eMag_June2021_Dalit Andolan | Page 5

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डॉ आंबेडकर की दलित चेतना

डॉ . तुलसीराम

मय बरीतने के साथ-साथ बाबासाहेब डॉ भरीम रा्व आंबेडकर के ल्वचारों करी प्रासंगिकता बढ़तरी हरी जा रहरी है । दलितों तथा गैर दलितों के बरीच उनकरी तरह-तरह से वराखरा करी जा रहरी है । आंबेडकर के ल्वचारों के तरीन प्रमुख स्ोत थे । पहला उनका अपना अनुभ्व , दूसरा-महातमा जरोलतबा फूले का सामाजिक आंदोलन तथा तरीसरा-बुद्धिजम ।

इन स्ोतों करी िड़ में भारत करी अमान्वरीर जाति व्यवसथा थरी । डॉ . आंबेडकर को भरी छुआछूत तथा जातरीर घृणा का शिकार होना पड़ा था , जिससे खिन्न होकर उनहोंने इसे खतम करने का अभियान चलाया । उनहोंने जाति व्यवसथा करी ईश्वररीर अ्वधारणा का तरीखा ल्वरोध किया और इसे मान्व निर्मित बताया । इस संदर्भ में उनके महातमा गांधरी से ्वैचारिक मतभेद उभर कर सामने आए । गांधरीिरी कहते
थे कि छुआछूत मान्व करी देन है इसलिए मान्व प्रदत् छुआछूत से तो लड़ना चाहिए , जबकि ईश्वररीर जाति व्यवसथा के ल्वरुद्ध आ्वाज नहीं उठानरी चाहिए । गांधरी िरी करी इस ईश्वररीर अ्वधारणा के ल्वरुद्ध अंबेडकर चट्ान करी तरह खड़े हो गए । रद्लप छुआछूत लन्वारण के अभियान में गांधरी िरी करी भूमिका करी अनदेखरी नहीं करी जा सकतरी , लेकिन उनकरी ईश्वररीर अ्वधारणा करी दलितों ने तरीव्र आलोचना करी ।
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