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डॉ मुखिजी के सपने को साकार किया मोदी सरकार ने
जगत प्रकाश नड्ा
की विचिारधारा , देश की एकता और अखंडता के लिए प्तिबद्धता राषट्रवाद
िथिा राजनीतिक विकलप के बीजारोपण के लिए आजादी के बाद के इतिहास में अगर किसी एक राजनेता का ्मरण आता है तो वह डॉ . ्यामा प्साद मुखिजी हैं । बेशक आजादी के बाद डॉ . मुखिजी बहुत अधिक समय तक जीवित नहीं रहे , लेकिन छोटे कालखंड में ही वैचिारिक राजनीति के लिए उनहोंने बड़े अधिषठान तचिनह प््थिातपि किए ।
जममू-क्मीर की सम्या को पहचिानने िथिा इसके समूल तन्िारण के लिए पुरजोर आवाज उठाने वाले डॉ . मुखिजी ही थिे । बंगाल विभाजन की परिस्थिति के बीचि भारत के हितों का पक्षधर बनकर अगर कोई खड़ा हुआ तो वह डॉ . मुखिजी ही थिे । आजादी के बाद सत्ा में आई कांग्ेस द्ारा देश पर थिोपी जा रही अभारतीय िथिा आयातित विचिारधाराओं का तार्किक विरोध कर भारत , भारतीय िथिा भारतीयता के विचिारों के अनुरूप राजनीतिक विकलप देश को देने वालों में अग्णी डॉ . मुखिजी ही थिे ।
आजादी के बाद बनी नेहरू सरकार में डॉ . मुखिजी को उद्योग एवं आपूर्ति मंत्ी बनाया गया । वह सरकार का तह्सा थिे , किंतु उसी दौरान कांग्ेस सरकार द्ारा नेहरू-लियाकत पैकट में हिंदू हितों की अनदेखी से क्षुबध होकर उनहोंने मंत्ी पद से इ्िीरा दे दिया । यह इ्िीरा उनकी उच्च वैचिारिक चिेतना का जीवंत प्माण है । बेमेल विचिारों के साथि सत्ा में बने रहना उनहें मंजूर नहीं थिा । इसलिए इ्िीरा देकर उनहोंने देश में एक नए राजनीतिक विकलप के लिए चिचिा्श शुरू की । विदित है कि देश की ्ििंत्िा के लिए
भिन्न-भिन्न विचिारों के लोग कांग्ेस की छतरी के नीचिे आए थिे , किंतु आजादी के बाद देश में यह सुगबुगाहट शुरू हुई कि कांग्ेस की विचिारधारा का विकलप कया हो सकता है ? एक ऐसी विचिारधारा की तलाश देश कर रहा थिा , जिसमें सां्कृतिक राषट्रवाद देश की एकता- अखंडता के संकलप के साथि तुषटीकरण के विरोध की नीति निहित हो । इस बहस के अगुआ के रूप में डॉ . मुखिजी आगे आए । उनके प्यासों से 21 अकटूबर 1951 को जनसंघ की स्थापना हुई । एक ऐसे राजनीतिक दल की स्थापना , जिसके विचिारों में राषट्रवाद की खुशबू और भारतीयता की सुगंध थिी । दशकों से हम उसी विचिार यात्ा के कई पड़ाव को पार करते हुए ,
अनेक संघर्ष करते हुए यहां तक पहुंचिे हैं ।
1951-52 में हुए पहले आम चिुनाव में जनसंघ तीन सीटों पर चिुनाव जीतने में सफल रहा । डॉ . मुखिजी कोलकाता से चिुनाव जीतकर संसद पहुंचिे । उनके विचिारों की साफगोई , नीतियों में दूरदर्शिता को देखते हुए विपक्ष के कई दलों ने मिलकर उनहें लोकसभा में विपक्ष का नेता चिुना । नेता-प्तिपक्ष के रूप में डॉ . मुखिजी लगातार देश की सम्याओं को लेकर सवाल करते रहे और बहुत कम समय में ही वह विपक्ष की मुखर आवाज बन गए । संसद में उनहोंने सदैव राषट्रीय एकता की स्थापना को ही अपना प्रथम लक्य रखा । संसद में दिए अपने भाषण में उनहोंने पुरजोर शबदों में कहा थिा कि राषट्रीय
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