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से हिचकते थे । यह एक प्रकार का सामाजिक बहिषकार रूपी प्रतिरोध था । पाठक समझ सकते है कैसे सूअरों के माधयम से दलितों ने अपनी धर्मरक्ा की थी । उनके इस कदम से उनकी बससतयां मलिन और बिमारियों का घर बन गई । मगर उनहें मौलवियों से छु्टकारा मिल गया ।
4 . दलित हिंदुओं का सवर्ण हिंदुओं के साथ
मिलकर संघर्ष
जैसे सवर्ण हिनदू समाज मुसलमानों के अतयाचारों से आतंकित था वैसे ही हिनदू दलित भी उनके अतयाचारों से पूरी तरह आतंकित था । यही कारण था जब जब हिंदुओं ने किसी मुससलम हमलावर के विरोध में सेना को एकत् किया । तब तब सवर्ण एवं दलित दोनों हिंदुओं ने बिना किसी भेदभाव के एक साथ मिलकर उनका प्रतिवाद किया । मैं यहाँ पर एक प्रेरणादायक घ्टना कोउदहारण देना चाहता हूँ । तैमूर लंग ने जब भारत देश पर हमला किया तो उसने कूरता और अतयाचार की कोई सीमा नहीं थी । तैमूर लंग के अतयाचारों से पीड़ित हिनदू जनता ने संगठित होकर उसका सामना करने का निशचय किया । खाप नेता धर्मपालदेव के नेत्रतव में पंचायती सेना को एकत् किया गया । इस सेना के दो उपप्रधान सेनापति थे । इस सेना के सेनापति जोगराजसिंह नियुकत हुए थे जबकि उपप्रधान सेनापति - ( 1 ) धूला भंगी
( बालमीकी ) ( 2 ) हरबीर गुलिया जा्ट चुने गये । धूला भंगी जि० हिसार के हांसी गांव ( हिसार के निक्ट ) का निवासी था । यह महाबलवान् , निर्भय योद्धा , गोरीला ( छापामार ) युद्ध का महान् विजयी धाड़ी था । जिसका वजन 53 धड़ी था । उपप्रधान सेनापति चुना जाने पर इसने भाषण दिया कि - “ मैंने अपनी सारी आयु में अनेक धाड़े मारे हैं । आपके सममान देने से मेरा खूब उबल उठा है । मैं वीरों के सममुख प्रण करता हूं कि देश की रक्ा के लिए अपना खून बहा दूंगा तथा सर्वखाप के पलवत् झणडे को नीचे नहीं होने दूंगा । मैंने अनेक युद्धों में भाग लिया है तथा इस युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दे दूंगा ।” यह कहकर उसने अपनी जांघ से खून निकालकर प्रधान सेनापति के चरणों में उसने खून के छीं्टे दिये । उसने मयान से बाहर अपनी तलवार निकालकर कहा “ यह शत्ु का खून पीयेगी और मयान में नहीं जायेगी ।” इस वीर योद्धा धूला के भाषण से पंचायती सेना दल में जोश एवं साहस की लहर दौड़ गई और सबने जोर-जोर से मात्रभूमि के नारे लगाये ।
दूसरा उपप्रधान सेनापति हरबीरसिंह जा्ट था । यह हरयाणा के जि० रोहतक गांव बादली का रहने वाला था । इसकी आयु 22 वर्ष की थी और इसका वजन 56 धड़ी ( 7 मन ) था । यह निडर एवं शसकतशाली वीर योद्धा था । उप- प्रधानसेनापति हरबीरसिंह गुलिया ने अपने पंचायती सेना के 25,000 वीर योद्धा सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों के बड़े दल पर भयंकर धावा बोल दिया जहां पर तीरों तथा भालों से घमासान युद्ध हुआ । इसी घुड़सवार सेना में तैमूर भी था । हरबीरसिंह गुलिया ने आगे बढ़कर शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह घोड़े से नीचे गिरने ही वाला था कि उसके एक सरदार लखजर ने उसे समभालकर घोड़े से अलग कर लिया । तैमूर इसी भाले के घाव से ही अपने देश समरकनद में पहुंचकर मर गया । वीर योद्धा हरबीरसिंह गुलिया पर शत्ु के 60 भाले तथा तलवारें एकदम ्टू्ट पड़ीं जिनकी मार से यह योद्धा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा । उसी समय प्रधान सेनापति
जोगराजसिंह गुर्जर ने अपने 22000 मलल योद्धाओं के साथ शत्ु की सेना पर धावा बोलकर उनके 5000 घुड़सवारों को का्ट डाला । जोगराजसिंह ने सवयं अपने हाथों से अचेत हरबीर सिंह को उठाकर यथासिान पहुंचाया । परनतु कुछ घण्टे बाद यह वीर योद्धा वीरगति को प्रापत हो गया । हरद्ार के जंगलों में तैमूरी सेना के 2805 सैनिकों के रक्ादल पर भंगी कुल के उपप्रधान सेनापति धूला धाड़ी वीर योद्धा ने अपने 190 सैनिकों के साथ धावा बोल दिया । शत्ु के काफी सैनिकों को मारकर ये सभी 190 सैनिक एवं धूला धाड़ी अपने देश की रक्ा हेतु वीरगति को प्रापत हो गये ।
( सनदभ्व-जा्ट वीरों का इतिहास : दलीप सिंह अहलावत , प्रषठ 380-383 )
हमारे महान इतिहास की इस लुपत प्रायः घ्टना को यहाँ देने के दो प्रयोजन है । पहला तो यह सिद्ध करना कि हिनदू समाज को अगर अपनी रक्ा करनी है तो उसे जातिवाद के भेद को भूलकर संगठित होकर विधर्मियों का सामना करना होगा । दूसरा इससे यह भी सिद्ध होता है कि उस काल में जातिवाद का प्रचलन नहीं था । धूला भंगी ( बालमीकी ) अपनी योगयता , अपने क्लत्य गुण , कर्म और सवभाव के कारण सवर्ण और दलित सभी की लमलशत धर्मसेना का नेत्रतव किया ।
जातिवाद रूपी विषबेल हमारे देश में पिछली कुछ शतासबदयों में ही पोषित हुई । वर्तमान में भारतीय राजनीति ने इसे अधिक से अधिक गहरा करने के अतिरिकत कुछ नहीं किया ।
5 . भसकत काल के दलित संतों जैसे रविदास , कबीरदास द्ारा इसलाम की मानयताओं की क्टु आलोचना
अगर इसलाम दलितों के लिए हितकर होता तो हिनदू समाज में उस काल में धर्म के नाम पर प्रचलित अनधलवशवास और अंधपरंपराओं पर तीखा प्रहार करने वाले दलित संत इसलाम की भरपे्ट प्रशंसा करते । इसके विपरीत भसकत काल के दलित संतों जैसे रविदास , कबीरदास द्ारा इसलाम की मानयताओं की क्टु आलोचना करते मिलते है । �
ekpZ 2023 31