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संत रविदास और इलिाम संत रविदास जयंती के अवसर पर विशेष रूप से प्काश्शत
डॉ क्ववेक आर्य
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य भीम का नारा लगाने वाले दलित भाइयों को आज के कुछ राजनेता कठपुतली के समान प्रयोग कर रहे है । यह मानसिक गुलामी का लक्ण है । दलित-मुससलम गठजोड़ के रूप में बहकाना भी इसी कड़ी का भाग हैं । दलित समाज में संत रविदास का नाम प्रमुख समाज सुधारकों के रूप में समरण किया जाता हैं । आप जा्टव या चमार कुल से समबंलधत माने जाते थे । चमार शबद चंवर का अपभ्रंश है ।
चर्ममारी राजवंश का उललेख महाभारत जैसे प्राचीन भारतीय वांगमय में मिलता है । प्रसिद्ध विद्ान डॉ विजय सोनकर शासत्ाी ने इस विषय पर गहन शोध कर चर्ममारी राजवंश के इतिहास पर पुसतक लिखा है । इसी तरह चमार शबद से मिलते-जुलते शबद चंवर वंश के क्लत्यों के बारे में कर्नल ्टाड ने अपनी पुसतक ‘ राजसिान का इतिहास ’ में लिखा है । चंवर राजवंश का शासन पसशचमी भारत पर रहा है । इसकी शाखाएं मेवाड़ के प्रतापी सम्रा्ट महाराज बापपा रावल के वंश से मिलती हैं । संत रविदास जी महाराज लमबे समय तक चित्ौड़ के दुर्ग में महाराणा सांगा के गुरू के रूप में रहे हैं । संत रविदास जी महाराज के महान , प्रभावी वयसकततव के कारण बड़ी संखया में लोग इनके शिषय बने । आज भी इस क्ेत्ा में बड़ी संखया में रविदासी पाये जाते हैं ।
उस काल का मुससलम सुलतान सिकंदर लोधी अनय किसी भी सामानय मुससलम शासक की तरह भारत के हिनदुओं को मुसलमान बनाने की उधेड़बुन में लगा रहता था । इन सभी आकमणकारियों की द्रसष्ट ग़ाज़ी उपाधि पर रहती थी । सुलतान सिकंदर लोधी ने संत रविदास जी महाराज मुसलमान बनाने की जुगत में अपने
मुललाओं को लगाया । जनशुलत है कि वो मुलला संत रविदास जी महाराज से प्रभावित हो कर सवयं उनके शिषय बन गए और एक तो रामदास नाम रख कर हिनदू हो गया । सिकंदर लोदी अपने षड्यंत्ा की यह दुर्गति होने पर चिढ़ गया और उसने संत रविदास जी को बंदी बना लिया और उनके अनुयायियों को हिनदुओं में सदैव से निषिद्ध खाल उतारने , चमड़ा कमाने , जूते बनाने के काम में लगाया । इसी दुष्ट ने चंवर वंश के क्लत्यों को अपमानित करने के लिये नाम बिगाड़ कर चमार समबोलधत किया । चमार शबद का पहला प्रयोग यहीं से शुरू हुआ । संत रविदास जी महाराज की ये पंसकतयाँ सिकंदर लोधी के अतयाचार का वर्णन करती हैं । वेद धर्म सबसे बड़ा , अनुपम सच्चा ज्ान फिर मैं कयों छोड़ँ इसे पढ़ लूँ झू्ट क़ुरान वेद धर्म छोड़ँ नहीं कोसिस करो हजार तिल-तिल का्टो चाही गोदो अंग क्टार चंवर वंश के क्लत्य संत रविदास जी के बंदी बनाने का समाचार मिलने पर दिलली पर चढ़ दौड़े और दिललीं की नाकाबंदी कर ली । विवश हो कर सुलतान सिकंदर लोदी को संत रविदास
जी को छोड़ना पड़ा । इस झप्ट का लजक इतिहास की पुसतकों में नहीं है मगर संत रविदास जी के ग्नि रविदास रामायण की यह पंसकतयाँ सतय उद्घाटित करती हैं
बादशाह ने वचन उचारा । मत पयादरा इसलाम हमारा ।।
खंडन करै उसे रविदासा । उसे करौ प्राण कौ नाशा ।।
जब तक राम नाम र्ट लावे । दाना पानी यह नहीं पावे ।।
जब इसलाम धर्म सवीरकारे । मुख से कलमा आप उचारै ।।
पढे नमाज जभी चितलाई । दाना पानी तब यह पाई ।।
जैसे उस काल में इसलालमक शासक हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहते थे वैसे ही आज भी कर रहे हैं । उस काल में दलितों के प्रेरणास्ोत् संत रविदास सरीखे महान चिंतक थे । जिनहें अपने प्रान नयोछावर करना सवीकार था मगर वेदों को तयाग कर क़ुरान पढ़ना सवीकार नहीं था ।
मगर इसे ठीक विपरीत आज के दलित राजनेता अपने तुचछ लाभ के लिए अपने पूर्वजों की संस्कृति और तपसया की अनदेखी कर रहे हैं ।
दलित समाज के कुछ राजनेता जिनका काम ही समाज के छो्टे-छो्टे खंड बाँ्ट कर अपनी दुकान चलाना है अपने हित के लिए हिनदू समाज के ्टुकड़े-्टुकड़े करने का प्रयास कर रहे हैं ।
आईये डॉ अमबेडकर की सुने जिनहोंने अनेक प्रलोभन के बाद भी इसलाम और ईसाइयत को सवीकार करना सवीकार नहीं किया ।
( हर हिनदू राषट्वादी इस लेख को शेयर अवशय करे जिससे हिनदू समाज को तोड़ने वालों का षड़यंत् विफल हो जाये ) �
50 ekpZ 2023