आर्यसमाज और दलितोद्ार
रोहतक के एक मोहलले में दलित भाई रहते थे । वहाँ एक चमड़े का कारखाना था । उस कारखाने से भयंकर दुर्गनध आती थी । किसी के लिए वहाँ कुछ समय के लिए रुकना कष्टप्रद होता था । दुर्गनध सबका जीना दुर्भर कर देती थी । दलित समाज में गरीबी , अशिक्ा , पिछड़ापन , नशा आदि वयापत था । उनकी शोचनीय अवसिा और मोहलले को देखकर कोई वहां आना पसंद नहीं करता था । इसी मोहलले में शी परमानंद जी विद्ािटी ने एक पाठशाला खोल दी । उनहें दिन-रात दलितोद्धार का दिन रहता था । दीन बालक-बालिकाओं
को लशलक्त बनाकर उनहें जो आनंद मिलता था । उसका वर्णन न वाणी कर सकती है और न ही लेखनी ।
एक बार हिसार के सवामी अलनिदेव जी भीषम को विद्ािटी जी वह पाठशाला दिखाने ले गये । भीषम जी के अनुसार वहां दुर्गनध के कारण खड़ा होना तक मुसशकल था । न जाने विद्ािटी जी कैसे तपसवी हैं , जो घं्टों उस दुर्गनध में बिताते हैं । कई वर्ष तक वातावरण को जी वहाँ यह सेवा यज् चलाते रहे । उनके अनेक दलित शिषय वहां पढ़कर बड़े बड़े उच्च अधिकारी बने । उन पर आर्यसमाज की छाप
है । वे विद्ािटी जी का यशोगान करते नहीं थकते । ऋषि की पलवत् शिक्ा से दुर्गनध युकत वातावरण को सुगंधित करके उनहोंने नरक को सवग्व बना डाला । वे आर्यसमाज की नींव के पतिर थे ।
साभार- तड़प वाले-तड़पाती जिनकी कहानी
( खेद है कि राजनीतिक महतवकांशा के चलते आज दलित समाज आर्यसमाज द्ारा किये गए महान दलितोद्धार कार्य का समरण तक नहीं करता ।)
डॉ अम्ेडकर : क्ा आर्य विदेशी है ?
डॉ क्ववेक आर्य
कई दिनों से देख रहा हूँ । कुछ अमबेडकरवादी / कमयुलनस्ट / जातिगत राजनीति करने वाले नेता लोग आयषों को विदेशी कह रहे है । इनके अनुसार ब्ाहण , क्लत्य , वैशय , जा्ट , अहीर , गुर्जर सभी विदेशी है । इन अमबेडकरवादियो की सोच के विपरीत डॉ अमबेडकर आयषों को विदेशी नहीं मानते ?
इसलिए मैं बाबा भीमराव अमबेडकर जी के ही विचार रखूंगा जिससे ये प्रूफ होगा की आर्य विदेशी नहीं है ।
1 ) डॉक्टर अमबेडकर राइल्टंग एंड सपीचेस खंड 7 प्रषठ में अमबेडकर जी ने लिखा है कि आयषों का मूल-सिान ( भारत से बाहर ) का सिद्धांत वैदिक साहितय से मेल नहीं खाता । वेदों में गंगा , यमुना , सरसवती के प्रति आतमीय भाव है । कोई विदेशी इस तरह नदी के प्रति आतम स्ेह समबोधन नहीं कर सकता ।
2 ) डॉ अमबेडकर ने अपनी पुसतक " शुद्र कौन "? Who were shudras ? में सपष्ट रूप से विदेशी लेखकों की आयषों के बाहर से आकर यहाँ पर बसने समबंलधत मानयताओं का खंडन किया है । डॉ अमबेडकर लिखते है-
1 ) वेदों में आर्य जाति के समबनध में कोई जानकारी नहीं है ।
2 ) वेदों में ऐसा कोई प्रसंग उललेख नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि आयषों ने भारत पर आकमण कर यहाँ के मूलनिवासियों दासों दसयुओं को विजय किया ।
3 ) आर्य , दास और दसयु जातियों के अलगाव को सिद्ध करने के लिए कोई साक्य वेदों में उपलबध नहीं है ।
4 ) वेद में इस मत की पुष्टि नहीं की गयी कि आर्य , दास और दसयुओं से भिन्न रंग के थे ।
5 ) डॉ अमबेडकर ने सपष्ट रूप से शुद्र को भी आर्य कहा है ( शुद्र कौन ? प्रषठ संखया 80 )
अगर अमबेडकरवादी सच्चे अमबेडकर को मानने वाले है तो अमबेडकर जी की बातों को माने ।
ekpZ 2023 43