eMag_June2021_Dalit Andolan | Page 7

आंबेडकर करी आरंभिक राजनरीलतक समझ यानरी 1920 तथा 30 के दशक के ल्वचारों पर
आधारित है । यहरी कारण है कि उनके क्रियाकलाप में राजनरीलतक तरीखापान अधिक
झलकता है । डॉ . आंबेडकर 1920 तथा 30 के दशक में जाति व्यवसथा के ल्वरुद्ध उग् रूप धारण किए हुए थे । बाद में उनहोंने सत्ा में भागरीदाररी के माधरम से दलित मुसकत का मार्ग प्रशसत करने करी कोशिश करी । काशरीराम ने ' सत्ा में भागरीदाररी ' को ' सत्ा पर क्िा ' में बदल दिया । इस उद्ेशर से उनहोंने नारा दिया ' अपनरी-अपनरी जातियों को मजबूत करो ।' इस नारे के तहत स्व्यप्रथम बसपा ने ल्वलभन्न दलित जातियों का सममेलन करके उनहें अपनरी तरफ आकर्षित किया । साथ हरी उसने पिछड़ी जातियों को अपनरी तरफ लाने करी कोशिश करी जिसका परिणाम था बसपा का 1993 में समाि्वादरी पाटटी से समझौता । दो साल बाद इस गठबंधन के टूट जाने के बाद बसपा का झुका्व भारतरीर जनता पाटटी करी तरफ बढ़ा तथा उसके सहयोग से माया्वतरी तरीन बार उत्र प्रदेश करी मुखरमंत्री बनीं । किंतु 2007 में उत्र प्रदेश के पिछले आम चुना्व में माया्वतरी के नेतृत्व में बसपा ने दलित-ब्ाह्मण एकता के नारे के साथ बहुमत हासिल कर लिया । यह बहुमत प्रचड जातरीर धु्र्वरीकरण के आधार पर मिला था । ्वैसे भरी भारतरीर चुना्व प्रणालरी में हमेशा जातरीर , क्ेत्रीय और सांप्रदायिक धु्र्वरीकरण आम प्रक्रिया का हिससा रहरी है । किंतु मंडल कमरीशन के लागू होने के बाद जातरीर धु्र्वरीकरण बेहद उग् रूप में जनता के समक् आया है । उत्र प्रदेश में इस ध्ु्वरीकरण से बसपा को सबसे अधिक फायदा पहुंचा है , जिस कारण ्वह सत्ाधाररी पाटटी बन गई ।
इस संदर्भ में एक गंभरीर स्वाल यह उठता है कि जातरीर ध्ु्वरीकरण के आधार पर चुना्व िरीत कर सत्ाधाररी तो बना जा सकता है , किंतु डॉ . आंबेडकर करी जाति-उनमूलन करी ल्वचारधारा को मूर्त रूप नहीं दिया जा सकता । बुद्ध से लेकर आंबेडकर तक ने जालतल्वहरीन समाज में हरी दलित मुसकत करी कलपना करी थरी , किंतु ऐसा नहीं हो सका है । डॉ . आंबेडकर करी उसकत- जालतल्वहरीन समाज करी सथापना के बिना स्वराज प्राप्त का कोई महत्व नहीं , आज भरी ल्वचारररीर है । �
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