तहत अनुसूचित जनजाति संबंधी सभी सुल्विाएं अनुमान्य हैं ।
आदेशों को बताया गया धता
डीसी के पत्र के आलोक में अपर समाहर्ता नरे 2014 में लोहरा अनुसूचित जनजाति की खतियानी लोहार जमीन की खरीद-बिक्ी को सीएनटी एकट के तहत करनरे का लनदसेश संबंधित अधिकारियों को दिया थिा । ल्विायक नरे लिखा कि उकत आदरेश के बाद भी भू-माफिया और कर्मियों की मिलीभगत सरे आदरेश को लशलथिि कर अनुपालन नहीं किया जा रहा है । ल्विायक नरे लिखा है कि रांची , लोहरदगा , गुमला सिमड़ेगा , खूंटी लजिरे में लोहार जाति के लोग लन्वास नहीं करतरे हैं , जो खतियान में दर्ज है । ्वरे मूल रूप सरे लोहरा अनुसूचित जनजाति के रैयत हैं । उन्होंनरे इस पर मुखय सलच्व सरे कार्ष्वाई करनरे का आग्ह किया ।
शासन ने लिया संज्ान
यह मामला काफी अरसरे सरे उठता रहा है । अब रांची जिला के अपर समाहर्ता नरे ऐसी प्ककृलत की जमीन की रलजसट्री पर रोक लगानरे और 2008 सरे िरेकर अब तक हुई रलजसट्री को रद् करनरे के लिए जांच का लनदसेश दिया है । अपर समाहर्ता के पत्र के आलोक में यह जांच होगी कि ऐसी जमीन , जिनके खतियान में जाति लोहार दर्ज है और यह संदरेह है कि ्वह अनुसूचित जनजाति का है , तो उनकी जांच होगी । यह दरेखा जायरेगा कि कहीं उकत वयसकत अनुसूचित जनजाति का तो नहीं है ।

बेहद दिलचस्प है लोहरा जनजाति

लोहरा जनजाति का केन्द्रीकरण रांची , सिंहभूम , पलामू , हजारीबाग और संथिाल परगना के जिलों में है । छिट-पुट रूप सरे ही अन्य जिलों में मिलतरे हैं िरेलकन लोहरा की पूरी जनसंखया का तकरीबन 95 प्लतशत उपरोकत जिलों में मिलतरे हैं । लोहरा जनजाति के जी्वन पर भी धर्म का बड़ा प्भा्व है । अन्य जनजातियों की तरह लोहरा जाति भी दरे्वी – दरे्वताओं , जादू – टोना और ट़ेबू आदि में ल्व््वास रखतरे हैं । इन लोगों में भो गोत्र प्रथा है , जैसरे सांड , सौन , मगहिया तुतली , कछुआ और धान , लतकथी । कोई भी लोहरा अपनरे गोत्र में ल्व्वाह नहीं कर सकता है । इनके शादी के समय पाहन ही शादी करातरे हैं और नाचगान में डमकच झूमर बजातरे हैं । करमा , जीतिया और सरहुल तयौहार के रूप में मनातरे हैं । करमा में कर्म परेड , जीतिया में पीपल ्वृक् और सरहुल में सखुआ में पत्ते और लाल मुगसे की बलि दरेतरे हैं । लोहरा जाति की अपनी खास भाषा नहीं है । टूटी – फूटी हिंदी तथिा आस पास की आदम जातियों की भाषा बोलतरे हैं । लोहरा जनजाति की अपनी ल्वशरेरताएँ हैं । परेशा के संबंध में अन्य जनजातियों सरे अधिक कुशल है और व्यवसायिक धंधों में ल्वशरेर रूप रुचि रखतरे हैं । परन्तु एक बात और है जो इनको अन्य जनजातियों सरे अलग करती हैं । इनका न अपना गाँ्व है और न कोई पंचायत । इनके घर जहाँ – तहां मिलतरे हैं और ल्वराह के बाद अपनरे माता – पिता सरे अलग हो जातरे हैं और अपना घर के अंदर कई रसोई घर हो जातरे हैं । इनका घर खर – बांस , छपपर , घास आदि का बनता है , जो जंगल के बीच आसानी सरे उपलबि होता है । इनके घर में कोई खिड़की नहीं होती है । दिन के समय दर्वाजरे सरे रोशनी आती है । दर्वाजरे में लोहरे के कब्जे लगरे रहतरे हैं और जब बाहर जातरे हैं तो ताला बंद कर जातरे हैं । लड़का और लकड़ियाँ तीन ्वर्ष तक कोई कपड़ा नहीं पहनतरे हैं , उसके बाद कमर तक जो कपड़ा पहनतरे हैं , ्वह करिया कहलाता है । पुरूष लोग धोती – कुर्ता पहनतरे हैं । महिलाएं साड़ी का व्यवहार करती हैं । गाँ्व में बिाउज नहीं पहनती हैं , इनका कोई अखाड़ा नहीं होता है , िरेलकन नाच – गान के लिए ्वरे दुसररे अखाड़ा में जातरे हैं । इनका गाँ्व लमलश्त होता है जिसमें मुंडा , उराँ्व और गैर जनजाति लोग रहतरे हैं लोहरागिरी इनका मुखय व्यवसाय है और यरे हसु्वा , टांगी , तीर – धनुष बनातरे हैं । यरे सामग्ी पड़ोस के लोग क्य करतरे हैं अथि्वा बाजार हाट में जाकर बरेचतरे हैं । उनका परेशा मुखयतः लोहरे के औजार और हलथियार बनाना तथिा मरममत करना , उनकी अपनी कोई बसती नहीं होती है ्वह उराँ्व मुंडा ए्वं गैर जनजाति के साथि मिलजुल कर रहतरे हैं और अपनरे कार्य कुशलता सरे मदद पहुँचाकर रोजी कमातरे हैं । काठ का नाद बनातरे हैं , इनकी महिलाऐं प्सूति के समय दाई का काम भी करती है । यही कारण है कि उपरेक्ाककृत अन्य जनजातियों सरे इनकी आलथि्षक , सामाजिक स्थिति बहुत निम्न है और क्यार के लिए अधिक पात्र हैं ।
ebZ 2022 19