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परिणक्त तक नहीं ले जा्या जा सकता ।
डॉ . आंबेडकर के अनुसार हर समाज का वगजीकरण और उप-वगजीकरण होता है लेक्कन परेशानी की बात ्यह है क्क इस वगजीकरण के चिलते वह ऐसे सांचिों में क़्ि्ट हो जाता है क्क एक-दूसरे वर्ग के लोग इसमें न अन्दर जा सकते हैं और न बाहर आ सकते हैं । ्यही जाक्त का क्शकरंजा है और इसे ख़तम क्कए क्बना कोई तरक़्क़ी नहीं हो सकती । सच्ी बात ्यह है क्क शुरू में अत््य समाजों की तरह क्हत्दू समाज
भी चिार वगषों में बँ्टा हुआ था । रिाह्मण , क्क्रि्य , वैश्य और शूद्र । ्यह वगजीकरण मूल रूप से जन्म के आधार पर नहीं था , ्यह कर्म के आधार पर था । एक वर्ग से दूसरे वर्ग में आवाजाही थी लेक्कन हज़ारों वरषों की क्नक्हत सवाथषों कोक्शश के बाद इसे जन्म के आधार पर कर क्द्या ग्या और एक-दूसरे वर्ग में आने-जाने की रीक्त ख़तम हो गई । और ्यही जाक्त की संसथा के रूप में बाद के ्युगों में पहचिाना जाने लगा । अगर आक्थ्यक क्वकास की गक्त को तेज़
क्क्या जाए और उसमें सार्थक हसतक्ेप करके कामकाज के बेहतर अवसर उपलबध कराए जाएँ तो जाक्त व्यवसथा को क्ज़ंदा रख पाना बहुत ही मुश्कल होगा । और जाक्त के क्सद्धांत पर आधारित व्यवसथा का बचि पाना बहुत ही मुश्कल होगा । अगर ऐसा हुआ तो जाक्त के क्वनाश के ज्योक्तराव फुले , डॉ . राममनोहर लोक्ह्या और डॉ . आंबेडकर की राजनीक्तक और सामाक्जक सोचि और दर्शन का मकसद हाक्सल क्क्या जा सकेगा । �
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