fjiksVZ
प्रतिनिधित्विवादी सिदवांि समय की मवांग
गैर दलित समाज को इस अवधारणा से मुकत होना पडेगा कि आरक्ि एक गऱीब़ी उनमूिन कार्यक्रम है । इसके लिए सरकारों को प्रतिनिधितििाद़ी सिद्धांत क़ी अवधारणा को लागू करना पडेगा । कयोंकि , आरक्ि केवल सरकाऱी सेवाओं में प्रतिनिधिति सुलनलशित करता है , अनय क्ेत्ों में नहीं । जबकि प्रतिनिधितििाद़ी सिद्धांत हर क्ेत् के संसाधनों में सभ़ी िगमों क़ी बराबर भाग़ीदाऱी सुलनलशित करने क़ी बात करता है । राजऩीलतक प्रतिनिधिति सामाजिक-आर्थिक भाग़ीदाऱी का पर्याय नहीं हो सकता है । वर्तमान में राजऩीलतक क्ेत्ों में मिलने वाि़ी भाग़ीदाऱी ( राजऩीलतक प्रतिनिधिति ) को सामाजिक एवं आर्थिक क्ेत्ों क़ी भाग़ीदाऱी का पर्याय बना दिया गया है , जो उचित नहीं है । दुर्भागय से आरलक्त वर्ग से आने वाले जयादातर राजनेता अपने समाज का
प्रतिनिधिति न कर सिर्फ अपऩी अपऩी राजऩीलतक पार्टियों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने लगे हैं । इस़ी का नत़ीजा है कि दलितों क़ी मूल समसयाओं का निदान और दूभर हो चला है ।
सरकवारों को दिखवानी होगी ईमवानदवारी
मुखयिारा से जोडने के लिए दलितों को सामाजिक , आर्थिक और राजऩीलतक रूप से सशकत बनाना होगा । दलित भारत़ीय समाज का एक ऐसा वर्ग है , जो ऐतिहासिक संदभमों में सभ़ी संसाधनों से वंचित रहा है । संविधान में प्रदत् प्रावधानों के बावजूद दलित वर्ग संसाधनों में अपऩी भाग़ीदाऱी और अलसमता क़ी लडाई अब भ़ी िड रहा है । इसका आशय यह कदापि नहीं है कि दलितों क़ी लसथलत में सितंत्ता के बाद कुछ भ़ी सुधार नहीं हुआ है । पर , यह सुधार अभ़ी नाकाऱी हैं । कुछ शहऱी क्ेत्ों को छोड दें तो आज भ़ी ग्ाम़ीि क्ेत्ों में जातिवाद
वैमनसयकाऱी और अपने परंपरागत रूप में कायम है । दलितों के सशक्तीकरण के लिए सरकारों ने अब तक जो प्रयास किए या तो वे नाकाऱी रहे या उनके प्रयासों में राजऩीलत जयादा और ईमानदाऱी कम रह़ी । यह दुर्भागय ह़ी है कि दलित वर्ग अब भ़ी विलभन् राजऩीलतक दलों के लिए महज एक वोट बैंक है । मेरा मानना है कि यदि दलितों को मुखयिारा से जोडना है और उनहें सामाजिक , आर्थिक एवं राजऩीलतक रूप से सशकत बनाना है तो सरकारों को ईमानदाऱी दिखाऩी ह़ी होग़ी । समाज में जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए सरकारों को और सजग रहना पडेगा । जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए संविधान में वर्णित जो प्रावधान हैं , नियम और कानून हैं , उनका सरकारें कडाई से पालन सुलनलशित करवाएं । यह सरकार क़ी नैतिक जिममेदाऱी है । एक सिसथ और प्रगतिश़ीि समाज के निर्माण के लिए यह आवशयक भ़ी है । �
32 दलित आं दोलन पत्रिका tuojh 2022