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ऐसी धारणा बननदे लगी कि दलितों की गोलबंदी भाजपा की तरफ मुड़ रही है तो आनन — फानन में हिजाब विवाद का ऐसा बखदेड़ा खड़ा वक्या ग्या ताकि चुनावी चर्चा के केनद्र सदे दलितों को बाहर वक्या जा सके । हालांकि इस साजिश के बाद भी दलितों का भाजपा के साथ जुड़ाव कम नहीं होनदे वाला है लदेवकन पूरदे चुनाव में दलित समाज सदे जुड़़े मुद्ों पर जो राष्ट्री्य बहस होनी थी वह हिजाब की चर्चा में तबदील हो ग्यी ।
परिवर्तन के दौर से गुजर रहा दलित समाज
राष्ट्री्य नजरिए सदे ददेखा जाए तो दलित जिनहें पहलदे अछटूत कहा जाता था वह भारत की आबादी का 16.6 फीसदी हैं । ददेश की आजादी के कई दशकों बाद तक भी कुछ चुनिंदा अपवादों को छोड़कर समूचदे दलित समाज की हालत सामाजिक , शैक्षिक और आर्थिक तौर पर लगभग एक जैसी थी । आजादी के बाद गिनदे चुनदे लोग ही ्दे जो विषम परिस्थितियों और प्रतिककूल हालातों सदे थोडा ऊपर उठ सके और नौकरर्यों में आरक्षण व कानूनी संरक्षण जैसी सुविधाओं को सकारातमकता रूप सदे लाभ लदे सके । लदेवकन अब इ्कीसवीं सदी में हालात काफी बदल चुके हैं । अब दलित समाज का काफी बड़ा तबका किसी भी मामलदे में किसी सदे कमतर नहीं है । खास तौर सदे मौजूदा नरेन्द्र मोदी की सरकार के बीतदे सात सालों के का्यनाकाल में दलित समाज
के लोगों के हौसलदे और आतमविशिास नदे आसमान को छटूना आरंभ कर वद्या है । ्यहां तक कि दलित समाज के लोग कारोबार के क्षेत्र में भी नई ऊंचाई्यों को छटू रहदे हैं । दलित चैंबर ऑफ़ कॉमर्स ऐंड इंडसट्री इसका एक उदाहरण है । लदेवकन इस बात सदे इनकार नहीं वक्या जा सकता कि अपनदे जीवन सतर को ऊपर उठानदे में काम्याब रहनदे वालदे दलित समाज के लोगों की तादाद इनकी कुल आबादी के मुकाबलदे काफी कम बकलक नगण्य ही है । लदेवकन सुखद पहलू ्यह है कि अब दलित समाज का बहुत बड़ा तबका मुख्यधारा सदे जुड़ चुका है और अपनी मदेहनत के दम पर आगदे बढ़नदे के लिए प्र्यासरत है ।
दलित समाज की बुनियादी अपेक्ाएं
परिवर्तन के दौर सदे गुजर रहदे दलित समाज को अभी सरकारी व कानूनी संरक्षण की सर्वाधिक आवश्यकता है । खास तौर सदे शिक्षा व रोजगार के क्षेत्र में दलित समाज को अधिकतम संरक्षण वद्यदे जानदे की जरूरत है । लदेवकन इस मामलदे में निजीकरण का बढ़ता दा्यरा दलित समाज के आगदे बढ़नदे की राह का रोड़ा बनता दिख रहा है । सरकारी संस्ानों में तो आरक्षण का लाभ इनहें मिल रहा है लदेवकन निजी संस्ानों में आरक्षण की व्यवस्ा लागू करनदे की बाध्यता नहीं होना दलित समाज की तर्की की राह में
रूकावट उतपन्न कर रहा है । इसी प्रकार राजनीति के क्षेत्र में भी आरक्षण की अवधारणा को ईमानदारी सदे लागू करनदे की आवश्यकता है । बदेशक चुनाव क्षेत्र के निर्धारण में दलित समाज को राजनीति में भागीदारी ददेनदे के लिए वनकशचत अनुपात में उनके लिए आरक्षित सीटों की व्यवस्ा है लदेवकन आनुपातिक भागीदारी राजनीतिक दलों के संगठनों में भी मिलनी चाहिए । ऐसदे और भी कई मामलदे हैं जिनकी केवल इस वजह सदे अनददेखी नहीं की जानी चाहिए क्योंकि चुनाव के दौरान दलितों के हितों और उनसदे जुड़़े मुद्ों को पीछ़े छोड़कर हिजाब विवाद चर्चा के केनद्र में आ ग्या है । अलबत्ता दलितों के मामलों को संिदेदनशीलता के साथ ददेखनदे की जरूरत है क्योंकि इन मामलों में आज भी दलित समाज को अपनदे अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है । लिहाजा जब राजनीतिक समीकरणों के लिहाज सदे दलित समाज के समर्थन का महति बढ़ता दिख रहा है तो सिर्फ उनहें बरगलानदे के लिए लुभावनी बातें करना उचित नहीं होगा । वैसदे भी सम्य के साथ बदल रहा दलित समाज अब अपनदे अधिकारों को लदेकर सजग भी है और चौकन्ना भी । लिहाजा चर्चा के केनद्र में भलदे कुछ भी रहदे लदेवकन दलित समाज सदे जुड़़े मुद्ों पर गंभीरता सदे विचार वक्या जाना और ईमानदारी के साथ उनके हित में काम वक्या जाना आवश्यक भी है और अपदेवक्षत भी । �
10 दलित आं दोलन पत्रिका ekpZ 2022