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समस्ाओ ंकी जड़ है अलग- अलग " पर्सनल लॉ "
समग्र , समावेशी और एकीकृ त " भारतीय नागरिक संहिता " समय की मांग
अश्िनी उपाध्ा् ns
श के सभी नागरिकों के लिए एक समग् समािदेशी और एकीकृत " भारती्य नागरिक संहिता " के स्ान पर अलग -अलग " पर्सनल लॉ " लागू होनदे सदे एक नहीं अनदेक समस्याएं हैं । जबकि आर्टिकल 14 के अनुसार ददेश के सभी नागरिक एक समान हैं , आर्टिकल 15 जाति धर्म भाषा क्षेत्र और जनम स्ान के आधार पर भदेदभाव का वनरदेध करता है , आर्टिकल 16 सबको समान अवसर उपलबध कराता है , आर्टिकल 19 ददेश मदे कहीं पर भी जाकर पढ़नदे रहनदे बसनदे रोजगार करनदे का अधिकार ददेता और आर्टिकल 21 सबको सममान पूर्वक जीवन जीनदे का अधिकार ददेता है । आर्टिकल 25 धर्म पालन का अधिकार ददेता है अधर्म का नहीं , रीवत्यों को पालन करनदे का अधिकार ददेता है कुरीवत्यों का नहीं , प्रथाओं को पालन करनदे का अधिकार ददेता है कुप्रथाओं का नहीं । ददेश के सभी नागरिकों के लिए एक समग् समािदेशी और एकीकृत " भारती्य नागरिक संहिता " लागू होनदे सदे आर्टिकल 25 के अंतर्गत प्रापत मूलभूत धार्मिक अधिकार जैसदे पूजा , नमाज ्या प्रार्थना करनदे , व्रत ्या रोजा रखनदे तथा मंदिर , मकसजद , चर्च , गुरुद्ारा का प्रबंधन करनदे ्या धार्मिक स्कूल खोलनदे ,
धार्मिक शिक्षा का प्रचार प्रसार करनदे ्या विवाह- निकाह की कोई भी पद्धति अपनानदे ्या ममृत्यु पशचात अंतिम संसकार के लिए कोई भी तरीका अपनानदे में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होगा ।
विवाह की न्यूनतम उम्र , विवाह विच्छेद ( तलाक ) का आधार , गुजारा भत्ता , गोद लदेनदे का वन्यम , विरासत का वन्यम और संपत्ति का अधिकार सहित उपरो्त सभी विर्य सिविल राइट और ह्ूमन राइट सदे समबकनधत हैं जिनका न तो मजहब सदे किसी तरह का संबंध है और न तो इनहें धार्मिक ्या मजहबी व्यवहार कहा जा सकता है लदेवकन आजादी के 75 साल बाद भी धर्म ्या मजहब के नाम पर महिला-पुरुष में भदेदभाव जारी है । हमारदे संविधान निर्माताओं नदे अनुच्छेद 44 के माध्यम सदे ' समान नागरिक संहिता ' की कलपना वक्या था ताकि सबको समान अधिकार और समान अवसर मिलदे और ददेश की एकता अखंडता मजबूत हो लदेवकन वोट बैंक राजनीति के कारण ' समान नागरिक संहिता ्या भारती्य नागरिक संहिता ' का एक ड्ाफट भी नहीं बना्या ग्या । जिस दिन ' भारती्य नागरिक संहिता ' का एक ड्ाफट बनाकर सार्वजनिक कर वद्या जाएगा और आम जनता विशदेरकर बहन बदेवट्यों
को इसके लाभ के बारदे में पता चल जाएगा , उस दिन कोई भी इसका विरोध नहीं करदेगा । सच तो ्यह है कि जो लोग समान नागरिक संहिता के बारदे में कुछ नहीं जानतदे हैं िदे ही इसका विरोध कर रहदे हैं ।
आर्टिकल 37 में सपष्ट रूप सदे लिखा है कि नीति वनदरेशक सिद्धांतों को लागू करना सरकार की फंडामेंटल ड्ूटी है । जिस प्रकार संविधान का पालन करना सभी नागरिकों की फंडामेंटल ड्ूटी है उसी प्रकार संविधान को शत प्रतिशत लागू करना सरकार की फंडामेंटल ड्ूटी है । किसी भी सदे््युलर ददेश में धार्मिक आधार पर अलग-अलग कानून नहीं होता है लदेवकन हमारदे ्यहाँ आज भी हिंदू मैरिज ए्ट , पारसी मैरिज ए्ट और ईसाई मैरिज ए्ट लागू है , जब तक भारती्य नागरिक संहिता लागू नहीं होगी तब तक भारत को सदे््युलर कहना सदे््युलर शबद को गाली ददेना है । ्यवद गोवा के सभी नागरिकों के लिए एक ' समान नागरिक संहिता ' लागू हो सकती है तो ददेश के सभी नागरिकों के लिए एक ' भारती्य नागरिक संहिता ' क्यों नहीं लागू हो सकती है ?
जाति धर्म भाषा क्षेत्र और लिंग आधारित अलग-अलग कानून 1947 के विभाजन की बुझ चुकी आग में सुलगतदे हुए धुएं की तरह हैं जो विसफोटक होकर ददेश की एकता को कभी भी खकणडत कर सकतदे हैं इसलिए इनहें समापत कर एक ' भारती्य नागरिक संहिता ' लागू करना न केवल धर्मनिरपदेक्षता को बनाए रखनदे के लिए बकलक ददेश की एकता-अखंडता को अक्षुणि बनाए रखनदे के लिए भी अति आवश्यक है । दुर्भाग्य सदे ' भारती्य नागरिक संहिता ' को हमदेशा तुष्टीकरण के चश्मे सदे ददेखा जाता रहा है । जब तक भारती्य नागरिक संहिता का ड्ाफट प्रकाशित नहीं होगा तब तक केवल हवा में ही चर्चा होगी और समान नागरिक संहिता के बारदे में सब लोग अपनदे अपनदे तरीके सदे व्याख्या करेंगदे और भ्रम फैलाएंगदे इसलिए विकसित ददेशों में लागू " समान नागरिक संहिता " और गोवा में लागू " गोवा नागरिक संहिता " का अध्य्यन करनदे और " भारती्य नागरिक संहिता " का ड्ाफट बनानदे के लिए ततकाल एक ज्यूवडवश्यल कमीशन ्या ए्सपर्ट कमदेटी बनाना चाहिए । �
16 दलित आं दोलन पत्रिका ekpZ 2022