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दलित राजनीक्त : सियासत पर भारी सरोकार
दलों के दायरे से बाहर आ रहे दलित अपने सवालों के जवाब तलाश रहा दलित समाज
अमित मुदगि
दो अप्रैल 2018 ...। एसस़ी-एसट़ी एकट
में हुए बदलावों के खिलाफ दलित
सडकों पर थे । देखते ह़ी देखते लसथलत ऐस़ी बिगड़ी कि भीड़ बेकाबू हो गई । बवाल हुआ और देश भर में कई लोगों क़ी जान िि़ी गई । यूप़ी में भ़ी यह़ी हुआ और लसथलत सामानय होने में काऱी समय लगा । एक दलित चिंतक कहते हैं कि यह कोई अचानक आया उबाल नहीं था , बल्क अधिकारों को लेकर भ़ीतर ह़ी भ़ीतर सुलग रहे जिािामुख़ी का विसरोट था । यह़ी लसथलत आज भ़ी है । दलितों के मुद्े बरकरार हैं । चुनाि़ी बयार में सियास़ी पार्टियां फिर से दलितों को लुभाने में जुट़ी हैं । पर , अहम सवाल है कि दलित किधर जाएंगे ?
आरक्ण और सुरक्षा सिवोपरि मुद्दा
दलितों का बेहद अहम भावनातमक मुद्ा आरक्ि क़ी सुरक्ा है । वे चाहते हैं कि दूसऱी जातियों के लोग इसमें सेंध न लगाएं । जिस तरह पिछडों क़ी 17 उप जातियां एसस़ी का दर्जा पाने के लिए लगातार संघर्ष कर रह़ी हैं , उसको लेकर दलितों का कहना है कि आरक्ि का दायरा बढाया जाना चाहिए । निज़ी क्ेत् में आरक्ि क़ी मांग भ़ी लंबे समय से िि़ी आ रह़ी है । वहीं , बैकलॉग पूरा करने क़ी भ़ी मांग यदा-कदा जोर पकडत़ी ह़ी रहत़ी है । बसपा व
दूसरे विपक्षी दल इस मुद्े पर सत्ा पक् को घेरते रहे हैं । वहीं दूसरा सबसे बडा मुद्ा सुरक्ा का है । दलित चिंतक सत़ीश प्रकाश कहते हैं , दलित चाहते हैं कि कानून वयिसथा बेहतर हो । कयोंकि , अपराध का शिकार भ़ी वे कहीं जयादा होते हैं । वे चाहते हैं कि बेरोजगाऱी क़ी बात हो । प्रशासनिक वयिसथा में उनक़ी सहभागिता बढे । जन क्यािकाऱी योजनाएं उन तक पहुंचंे , इसके लिए पारदशटी वयिसथा भ़ी वे चाहते हैं । भ़ीम आमटी व आजाद समाज पाटटी के संसथापक चंरिशेखर आजाद इन सवालों को और भ़ी सप्ट कर देते हैं । वे कहते हैं , राजऩीलत क़ी बिसात पर दलितों को केवल मोहरा बनाया गया । समाज क़ी अनय जातियां जहां अपऩी हिससेदाऱी के लिए िड रह़ी हैं , वहीं दलित केवल रोट़ी , कपडा और मकान के लिए संघर्ष कर रहा है । देश में हर साल लाखों बच्ों क़ी मौत कुपोषण से होत़ी है । सुरक्ा दलितों के लिए एक बडा मुद्ा है । एनस़ीआरब़ी के आंकडे बताते हैं कि दलितों के खिलाफ होने वाले अपराध में भ़ी उत्र प्रदेश पहले पायदान पर है । साल 2020 में देश में दलितों के खिलाफ अपराध के कुल 50,291 मामले दर्ज हुए । इनमें से 12,714 मामले उत्र प्रदेश के हैं । 2019 क़ी तुलना में दलितों के खिलाफ होने वाले अपराध का आंकडा भ़ी बढा है ।
सियवासी चेतनवा बढी , बदिवाि बवाकी
सत़ीश प्रकाश और चंरिशेखर आजाद के सवाल अपऩी जगह जायज भ़ी हैं । ये सवाल आम दलित युवाओं को झकझोरते भ़ी हैं ।
30 दलित आं दोलन पत्रिका tuojh 2022