डॉ . आंबेडकर को इक्तहास एक ऐसे राजनीक्तक क्चित्तक के रूप में ्याद रखेगा , क्जत्होंने जाक्त के क्वनाश को सामाक्जक , आक्थ्यक और राजनीक्तक परिवर्तन की बुक्न्याद माना था । ्यह बात क्कसी से छुपी नहीं है क्क उनकी राजनीक्तक क्वरासत का सबसे ज़़्यादा ़िा्यदा उठाने वाली पार्टी की नेता , आज जाक्त की संसथा को संभाल कर रखना चिाहती हैं , उसके क्वनाश में उनकी कोई रुक्चि नहीं है ।
आंबेडकरवादी पाक््ट्ड्यों को अब वासतव में इस बात की क्चिंता सताने लगी है क्क अगर जाक्त का क्वनाश हो जाएगा तो उनकी वो्ट बैंक की
राजनीक्त का क्या होगा । डॉ . आंबेडकर की राजनीक्तक सोचि को लेकर कुछ और भ्रांक्त्यां भी हैं । कांशीराम और मा्यावती ने इस क़दर प्रचिार कर रखा है क्क जाक्त की पूरी व्यवसथा का ज़हर महक्र्य मनु ने ही फैला्या था , वही इसके संसथापक थे और मनु की सोचि को ख़तम कर देने मारि से सब ठीक हो जाएगा । लेक्कन बाबा साहब ऐसा नहीं मानते थे । उनके एक बहुचिक्चि्यत और अकादक्मक भाषण के हवाले से कहा जा सकता है क्क जाक्त व्यवसथा की सारी बुराइ्यों को क्लए महक्र्य मनु को ही क्ज़ममेदार नहीं ठहरा्या जा सकता ।
डॉ . अमबेडकर का ्यह भाषण वासतव में कोलंक्ब्या क्व्वक्वद्याल्य में उनके अध्य्यन के बाद पीएचिडी की क्डग्ी के क्लए दाख़िल की गई उनकी थीक्सस Castes । n । ndia : Their Mechanism , Genesis and Development का सारांश भी है । मई-1916 को क्द्या ग्या ्यह भाषण दुक्न्या की कई भाषाओं में छप चिुका है । इसी भाषण में भारत में जाक्त प्रथा के उदगम और क्वकास के बारे में क्वसतार से बता्या ग्या है । जाक्त के क्वनाश के बारे में उन्होंने लाहौर के जात-पांत तोड़क मंडल के क्लए जो भाषण तै्यार क्क्या था , उसमें भी इन क्वचिारों को और पुख़ता क्क्या ग्या है । जात-पांत तोड़क मंडल वाले क्रांतिकारिता का चिोला तो धारण क्कए हुए थे लेक्कन वे जाक्तप्रथा के ज़हर के मूल कारणों पर चिचिा्य से बचिना चिाहते थे । शा्यद इसीक्लए उन्होंने डॉ . आंबेडकर से आग्ह क्क्या क्क उस भाषण में कुछ बदलाव कर दंन लेक्कन वे बदलाव के क्लए राज़ी नहीं हुए । नतीजा ्यह हुआ क्क उनका भाषण रद् कर क्द्या ग्या । बाद में उस भाषण को एक क्कताब की शकल में छाप क्द्या ग्या और वही क्कताब , अक्न्नक्हलेशन ऑ़ि कास्ट , डॉ . बी . आर . आंबेडकर के राजनीक्तक-सामाक्जक दर्शन के बीजक के रूप में पूरी दुक्न्या में पहचिानी जाती है । जाक्त के उदगम और उसके क्वकास की व्याख्या के दौरान ही डॉ . आंबेडकर ने जाक्त संसथा में मनु की संभाक्वत भूक्मका का क्वसतार से वर्णन क्क्या है ।
महक्र्य मनु के बारे में उन्होंने कहा क्क मनु
बहुत ही क्हममती रहे होंगे । डॉ . आंबेडकर का कहना है क्क ऐसा कभी नहीं होता क्क जाक्त जैसा क्शकरंजा कोई एक व्यशकत बना दे और बाक़ी पूरा समाज उसको सवीकार कर ले । उनके अनुसार इस बात की कलपना करना भी बेमतलब है क्क कोई एक आदमी क़ानून बना देगा और पीढ़ी -दर-पीढ़ी उसको मानती रहेंगी । हां , इस बात की कलपना की जा सकती है क्क मनु नाम के कोई तानाशाह रहे होंगे क्जनकी ताक़त के नीचिे पूरी आबादी दबी रही होगी और वे जो कह देंगे , उसे सब मान लेंगे और उन लोगों की आने वाली नसलें भी उसे मानती रहेंगी । उन्होंने कहा क्क मैं इस बात को ज़ोर देकर कहना चिाहता हूँ क्क मनु ने जाक्त की व्यवसथा की सथापना नहीं की क्योंक्क ्यह उनके बस की बात नहीं थी । मनु का ्योगदान बस इतना है क्क उन्होंने इसे एक दाश्यक्नक आधार क्द्या । जहां तक क्हत्दू समाज के सवरूप और उसमें जाक्त के महतव की बात है , वह मनु की हैक्स्यत के बाहर था और उन्होंने वर्तमान क्हत्दू समाज की क्दशा त्य करने में कोई भूक्मका नहीं क्नभाई ।
जाक्त का दा्यरा इतना बड़ा है क्क उसे एक आदमी , चिाहे वह क्जतना ही बड़ा ज्ञाता ्या शाक्तर हो , संभाल ही नहीं सकता । इसी तरह से ्यह कहना भी ठीक नहीं होगा क्क रिाह्मणों ने जाक्त की संसथा की सथापना की । मेरा मानना है क्क रिाह्मणों ने बहुत सारे गलत काम क्कए हैं , लेक्कन उनकी क्मता ्यह कभी नहीं थी क्क वे पूरे समाज पर जाक्त व्यवसथा को थोप सकते । क्हत्दू समाज में ्यह धारणा आम है क्क जाक्त की संसथा का आक्वषकार शासरिों ने क्क्या और शासरि तो कभी गलत हो नहीं सकते । बाबासाहब ने अपने इसी भाषण में एक चिेतावनी और दी थी क्क उपदेश देने से जाक्त की सथापना नहीं हुई थी और इसको ख़तम भी उपदेश के ज़रिए नहीं क्क्या जा सकता । ्यहां ्यह भी सपष्ट कर देना ज़रूरी है अपने इन क्वचिारों के बावजूद डॉ . आंबेडकर ने समाज सुधारकों के ख़िलाफ़ कोई बात नहीं कही । ज्योक्तबा फुले का वे हमेशा सममान करते रहे । हाँ , उन्हें ्यह पूरा विश्वास था क्क जाक्त प्रथा को क्कसी महापुरुष से जोड़ कर उसकी ताक्क्फक
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