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टैंकों में हो रही इन हत्याओं को नहीं रोकती तब तक हमतारता ये अभियतान जतारी रहेगता ।
शुष्क शौचालय की हाथ से सफाई जाररी
वरिष् पत्रकतार और सतामताकजक कताय्वकतता्व भताषता सिंह ने कहता कि क्या आप जतानते हैं कि जिस समय देश में आजतादी की 75वीं जयंती धूमधताम से मनतायी जता रही है , उस समय भी देश के कई हिससों में महिलताएं शुषक शौचतालय सतार करने को मजबूर हैं । देश के कई रताजयों में आज भी ऐसे शौचतालय हैं , जहतां औरतों व पुरुषों को हताथ से मैलता ( टट्टी ) उ्तानी पडती है । वे सुबह-सुबह टोकरी , टीनता आदि लेकर घरों से मतानव मल को इकट्ठा करती हैं और दूर जताकर फेंकतीं हैं । यह राष्ट्रीय शर्म कता विषय है । ऐसता कररतानता मतानव गरिमता के खिलतार और मतानवतता पर कलंक तो है ही , गैर-कतानूनी भी है । इसी प्रकतार सीवर-सेप्टिक टैंकों में सरताई कर्मचतारियों की हत्याएं हो रही हैं । इन्हें रोकनता बेहद जरूरी है । वरिष् सतामताकजक कताय्वकतता्व दीपती सुकुमतार ने कहता कि सिर्फ क़तानून बनता देने से समस्या कता समताधतान नहीं होतता । उसकता सखती से कतायता्वद्रयन होनता जरूरी होतता है ।
प्रशतासन द्वारता उपेक्षा और रताजनीतिक इच्छा शक्ति के अभतार के कतारण ही आज इककीसवीं सदी में भी यह अमतानवीय प्रथता और सरताई कमता्वचतारियों की मौतों कता सिलसिलता जतारी है । सीनियर सोशल एक्टिविसट इंदिरता खुरतानता ने कहता कि मैलता प्रथता उन्मूलन और सरताई कर्मचतारियों की मौतों को रोकने के लिए सरताई कर्मचतारी कतानूनों को लतागू कररताने के लिए सरकतार पर दबताब बनतानता जरूरी है ।
सफाई कर्मचाररी आंदोलन संघर्षरत
गौरतलब है कि देश कता कतानून ( वर्ष 2013 कता कतानून ), मैलता उ्रताने को कतानूनी तौर पर जुर्म मतानतता है और सतार-सतार कहतता है कि ऐसता कताम किसी भी भतारतीय नतागरिक से कररतानता अपरताध है और इसके लिए एक सताल तक की जेल यता एक लताख रुपये तक कता जुमता्वनता यता दोनों कता प्रतारधतान है । गहरे दुख की बतात है कि यह गैर-कतानूनी , मतानवतता विरोधी प्रथता आज भी चल रही है । इसकता खतात्मा तुरंत होनता चताकहए । सरताई कर्मचतारी आंदोलन पिछले 35 सतालों से देश भर से मैलता प्रथता के खतातमे के लिए संघर्षशील है । यह देश के सभी रताजयों में सरताई
किरी कानून की नहीं ,
इच्छाशक्ति की
मैलता ढोने के विभिन्न रूपों को समतापत करने की आवशयकतता को लेकर देश में एक व्यापक सहमति है किन्तु दुभता्वगयरश अभी तक के सभी प्रयतास , जिनमें दो राष्ट्रीय कतानून तथता कई अदतालत के कनदतेश शताकमल हैं , इस व्यापक सरीकृत उद्ेशय को प्रतापत करने में सफल नहीं हुए हैं । मैलता ढोने की प्रथता को समतापत करने कता पहलता कतानून देश में 1993 में पतारित हुआ थता और फिर 2013 में इससे संबंधित दूसरता कतानून अधिनियमित हुआ । पहले कतानून में केवल सूखे शौचतालयों में कताम करने को समतापत कियता गयता जबकि दूसरे कतानून में मैलता ढोने की परिभताषता को बढ़तायता गयता जिसमें सेप्टिक टैंकों की सरताई और रेलवे पटरियों की सरताई को भी शताकमल कियता गयता । फिर 27 मताच्व 2014 को इस मुद्े पर सुप्रीम कोर्ट कता एक महत्रपूर्ण निर्णय आयता , जिसमें सीवर श्रमिकों के मुद्े को भी शताकमल कियता गयता कयोंकि उन्हें भी बहुत मुश्किल परिस्थितियों में बिनता किसी सुरक्षातमक आवरण के सीवर लताइनों की सरताई करते हुए मतानव मल को को सतार करनता पड़तता है । इसलिए यह सपषट है कि नई विस्तारित परिभताषता के अनुसतार अभी भी बहुत बड़ी संख्या में श्रमिक विभिन्न रूपों में मैलता ढोने के कताम में लगे हैं जिन्हें सहतायतता और पुनरता्वस की आवशयकतता है । सरकतार को सतामताकजक द्यताय के इस उच्च प्रताथमिकतता रताले मुद्े पर अदतालत के कनदतेशों और अपने सरयं के विधेयकों के कतायता्वद्रयन में अब और अधिक समय बबता्वद नहीं करनता चताकहए , विशेषकर इस समय जब सरचछ भतारत के सरचछतता श्रमिकों के योगदतान को मताद्यतता और सम्मान की आवशयकतता है ।
30 twu 2022