eMag_July2021_Dalit Andolan | Seite 9

हिन्दू-मुस्लिम एकता असफल क्ों रही ?
हिन्दू-मुस्लिम एकता असम्भव कार्य
साम्प्रदायिक शान्न्त के लिए अल्पसंख्यकों की अदला-
बदली ही एक मात्र हल
विभाजन के बाद भी अल्पसंखयक-बहुसंखयक
की समस्ा बनी ही रहेगी
अल्पसंखयकों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक उपाय
अल्पसंखयकों की अदला- बदली-एक संभावित हल
उनहोंने जिहाद की घोषणा करने में संकोचि नहीं किया ।
तथय यह है कि भारत , चिाहे एक मात् मुस्लम शासन के अधीन न हो , दार-उल-हर्ब है , और इ्लामी सिद्धानिों के अनुसार मुसलमानों द्ारा जिहाद की घोषणा करना नयायसंगत है । वे जिहाद की घोषणा ही नहीं कर सकते , बशलक उसकी सफलता के लिए विदेशी मुस्लम रशकि की मदद भी ले सकते हैं , और यदि विदेशी मुस्लम रशकि जिहाद की घोषणा करना चिाहती है तो उसकी सफलता के लिए सहायता दे सकते हैं । ( पृ . 297-298 )

हिन्दू-मुस्लिम एकता असफल क्ों रही ?

हिनदू-मुस्लम एकता की विफलता का मुखय कारण इस अहसास का न होना है कि हिनदुओं और मुसलमानों के बीचि जो भिन्नताएं हैं , वे मात् भिन्नताएं ही नहीं हैं , और उनके बीचि मनमुटाव की भावना सिर्फ भौतिक कारणों से ही नहीं हैं इस विभिन्नता का स्ोि ऐतिहासिक , धार्मिक , सां्कृतिक एवं सामाजिक दुर्भावना है , और राजनीतिक दुर्भावना तो मात् प्तिबिंब है । ये सारी बातें असंतोष का दरिया बना लेती हैं जिसका पोषण उन तमाम बातों से होता है जो बढ़ते-बढ़ते सामानय धाराओं को आपलातित करता चिला जाता हैं दूसरे स्ोि से पानी की कोई भी धारा , चिाहे वह कितनी भी पवित् कयों न हो , जब ्ियं उसमें आ मिलती है तो उसका रंग बदलने के बजाय वह ्ियं उस जैसी हो जाती हैं दुर्भावना का यह अवसाद , जो धारा में जमा हो गया हैं , अब बहुत पकका और गहरा बन गया है । जब तक ये दुर्भावनाएं विद्यमान रहती हैं , तब तक हिनदू और मुसलमानों के बीचि एकता की अपेक्षा करना अ्िाभाविक है । ( पृ . 336 )

हिन्दू-मुस्लिम एकता असम्भव कार्य

हिनदू-मुस्लम एकता की निरथि्शकता को प्गट करने के लिए मैं इन शबदों से और कोई
शबदािली नहीं रख सकता । अब तक हिनदू- मुस्लम एकता कम-से-कम दिखती तो थिी , भले ही वह मृग मरीतचिका ही कयों न हो । आज तो न वह दिखती हे , और न ही मन में है । यहां तक कि अब तो गांधी ने भी इसकी आशा छोड़ दी है और शायद अब वह समझने लगे हैं कि यह एक असमभि कार्य है । ( पृ . 178 )

साम्प्रदायिक शान्न्त के लिए अल्पसंख्यकों की अदला-

बदली ही एक मात्र हल

यह बात निश्चित है कि सामप्दायिक शांति
स्थापित करने का टिकाऊ तरीका अलपसंखयकों की अदला-बदली ही हैं । यदि यही बात है तो फिर वह व्यर्थ होगा कि हिनदू और मुसलमान संरक्षण के ऐसे उपाय खोजने में लगे रहें जो इतने असुरक्षित पाए गए हैं । यदि यूनान , तुकी और बुलगारिया जैसे सीमित साधनों वाले छोटे- छोटे देश भी यह काम पूरा कर सके तो यह मानने का कोई कारण नहीं है कि हिनदु्िानी ऐसा नहीं कर सकते । फिर यहाँ तो बहुत कम जनता को अदला-बदली करने की आि्यकता पड़ेगी ओर चिूंकि कुछ ही बाधाओं को दूर करना है । इसलिए सामप्दायिक शांति स्थापित करने के लिए एक निश्चित उपाय को न अपनाना अतयनि उपहासा्पद होगा । ( पृ . 101 )

विभाजन के बाद भी अल्पसंखयक-बहुसंखयक

की समस्ा बनी ही रहेगी

यह बात ्िीकार कर लेनी चिाहिए कि
पातक्िान बनने से हिनदु्िान सामप्दायिक सम्यासे मुकि नहीं हो जाएगा । सीमाओं का पुनर्निर्धारण करके पातक्िान को तो एक सजातीय देश बनाया जा सकता हे , परनिु हिनदु्िान तो एक तमतश्ि देश बना ही रहेगा । मुसलमान समूचिे हिनदु्िान में छितरे हुए हैं- यद्यपि वे मुखयतः शहरों और क्बों में केंद्रित हैं । चिाहे किसी भी ढंग से सीमांकन की कोशिश की जाए , उसे सजातीय देश नहीं बनाया जा सकता । हिनदु्िान को सजातीय देश बनाने
काएकमात् तरीका है , जनसंखया की अदला- बदली की वयि्थिा करना । यह अि्य विचिार कर लेना चिाहिए कि जब तक ऐसा नहीं कियाजाएगा , हिनदु्िान में बहुसंखयक बनाम अलपसंखयक की सम्या और हिनदु्िान की राजनीति में असंगति पहले की तरह बनी ही रहेगी । ( पृ . 103 )

अल्पसंखयकों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक उपाय

अब मैं अलपसंखयकों की उस सम्या की ओर आपका धयान दिलाना चिाहता हूँ जो सीमाओं के पुनः निर्धारण के उपरानि भी पातक्िान में बनी रहेंगी । उनके हितों की रक्षा करने के दो तरीके हैं । सबसे पहले , अलपसंखयकों के राजनीतिक और सां्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान में सुरक्षा उपाय प्दान करने हैं । भारतीय के लिए यह एक सुपररतचिि मामला है और इस बात पर वि्िार से विचिार करना आि्यक है । ( पृ . 385 )

अल्पसंखयकों की अदला- बदली-एक संभावित हल

दूसरा तरीका है पातक्िान से हिनदु्िान में उनका स्थानानिरण करने की स्थिति पैदा करना । अधिकांश जनता इस समाधान को अधिक पसंद करती हे और वह पातक्िान की ्िीकृति के लिए तैयार और इचछुक हो जाएगी , यदि यह प्दर्शित किया जा सके कि जनसंखया का आदान-प्दान समभि है । परनिु इसे वे होश उड़ा देने वाली और दुरूह सम्या समझते हैं । तन्संदेह यह एक आतंकित दिमाग की निशनी है । यदि मामले पर ठंडे और शांतिपूर्ण एंग से विचिार किया जाए तो पता लग जाएगा कि यह सम्या न तो होश उड़ाने वाली है , और न दुरूह ।” ( पृ . 385 )
( सभी उद्धरण बाबा साहेब डॉ . अमबेडकर सम्पूर्ण वाड्मय , खंड
१५- ‘ पाकिस्ान और भारत के विभाजन , २००० से लिए गए हैं ) tqykbZ 2021 Qd » f ° f AfaQû » f ³ f ´ fdÂfIYf
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