में बां्टते तथा लोगों को ईसाइ्यों के प्रपंचि से सावधान करते थे । पं . श्रद्धाराम पर क्हमाचिल प्रदेश केंद्री्य क्व्वक्वद्याल्य के कुलाक्धपक्त डॉ . हरमंक्हत्दर क्संह बेदी ( क्हंदी साक्हत्य सेवा पुरसकार से सम्मानित ) ने ‘ पंक्डत श्रद्धाराम क्िललौरी ग्ंथावली ’ पुसतक संपाक्दत की है , क्जसमें इस घ्टना का क्वसतार से वर्णन क्क्या ग्या है ।
कन्वर्जन के बाद वंक्चितों अर्थात दक्लतों को आरक्ण का लाभ क्मलना बंद हो जाता है , क्योंक्क संक्वधान के अनुसार , आरक्ण का लाभ केवल जाक्तगत आधार पर क्द्या जा सकता है , पांक्थक आधार पर नहीं । लेक्कन इसकी का्ट भी ढूंढ ली गई है । कत्व्ट्ड होने वाले क्हंदुओं- क्सखों से न तो पहनावा बदलने का कहा जाता है , न केश , दाढ़ी , पगड़ी पर रोक लगाई जाती है और न ही उनके क्लए गले में रिॉस पहनने की बाध्यता होती है । ्यक्द कोई रिॉस पहनता भी है तो उसे कपड़ों के नीचिे क्छपाकर रखता है । अलबत्ा , ्ये लोग अपने घरों में ्यीशु की फो्टो के सामने प्रक्तक्दन मोमबत्ी जलाते हैं । अभी ‘ क्कसान आंदोलन ’ के दौरान रिॉस वाले क्सखों ने खूब सुक्ख्यां ब्टोरी हैं । इन चिचिषों की का ्य प्रणाली एजें्टों और आसपास की पररशसथक्त्यों पर क्नभ्यर करती है । ्ये आक्थ्यक रूप से परेशान , गृह कलेश , बीमारी से परेशान लोगों को क्चिक्नित करते हैं । क्िर परेशाक्न्यों का क्नवारण
करने के नाम पर उन्हें चिचि्य ले जा्या जाता है , जहां तरह-तरह के पाखंड व अंधविश्वासों के जरिए इन लोगों का ‘ रिेन वॉश ’ क्क्या जाता है । धीरे-धीरे अपनी परंपरागत आसथा से ्टू्ट कर व्यशकत कब ्यीशु को अपना मुशकतदाता सवीकार कर लेता है , उसे पता तक नहीं चिल पाता । पंजाब के जालंधर , लुक्ध्याना , ब्टाला , अमृतसर आक्द औद्योक्गक नगरों में काम करने वाले दूसरे राज्यों के श्रक्मक परिवार आसानी से इनके झांसे में आ जाते हैं ।
कोरोना काल के दौरान प्रवासी श्रक्मकों पर चिचि्य का प्रभाव बढ़ा है । इनकी बस्तियों के आसपास बड़ी संख्या में छो्ट़े-छो्ट़े चिचि्य खुल गए हैं । ्ये चिचि्य क्दव्यांगों और मानक्सक रोक्ग्यों का इलाज प्रार्थना से करने का दावा करते हैं । इसके क्लए वे पहले से अपने लोगों को ऐसे मरीजों के रूप में बैठाते हैं और क्िर उनसे परेशानी पूछते हैं । इसके बाद कोई पास्टर ्या पादरी ्यीशु से प्रार्थना करता है । प्रार्थना के बाद उनके कक्थत बीमार अनु्या्यी बीमारी ठीक होने का दावा करना शुरू कर देते हें । इस ‘ जादू ’ का असर वहां मौजूद भोले-भाले और कम पढ़़े-क्लखे लोगों पर पड़ता है और वे उनके झांसे में आ जाते हैं । इस तरह ईसाइ्यत का पाखंड व्यशकत दर व्यशकत बढ़ता जाता है ।
38 तरह के चर्च सफरिय
सबसे पहले 1834 में ईसाई प्रचिारक के रूप में ब्रिक््टश नागरिक जॉन लॉरी एवं क्वक्ल्यमस रीड पंजाब आए और अमृतसर में ‘ चिचि्य ऑ़ि नॉर्थ इंक्ड्या ’ की सथापना की । इसके बाद जालंधर में कैथोक्लक चिचि्य और बाद के वरषों में ्यूनाइ्ट़ेड चिचि्य ऑ़ि इंक्ड्या , प्रो्ट़ेस्टें्ट चिचि्य , मेथोक्डस्ट चिचि्य , प्रेसक्ब्ट़ेरर्यन चिचि्य , रोमन कैथोक्लक चिचि्य , इं्टरनल लाइ्ट क्मक्नसट्ीज , क्मीर एवांजेक्लकल फेलोक्शप , पेंक््टकोस्टल क्मशन , इंक्डपेंडें्ट आक्द चिचि्य की सथापना हुई । वर्तमान में राज्य में 38 तरह के चिचि्य काम कर रहे हैं ।
सवतंरिता पूर्व ईसाइ्यों की संख्या तेजी से बढ़ी , पर क्वभाजन के बाद अक्धकतर ईसाई
पश्चिमी पाक्कसतान में रह गए । सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार , क्वभाजन से पूर्व पंजाब में 5,11,299 ईसाई थे । क्वभाजन के बाद 4,50,344 ईसाई पाक्कसतान में रह गए और 60,955 भारत में । 2001 की जनगणना के अनुसार राज्य में 2,92,800 ईसाई थे , जो 2011 में बढ़कर 3,48,230 हो गए जो कुल आबादी का 1.26 प्रक्तशत थे । इस जनगणना के अनुसार , अमृतसर में 2.18 , गुरदासपुर में 7.68 , जालंधर में 1.19 प्रक्तशत इसाई रहते हैं । इन क्जलों में ईसाइ्यों की आबादी अक्धक होने का कारण ्यह है क्क ्यहां उद्योग और सैत््य छावक्न्यां थीं ।
सेवा करने से रोकते हैं ईसाई
अगर आप क्हंदू-क्सख हैं और गरीबों की सेवा करना चिाहते हैं तो इसकी गारं्टी नहीं है क्क आप आसानी से ऐसा कर सकते हैं । कम से कम जालंधर पशबलक स्कूल ( गदईपुर ) की प्राचिा्या्य श्रीमती राजपाल कौर का तो ्यही अनुभव है । श्रीमती कौर ने बता्या क्क वे भगत क्संह कॉलोनी के पास झुगगी-झोंपड़ी में गुरुकुल नामक स्कूल खोलना चिाहती थीं ताक्क गरीब बच्ों को पढ़ा्या जा सके । इसके क्लए उन्होंने एक मक्हला अध्याक्पका की व्यवसथा की , परंतु जब उकत अध्याक्पका बच्ों को पढ़ाने जाती तो वहां आने वाले ईसाई उसे परेशान करते । तंग आकर श्रीमती कौर ने इसकी क्शका्यत पुक्लस को की , तब जाकर बात बनी । वर्तमान में स्कूल सफलतापूर्वक चिल रहा है और कई दर्जन परिवारों के बच्े ्यहां पढ़ते हैं ।
अंग्ेज सैत््य अक्धकारी कन्वर्जन के क्लए पादरर्यों को काफी प्रोत्साहित करते थे ताक्क कन्वर्टेड लोगों का प्र्योग सवतंरिता संग्ाम के क्वरुद्ध क्क्या जा सके । इसके अलावा , अंग्ेजों ने अपने उद्योगों में नौकरी देते के क्लए भी कन्वर्जन को आधार बन्या । मजबूरी में गरीब लोग ईसाई बनते चिले गए । छापाखाना के आक्वषकार के बाद सूबे में ईसाई साक्हत्य उर्दू व गुरमुखी में छापना आसान हो ग्या क्जससे बड़ी तेजी से राज्य में ईसाइ्यत का प्रचिार-प्रसार हुआ ।
( साभार ) ebZ 2021 Qd » f ° f AfaQû » f ³ f ´ fdÂfIYf 47