eMag_March2022_DA | Page 38

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कबजा था उस पर सरकार का कबजा हो ग्या । ्यह जमीन अब जीएम लैंड के नाम सदे जाना जानदे लगा ।
खवत्यान को लदेकर झारखंड में फिर उबाल आ्या और आदिवासी के साथ मूलवासी नदे भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल वद्या है । खवत्यान सदे सभी को भावनातमक लगाव है , िदे इसके लिए किसी भी हद तक जानदे को तै्यार हैं । खवत्यान सदे आदिवासी और मूलवासी की भावना सदे खिलवाड नहीं वक्या जा सकता , खवत्यान सिर्फ जमीन का दस्तावेज ही नहीं है बकलक सामाजिक व्यवस्ा का दस्तावेज भी है । संताल परगना एसपीटी ए्ट लागू होनदे के बाद भी काशतकारी अवधवन्यम का उलंघन जारी है । सीएनटी और एसपीटी ए्ट झारखंड के आदिवासी के लिए सुरक्षा कवच कहा जा सकता है । संताल परगना जिला का निर्माण वर्ष 1855 में संतालों के हूल विद्रोह के फलसिरूप हुआ । झारखंड राज्य का निर्माण बिरसा मुंडा के जनमवदन 15 नवंबर 2000 को हुआ । संताल परगना के वरिष्ट अवधि्ता डा बासुददेि बदेसरा के अनुसार संताल परगना में 1856 में संताल पुलिस रूलस था । संताल परगना सदेटलमेंट रदेगुलदेशन ऐ्ट 1872 के बाद संताल परगना काशतकारी कानून 1949 लागू वक्या ग्या ।
काशतकारी कानून में प्रावधान है कि ्यहां की जमीन हसतांतरित नहीं की जा सकती । संताल परगना काशतकारी कानून 1949 की धारा 2 में ग्ाम प्रधानों , परगनैत को कई अधिकार वद्यदे ग्यदे ्दे । संताल परगना में भी खवत्यानी रै्यतों की संख्या अधिक है जो आदिवासी और मुलवासी हैं । ्यहां के रै्यतों की भूमि की सुरक्षा के वल्यदे अनदेक प्रावधान हैं । बावजूद इसके अवैध दखल वक्या जा रहा है ।
राज्य में अब न्यदे सिरदे सदे भूमि मुक्त आंदोलन की तै्यारी की जा रही है । 1932 खवत्यानी विवाद थमनदे का नाम नहीं लदे रहा है । आदिवासी सेंगेंल अवभ्यान के कमिश्नर मुर्मू बतातदे हैं कि झारखंड के मुख्यमंत्ी हदेमंत सोरदेन आदिवासी विरोधी हैं , आदिवासी भाषा और झारखंडी डोमिसाईल नीति जब तक सरकार लागू नहीं करती तब तक उनका विरोध वक्या जा्यदेगा । स्थानिय नीति लागू करानदे के लिए गांव गांव में प्रदर्शन वक्या जा रहा है । संताल परगना के आदिवासी नदेता सुनी टुडटू , दुर्गा मरांडी , सनातन टुडटू , मुनि मुर्मू , मलोती हांसदा , गुरूवा मुर्मू , प्रमिला टुडटू , दुलड मुर्मू , मकलू किस्कू समदेत अनदेक नदेताओं नदे कहा कि हदेमंत सोरदेन सरकार के खिलाफ आंदोलन जारी रहदेगा ।
1932 के खवत्यान नीति लागू करानदे को
लदेकर राज्य के सभी जिलों के गांव गांव में बैठकों का दौर जारी है । बाहरी भाषाओं को क्षदेत्रीय भाषा घोषित करनदे की नीति का पुरजोर विरोध वक्या जा्यदेगा । झारखंड में चल रहदे स्ानी्यता नीति एवं भाषा विवाद के मामलों को सांसदों नदे राष्ट्रपति तक पहुंचा्या । गिरिडीह के सांसद चंद्र प्रकाश चौधरी , जमशदेदपुर के सांसद विघुत वरण महतो , पुरूवल्या के सांसद ज्यवोतम्य सिंह महतो और गोवम्या एमएलए डा लंबोदर महतो नदे राष्ट्रपति को ज्पन पत् सौंपा । सांसदों नदे मांग की है कि अविलंब मगही , भोजपुरी और अन्य भाषाओं को क्षदेत्रीय भाषा की सूची सदे हटा्या जा्यदे और झारखंड की 9 जनजाती्य भाषाओं को ही क्षदेवत््य भाषा में रखा जा्यदे । राज्य में क्षदेत्रीय भाषा की अनददेखी पर सरकार के खिलाफ आदिवासी मूलवासी साथ साथ हैं , लदेवकन सरकार अब तक इसकी अनददेखी कर रही है । राजनीतिक दल इस मामलदे में चुपपी साधदे हुए हैं । कई संगठनों की ओर सदे इस मुद्दे को तुल वद्या जा रहा है । जदेपीएससी और अन्य प्रवत्योगी परीक्षा के छात्ों में भी उबाल ददेखा जा रहा है । ग्ामीणों का कहना है कि बाहरी भाषा को प्रमुखता वद्या जा रहा है और स्ानी्य भाषा की उपदेक्षा की जा रही है जिसदे बर्दासत नहीं वक्या जा सकता है । �
38 दलित आं दोलन पत्रिका ekpZ 2022