eMag_June 2023_DA | Page 32

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समग् विकास के लिए देना होगा समानता का अधिकार

नानकचनद

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त्ि आधुनिकतया के युग में भधी सयामयालजक असमयानतया और अस्पृश्तया कधी समस्या दलित समयाज के विकयास के मयाग्म में एक गंभधीि समस्या ्बनधी हुई है । दलित समयाज आज भधी सयामयालजक और आर्थिक समयानतया प्रयापत नहीं कर पया्या है I लेकिन यह प्रमयालणत होतया है कि समय कधी मयाँग के अनुसयाि दलितों कधी दशया और दिशया में आमूल चूल परिवर्तन अवश् हुआ है । केंद्र सरकयाि और ियाज् सरकयाि ने दलित समयाज में अभिशपत गिधी्बधी कधी समस्या के लनियाकरण के लिए विभिन्न सरकयािधी योजनयाएं क्रियान्वित कधी हैं लेकिन फिर भधी दलित समयाज सयामयालजक और आर्थिक रूप से सशकत नहीं हो पया्या है । डॉ . अं्बेडकर ने दलित समयाज में लशक्षया के प्रति चेतनया उतपन्न कधी जिससे हज़यािों वषगों से शोषित दलित वर्ग अपनया सयामयालजक और आर्थिक विकयास कर सके । लेकिन सवयाल यह भधी है कि दलित समयाज के जनजधीवन को गिधी्बधी किस तरह प्रभयालवत कर रहधी है और वो कौन से कयािक हैं कि दलित समयाज एकजु्ट होने में नयाकयाम्या्ब लदियाई पड़तया है ? और क्या वर्तमयान में दलित समुदया् के जनजधीवन में सकयाियातमक परिवर्तन हो पया्या है ्या नहीं ?
भयाित एक लोकतयासनत्क देश है जिसमें 75 प्रतिशत लोग गयांवों में निवयास करते हैं । आज़यादधी के 74 वषगों के पश्चात भधी भयाित में जयालत अपनधी जड़ जमया्े हुए है । ऐसया मयानया जयातया है कि भयाित कया लोकतंत् ्बेजोड़ है जिसकधी जडें ्बेहद मज़्बूत हैं और यहयाँ कया शयासन कयानून-सममत है । लेकिन प्रश्न यह है कि आज़ादधी के इतने वषगों के अंतियाल के पश्चात भधी एक विशेष समुदया् के सया्
शोषण और उत्पीड़न कधी घ्टनयाएँ क्ों घल्टत होतधी हैं ? यह इस देश कया दुभया्मग् है कि डॉ . अम्बेडकर द्यािया ्बनयाए गए संविधयान के सया् खिलवयाड लक्या जया रहया है । हम 21वीं सदीं में प्रवेश कर चुके हैं लेकिन दलित समयाज के सया् शोषण और उत्पीड़न कधी घ्टनयाओं में निरंतर वपृलद्ध हो रहधी है I लेकिन कुछ लशक्षयालवदों कया वकतव् है कि समयाज कधी मयानसिकतया में परिवर्तन अवश् आ्या है । यह ल्बलकुल गलत है क्ोंकि अगर परिवर्तन हुआ है तो दलित समयाज कधी मयानसिकतया में परिवर्तन हुआ है । यह कहने में संकोच नहीं है कि जिस देश में इं्टिने्ट के युग में भधी दलित वर्ग के अधिकयािों कया हनन लक्या जयातया है , वहयां यह कैसे कह सकते हैं कि भयाितधी् समयाज कधी सोच में निरंतर परिवर्तन आ रहया है ?
अगर विशलेषण लक्या जया्े तो यह सर्वविदित है कि भयाित के शयासन , प्रशयासन , कयालम्मक मंत्रालयों और विभयागों पर उच्च वगगों कया हधी प्रभुतव रहया है लेकिन फिर भधी हमयािया देश गिधी्बधी समस्या और जयालत के अभिशयाप से क्ों पधीलडत है ? लेकिन इसकया उत्ि सभधी के पयास है । अगर देश कया विकयास करनया है तो दलित वर्ग को समयानतया कया अधिकयाि देनया हधी होगया जिससे हज़यािों वषगों से ्बलहषकृत समयाज देश कधी मुख् धयािया से जुड़कर जन कल्याण के कार्यों में अपनया योगदयान दे सकें । ियाज् सरकयाि और केंद्र सरकयाि दलित वर्ग के सयामयालजक और आर्थिक विकयास के लिए विभिन्न सरकयािधी योजनयाए क्रियान्वित कर रहधी है । लेकिन इस तरफ किसधी कया ध्यान नहीं है कि दलित समयाज को कैसे देश कधी मुख्धयािया से जोड़ सकें ? भयाितधी् ियाजनधीलतज्ों को सर्वप्रथम दलित समयाज पर ध्यान देने कधी
ओर ज़रूरत है क्ोंकि इतिहयास यह प्रमयालणत करतया है कि देश के आर्थिक विकयास में दलित वर्ग ने महत्वपूर्ण भूमिकया निभयाई है ।
दलित वर्ग कया हज़यािों वषगों से दमन लक्या जयातया रहया है ियाहे वो ्ब्यानधी ्टोलया हत्याकयांड हो , खैरलयांजधी हत्याकयांड हो और ियाहे मिर्चपुर हत्याकयांड हो । दलित समयाज के सयामयालजक और आर्थिक विकयास के मयाग्म में विभिन्न ्बयाधक ततव हैं जिसके कयािण दलित वर्ग पूर्ण रूप से विकयास नहीं कर पया्या है । दलित वर्ग के सयामयालजक और आर्थिक जधीवन को गिधी्बधी , जयालत क्षेत्वयाद , धर्म , भ्रष्टयाियाि , महंगयाई , कुपोषण , अलशक्षया , जनसंख्या , प्रयाकृतिक आपदया् आदि मुख् कयािक प्रभयालवत कर रहे हैं । भूमंडलधीकरण के युग में भधी दलित वर्ग के विकयास में गिधी्बधी एक प्रमुख समस्या
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