अधिकार है ’, बसलक ्वह यह कहते कि ‘‘ छुआछूत का उनमूलन मेरा जनम सिद्ध अधिकार है । ’’ इस पत् ने भरी दलित जागृति का महत्वपूर्ण कार्य किया ।
समता
इस पत् का प्रकाशन 29 जून , 1928 को आरमभ हुआ । यह पत् डा . आंबेडकर द्ारा समाज सुधार हेतु सथालपत संसथा ‘ समता संघ ’ का मुख पत् था । इसके संपादक के तौर पर डा . आंबेडकर ने दे्वरा्व ल्वषरु नाइक करी नियुसकत करी थरी । यह पत् भरी अलप समय में बनद हो गया और फिर ‘ जनता ’ नामक पत् के प्रकाशन का उपक्रम किया गया ।
जनता
‘ समता ’ पत् बनद होने के बाद डा . आंबेडकर ने इसका पुनर्प्रकाशन ‘ जनता ’ के नाम से किया । इसका प्र्वेशांक 24 न्वमबर , 1930 को आया । यह फर्वररी 1956 तक कुल 26 साल तक चलता रहा । इस पत् के माधरम से डा . आंबेडकर ने दलित समसराओं को उठाने और दलित – शोषित आबादियों को जाग्त करने का बखूबरी कार्य किया ।
प्रबुद्ध भारत
14 अकटूबर , 1956 को बाबा साहेब डा . आंबेडकर ने लाखों लोगों के साथ बौद्ध धर्म ग्हण कर लिया था । इस घटनाक्रम के चलते हरी बाबा साहेब आंबेडकर ने ‘ जनता ’ पत् का नाम बदलकर ‘ प्रबुद्ध भारत ’ कर दिया था । इस पत् के मुखशरीर्ष पर ‘ अखिल भारतरीर दलित फेडरेशन का मुखपत् ’ छपता था ।
बाबा साहब डा . आंबेडकर के सभरी पत् मराठरी भाषा में हरी प्रकाशित हुए करोंकि मराठरी हरी उस समय आम जनता करी भाषा थरी । यह भरी कि उस समय बाबा साहेब का कार्य क्ेत् महाराषट्र हरी था और मराठरी ्वहां करी जन भाषा रहरी है । जैसा कि ल्वलदत है कि बाबा साहब अंग्रेजी भाषा के भरी प्रकाणड ल्वद्ान थे , लेकिन उनहोंने अपने पत् मराठरी भाषा में इसलिए प्रकाशित किये कि उस
समय महाराषट्र करी दलित जनता को मराठरी भाषा के अला्वा किसरी और भाषा का जरादा ज्ान नहीं था , ्वह के्वल मराठरी हरी समझ पातरी थरी । जबकि उसरी समय महातमा गांधरी अपने आप को दलितों का हित चिनतक दिखाने के लिए अपना एक पत् ‘ हरिजन ’ अंग्रेजी भाषा में निकाल रहे थे जबकि उस समय दलित जनता आमतौर पर अंग्रेजी जानतरी हरी नहीं थरी । इसलिए गानधरीिरी का यह प्रयास बेकार गया और उनकरी यह कोशिश दलितों के साथ कोररी धोखेबािरी हरी सिद्ध हुई ।
‘ समता ’ पत्र बन्द होने के बाद डा . आंबेडकर ने इसका पुनर्प्रकाशन ‘ जनता ’ के नाम से किया । इसका र्वेशांक 24 नवम्बर , 1930 को आया । यह फरवरी 1956 तक कु ल 26 साल तक चलता रहा । इस पत्र के माध्यम से डा . आंबेडकर ने दलित समस्ाओं को उठाने और दलित – शोषित आबादियों को जाग्रत करने का बखूबी कायप्र किया ।
ज्ात हो कि डॉ . आंबेडकर ने 31 जन्वररी , 1920 को “ मूकनायक ” नामक पलत्का को शुरू किया । इस पलत्का के अग्लेखों में आंबेडकर ने दलितों के ततकालरीन आर्थिक , सामाजिक और राजनरीलतक समसराओं को बड़ी लनभटीकता से उजागर किया । यह पलत्का उन मूक-दलित , दबे-कुचले लोगों करी आ्वाज बनकर उभररी जो सदियों से सवर्णों का अनरार और शोषण चुपचाप सहन कर रहे थे । हालांकि इस पलत्का के प्रकाशन में “ शाहूिरी महाराज ” ने भरी सहयोग किया था , यह पलत्का महाराज के राजर कोलहापुर में हरी प्रकाशित होतरी थरी । चूंकि महाराज
आंबेडकर करी विद्वता से परिचित थे जिस ्विह से ्वो उनसे ल्वशेष स्ेह भरी रखते थे ।
एक बार तो शाहूिरी महाराज ने नागपुर में “ अखिल भारतरीर बहिषकृत समाज परिषद ” करी सभा संबोधित करते हुऐ भरी कह दिया था कि – “ दलितों को अब चिंता करने करी जरूरत नहीं है , उनहें आंबेडकर के रूप में ओजस्वरी ल्वद्ान नेता प्रा्त हो गया है । ” इसरी सभा में आंबेडकर ने लनभटीकतापू्व्यक दलितों को संबोधित करते हुए कहा था कि- “ ऐसे कोई भरी स्वर्ण संगठन दलितों के अधिकारों करी ्वकालत करने के पात् नहीं हैं जो दलितों द्ारा संचालित न हो । उनहोंने सपषटतः कहा था कि दलित हरी दलितों के संगठन चलाने के हकदार हैं और ्वे हरी दलितों करी भलाई करी बात सोच सकते हैं । ” इस सममेलन में गंगाधर चिटन्वरीस , शंकररा्व चिटन्वरीस , बरीके बोस , मिसटर पंडित , डॉ . पराजंपे , कोठाररी , श्रीपतरा्व शिंदे इतरालद स्वर्ण समाज-सुधारक भरी मौजूद थे ।
1920 में हुए इस त्रिदिवसरीर सममेलन करी कार्य्वाहरी , भाषण , प्रस्तावों आदि का ्वृतांत भरी 5 जून , 1920 को “ मूकनायक ” पलत्का के दस्वें अंक में प्रकाशित हुआ था । इसके बाद सितमबर , 1920 में डॉ . आंबेडकर अपनरी अर्थशासत् और बैरिसटररी करी अधूररी पढ़ाई पूररी करने के लिये पुनः लंदन गए । तब उनके पास साढ़े आठ हजार रुपये थे . जिसमें 1500 रुपये शाहूिरी महाराज ने उनहें आर्थिक सहायता दरी थरी जबकि 7000 रुपये उनहोंने स्वंय एकलत्त किये थे ।
ल्वदेश से अपनरी शिक्ा पूर्ण करके जब ्वो ्वापस भारत आये तो उनहोंने फिर से शोषित- ्वंचितों के अधिकारों करी लड़ाई लड़नरी शुरु कर दरी । 1927 में उनहोंने ‘ बहिषकृत भारत ’ नामक एक अनर पलत्का भरी निकालनरी शुरू कर दरी । इसमें उनहोंने अपने लेखों के जरिये सवर्णों द्ारा किये जाने ्वाले अमान्वरीर व्यवहार का कड़ा प्रतिकारकिया और लोगों को अनरार का ल्वरोध करने के लिए प्रेरित किया । डा . आंबेडकर करी पत्कारिता हरी आज के आंबेडकर्वादरी पत्कारिता करी आधार सतमभ है , तो अतिशयोसकत न होगरी ।
( साभार ) twu 2021 Qd » f ° f AfaQû » f ³ f ´ fdÂfIYf 25