eMag_June 2023_DA | Page 23

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जातिवाद को मिटाने के लिए पूर्वजों का एक विस्मृत प्रयास

डॉ क्िवेक आर्य

1926

में पंजया्ब में आद धर्म के नयाम से अछूत समयाज में एक मुहिम चलधी । इसे चलयाने वयाले मंगू ियाम , स्वामधी शूद्रयाननद आदि थे । यह सभधी दलित समयाज से थे । स्वामधी शूद्रयाननद कया पूर्व नयाम शिवचरन ्या । उनके पितया ने फगवयाडया से जयालंधर आकर जूते ्बनयाने कया कयािियानया लगया्या ्या । उनहोंने आर्य समयाज द्यािया संियालित आर्य हयाई सकूल में 1914 तक लशक्षया प्रयापत कधी ्धी । ्बयाद में आर्य समयाज से अलग हो गये । इनकया उद्ेश् दलित समयाज को यह सनदेश देनया ्या कि वह हिनदू धर्म त्याग कर ियाहे सिख ्बने , ियाहे मुसलमयान और ियाहे ईसयाई । पर हिनदू न रहे । सत् यह है जयालतवयाद एक अभिशयाप है जिसकया समयाधयान धर्म परिवर्तन से नहीं होतया ।
तत्कालधीन समय में संयुकत पंजया्ब के दलित स्यालको्ट , गुरुदयासपुर में ईसयाई ्या सिख ्बन गए और ियावलपिंिधी , लयाहौर और मुलतयान में मुसलमयान ्बन गए । पर इससे जयालतवयाद कधी समस्या कया समयाधयान नहीं निकलतया ्या । सिख ्बनने पर उसे मज़ह्बधी कहया जयाने लगया , ईसयाई ्बनने पर मसधीहधी और मुसलमयान ्बनने पर मुसलधी । अपने आपको उच्च मयानने वयाले गैर हिनदू अभधी भधी उसके सया् रो्टधी-्बे्टधी कया सम्बनध नहीं रखते थे । सिखों के हिनदू समयाज कया पंथ के रूप में सम्मान ्या पर जो दलित हिनदू जैसे रहतियें , रविदयालसए , ियामगढिये आदि थे I उनके सया् उच्च समझने वयाले सिखों कया व्वहयाि भधी छुआछूत के समयान ्या । आर्यसमयाज ने ऐसधी विक्ट परिसस्लत में अछूतोद्धयाि कया कया््म प्रयािमभ लक्या । अछूतों के लिए आ्गों ने सयाव्मजनिक कुएं खोले तो उनके ्बच्चों को पियाने के लिए
पयाठशयालया और शिलप केंद्र ।
पंडित अमधीिंद शमया्म ब्राह्मण परिवयाि में जनमें थे । आपके ऊपर अछूतोद्धयाि कधी प्रेरणया ऐसधी हुई कि आपने वयाल्मीकि समयाज में कया््म करनया प्रयािमभ लक्या । आपने वयाल्मीकि प्रकयाश के नयाम से पुसतक भधी ललिधी थीं । इस पुसतक में वयाल्मीकि समयाज को उनके प्रयािधीन गौरव के विषय में परिचित करवया्या ग्या ्या । आद धर्म सयामयालजक सुधयाि से अधिक ियाजनधीलतक महत्वाकयांक्षया कधी ओर केंद्रित ग्या ।
1931 कधी जनगणनया में आद धर्म को जनगणनया में हिनदुओं से अलग लिखवयाने कधी कवया्द चलयाई गई । इसके लिए अछूत समयाज में जनसभया्ें आयोजित कधी जयाने लगधी । आ्गों ने इस सस्लत को भयांप लल्या । उनहें कई दशक से अछूतोद्धयाि और विधमती ्बन गए अछूतों को वयालपस शुद्ध कर सहधमती ्बनयाने कया अनुभव ्या । ऐसधी हधी एक जनसभया में शूद्रयाननद भयावनयाओं को भड़कयाने कया कया््म कर रहया ्या । वह कहतया ्या कि मुसलमयान ्बन जयाओ , पर हिनदू न रहो । आ्गों को उनकधी सुचनया मिलधी । आर्यसमयाज के दधीवयाने पंडित केदयािनया् दधीलक्षत ( स्वामधी विद्यानंद
के पितया ) और ठयाकुर अमर सिंह जधी ( महयात्मा अमर स्वामधी ) उस सभया में जया पहुंचे । कुछ देर सभया को देखकर दोनों िड़े हो गये । फिर ऊंिधी आवयाज़ में ्बोले- ' मैं ल्बजनौर कया रहने वयालया जनम कया ब्राह्मण हूँ , और यह अिलन्या जिलया ्बुलंदशहर के रहने वयाले ियाजपुर क्षलत्् हैं ।
स्वामधी शूद्रयाननद कहते हैं कि हम तुम से घपृणया करते हैं । तुम लोगों में से कोई दो गिलयास पयानधी ले आये । पयानधी आ ग्या । एक गिलयास पंडित जधी ने लप्या हुए एक अमर सिंह जधी ने । दो मिन्ट में शूद्रयाननद कया ्बनया ्बनया्या खेल ल्बगड़ ग्या । और हज़यािों लोग मुसलमयान ्बनने से ्बि गये । पंडित केदयािनया् स्वामधी दर्शनयाननद के उपदेशों को सुनकर आर्य ्बने थे । उस कयाल में ज्ब अछूत के घर कया कोई पयानधी पधीनया तक पयाप मयानतया ्या , त्ब आ्गों के उपदेशकों ने जमधीनधी सति कर अछूतोद्धयाि कया कया््म लक्या ्या । उनकया लक्् ियाजनधीलतक महत्वाकयांक्षया को पूिया करनया नहीं ्या , अपितु मयानव मात्र के सया् ्बंधु और सिया के समयान व्वहयाि करनया ्या । आजकल के दलितोद्धयाि के नयाम से दुकयान चलयाने वयाले क्या शूद्रयाननद के ियाह पर नहीं चल रहे । �
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