पार्टी की कमान संभाल रही है , उन्हें चिुनाव मैदान में पराक्जत करना आसान नहीं हैI
राज्य में भाजपा सत्ा तक पहुंचिने में क्विल रही है , लेक्कन अपने प्रदर्शन के बल पर मुख्य क्वपक्ी पार्टी की कुसजी हाक्सल करने में सफल रही । इतना ही नहीं , सुभेंदु अक्धकारी ने ममता बनजजी को पराक्जत करके ्यह भी क्दखा क्द्या क्क उनकी राजनीक्त तृणमूल कांग्ेस की मोहताज नहीं है । वामपंथी दलों और कांग्ेस की ख़तम होती राजनीक्तक भूक्मका के कारण क्वधानसभा में मजबूत क्वपक् की जो कमी महसूस की जा रही थी , वह कमी तो भाजपा ने पूरी कर दीI पर सत्ा तक न पहुंचिने में भाजपा की रणनीक्तक असफलता को अनदेखा भी नहीं क्क्या जा सकता ।
परिणाम बताते हैं क्क लगभग तीन दर्जन
सी्टों पर भाजपा उममीदवार की पराज्य सौ से लेकर महज चिार हजार वो्टों से हुई । इसी तरह कई आरक्षित सी्ट भी भाजपा के हाथ से चिली ग्यी , जहां शत-प्रक्तशत भाजपा उममीदवार के क्वज्य होने का दावे क्क्ये जा रहे थे । नगरी्य क्ेरिों से लेकर ग्ामीण क्ेरिों में भाजपा की कई सी्टों पर पराज्य का बड़ा कारण तृणमूल के उन नेताओं के रूप में भी देखा जा सकता है , जो चिुनाव से कुछ सम्य पहले तृणमूल को छोड़कर भाजपा में शाक्मल हुए और क्िर आनन -फानन में उन्हें क््टक्ट देकर मैदान में उतार क्द्या ग्या । ऐसे नेताओं को क््टक्ट देते सम्य पार्टी के उन नेताओं और का ्यकर्ताओं की अनदेखी ग्यी , जो जमीनी शसथक्त्यों से भलीभांक्त पररक्चित थे । आरोप ्यह भी लगा्या जा रहा है क्क ममता बनजजी ने सुक्न्योक्जत रूप से अपने
कई नेताओं को भाजपा से क््टक्ट क्दलाकर अपनी क्वज्य को सुक्नश्चित क्क्या ! अगर ऐसा नहीं होता तो तृणमूल से भाजपा में शाक्मल होकर चिुनाव लड़ने वाले अक्धकांश नेता पराक्जत नहीं होते ।
इसी तरह दक्लत और आक्दवासी वर्ग के क्लए आरक्षित कई सी्टों पर भाजपा की हार का बड़ा कारण पार्टी के दक्लत नेताओं का सथानी्य जनता से न जुड़ पाना भी रहा । पार्टी में दक्लत और आक्दवासी मतदाताओं से सीधा जुड़ाव रखने वाले नेताओं का अभाव भी इसका बड़ा कारण है । क्सि्फ नरेंद्र मोदी , अक्मत शाह , जे पी नड्ा जैसे नेताओं के बल पर दक्लत और आक्दवासी मतदाताओं को पार्टी से जोड़ना और उन्हें पार्टी में बना्ये रखना आसान नहीं है । थावरचिंद्र गहलोत , डॉ क्वज्य सोनकर शासरिी जैसे जमीनी नेताओं का अभाव पार्टी में सपष्ट रूप से देखा जा सकता है । दक्लत नेतृतव के प्रश्न पर पार्टी के कई नेता चिुपपी साध लेते हैं । परन्तु केंद्र से लेकर राज्य सतर पर मजबूत दक्लत नेताओं का न होना पार्टी को भारी पड़ सकता है । पश्चिम बंगाल की कई आरक्षित सी्टों में क्मली हार का ्यह बड़ा कारण ्यह भी रहा है । ममता सरकार के क्खलाफ सत्ा क्वरोधी जो लहर चिल रही थी , उसे भुनाने में भाजपा असफल ही रही । ध्ुवीकरण के मामले में भी भाजपा का हर दांव खाली ग्या । ममता ने चिंडी पाठ , पूजा- अचि्यना और गोरि का इसतेमाल करके क्हत्दू मतदाताओं को अपने पाले में तो क्क्या ही , साथ ही मुशसलम मतदाताओं का पूर्ण रूप से ध्ुवीकरण करके एकमु्त वो्ट हाक्सल करने में भी आगे रही ।
बंगाल के परिणाम ने तृणमूल नेता ममता बनजजी में क्जस नए आतमक्व्वास को पैदा क्क्या है , उसका असर जलद ही राषट्रीय राजनीक्त में नजर आएगा । मोदी और भाजपा क्वरोध के क्लए समपूण्य क्वपक् की क्नगाह ममता पर क््टक ग्यी है । ऐसे में अगर आने वाले सम्य में राज्य की क्जममेदारी अपने भतीजे अक्भरेक बनजजी के हाथ में सौप कर , वह क्दलली में भाजपा क्वरोधी राजनीक्त की धुरी का केंद्र बनती हैं , तो ्यह कोई
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