eMag_March2022_DA | Page 20

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शनारस और अन्य वर्ग की महिलाओं नदे भी विद्रोह वक्या । उनके विद्रोह को दबानदे के लिए एक कहानी सामनदे आती है जिसमें रानी ' अन्तंगल ' नदे एक दलित महिला का सतन कटवा वद्या था ।
अं ग्ेजों के बढ़ते दबदबे से महिलाओ ंको मिली राहत
इस कुप्रथा के खिलाफ विद्रोह करनदे वालदे लोग पकड़़े जानदे के डर सदे श्ीलंका चलदे गए । वहां की चा्य बगानों में काम करनदे लगदे । इसी दौरान त्ाििकोर में अंग्रेजों का दखल बढ़ा । 1829 में त्ाििकोर के दीवान मुनरो नदे कहा , “ अगर महिलाएं ईसाई बन जाएं तो उन पर हिनदुओं का ्यदे वन्यम नहीं लागू होगा । िदे सतन ढक सकरेंगी ।” मुनरो के इस आददेश सदे ऊंची जाति के लोगों में गुससा भर ग्या , लदेवकन अंग्रेज फैसलदे पर टिके रहदे । 1859 में अंग्रेजी गवर्नर चालसना ट्ऱेिदेवल्यन नदे त्ाििकोर में इस वन्यम को रद् कर वद्या । अब हिंसा करनदे वालदे बदल गए । अंग्रेजों के इस कदम का विरोध करनदे वालदे
लोगों नदे लूटपाट शुरू कर दी । नादर महिलाओं को चुन — चुन कर निशाना बना्या ग्या और उनके अनाज जला दिए गए । इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि इस सामाजिक उपद्रव दौरान नादर जाति कि दो महिलाओं को सरदेआम फांसी पर भी चढ़ा वद्या ग्या । अंग्रेजी दीवान जर्मनी दास नदे अपनी किताब ' महारानी ' में इस कुप्रथा का जिक्र करतदे हुए लिखा , “ संघर्ष लंबा चला । 1865 में प्रजा जीत गई और सभी को पूरदे कपड़़े पहननदे का अधिकार मिल ग्या । इस अधिकार के बावजूद कई हिससों में दलितों को कपड़़े न पहननदे ददेनदे की कुप्रथा चलती रही । आगदे चलकर 1924 में ्यह कलंक पूरी तरफ सदे खतम हो ग्या , क्योंकि उस ि्त पूरा ददेश आजादी की लड़ाई में ककूद पड़ा था ।”
नांगेली को इतिहास मानता है बहादुरी की मूर्ति
केरल के श्ी शंकराचा्यना संसकृत विशिविद्ाल्य में जेंडर इकोलॉजी और दलित सटडीज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शीबा केएम
कहती हैं , " ब्रेसट टै्स का मकसद जातिवाद के ढांचदे को बनाए रखना था ।" नंगदेली के पड़पोतदे मणि्यन िदेलू कहतदे हैं कि मुझदे नांगदेली के परिवार की संतान होनदे पर गर्व है । उनहोंनदे ्यदे फैसला अपनदे लिए नहीं , बकलक सारी औरतों के लिए वक्या था । उनके त्याग सदे ही राजा को ्यदे कर वापस लदेना पड़ा था । डॉ . शिबा कहती हैं कि नांगदेली के बारदे में जितनी चर्चा होनी चाहिए थी उतनी हुई नहीं । उनहोंनदे कारण बतातदे हुए कहा , “ इतिहास हमदेशा पुरुषों की नजर सदे लिखा ग्या है । पिछलदे कुछ दशकों में महिलाओं के बारदे में जानकारी जुटानदे का क्रम शुरु हुआ है । उममीद है कि नांगदेली की वीरता और उनका त्याग लोगों के बीच पहुंचदे ।” नांगदेली नदे अपनदे त्याग सदे क्रांति रची । उनहोंनदे एक शर्मनाक टै्स को खतम करनदे के लिए अपनी जान ददे दी । केरल के मुलचछीपुरम में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है । जहां लोग जातदे हैं सिर झुकातदे हैं । लोग लाख भूलनदे ्या भुलवानदे की कोशिश करेंगदे , लदेवकन नांगदेली को भुला्या नहीं जा सकेगा । �
20 दलित आं दोलन पत्रिका ekpZ 2022