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इसलिए अहम है कयोंकि यह सुलनलशित करता है कि इस तरह के भेदभाव से सबसे जयादा प्रभावित रहे लोगों और समुदायों को पता हो कि यूनिवर्सिट़ी उनके साथ हुए अनयाय को समझत़ी है ।”
अमेरिकवा में दलित को अलग बर्तन में भोजन
जिस प्रतिष्ठत सथाऩीय अखबार ' फ्ांलससको क्रॉनिकल ' ने कैंपस में ऩीलतयों में हुए संशोधन के बारे में खबर प्रकाशित क़ी है उससे पूरे मामले का विसतार से खुलासा करते हुए लिखा है कि
छात्ों ने इस बदलाव क़ी मांग उठाऩी तब शुरू क़ी जब उनहोंने देखा कि चैट ग्ुप में लोग जाति के आधार पर मजाक उडाने वाले म़ीम भेज रहे थे और कैंपस में दलक्ि एशियाई लोग एक दूसरे क़ी जाति पूछ रहे थे । 2015 में नेपाल से अमेरिका गए 37 िषटीय प्रेम पेरियार कैलिफॉर्निया
सटेट यूनिवर्सिट़ी में पढते हैं । वह कहते हैं कि उनके परिवार को कई बार नेपाल में मारप़ीट तक का सामना करना पडा कयोंकि वे कथित लनिि़ी जाति के थे , लेकिन उनहोंने सोचा भ़ी नहीं था कि अमेरिका में उनहें जातिगत भेदभाव सहना होगा । पेरियार बताते हैं कि अनय दलक्ि एशियाई लोगों के साथ संपर्क के दौरान रेसतराओं से लेकर सामुदायिक कार्यक्रमों तक में उनहें जाति क़ी याद दिलाई जात़ी रह़ी । वह बताते हैं , " कुछ लोग मुझे जानने के नाम पर मेरा उपनाम पूछते हैं जबकि असल में वे यह जानना चाहते हैं कि मेऱी जाति कया है । यह पता चलने के बाद कि मैं दलित हूं , कुछ लोग मुझे अलग बर्तनों में खाना देते हैं ।” पेरियार ने स़ीएसयू में छात्ों को संगठित करना शुरू किया और कैल सटेट सटूडेंट एसोसिएशन क़ी सथापना क़ी जो स़ीएसयू के 23 परिसरों को प्रतिनिधिति करत़ी है । एसोसिएशन ने जाति को भेदभाव का आधार बनाने के लिए ऩीलत में बदलाव क़ी मांग क़ी जिसके बाद यूनिवर्सिट़ी कैंपस को अपऩी ऩीलतयों में संशोधन करने के लिए विवश होना पडा ।
भवारत की जवावि व्यवस्था है जिम्ेदवार ?
हालांकि जाति के आधार पर भेदभाव होने क़ी बात स्वीकार करते हुए ऩीलतयों में समसामयिक प्रासंगिक सुधारातमक बदलाव सिर्फ डेविस लसथत कैंपस ने किया है , बाकियों ने नहीं । पेरियार कहते हैं कि अमेरिका में जातिगत भेदभाव को पहचान दिलाने क़ी दिशा में यह एक बडा कदम है कयोंकि यह एक मुद्ा है जो यहां मौजूद है और इससे निपटने का वकत आ चुका है । हालांकि अमेरिका में जाति के आधार पर भेदभाव होने के लिए भारत क़ी जाति वयिसथा पर आधारित सामाजिक संरचना को जिममेदार बताया जा रहा है । दि़ीि द़ी जा रह़ी है कि भारत में जाति प्रथा हजारों साल से प्रचलित है जिसमें दलितों को सामाजिक पायदान में सबसे ऩीिे रखा जाता है । इस कारण वे सदियो से दमन और यातनाओं के शिकार हैं , जो अब तक चला आ रहा है जबकि भारत़ीय संविधान
में 1950 में ह़ी जाति आधारित भेदभाव को गैरकानूऩी करार दिया जा चुका है । समाज विज्ालनयों का कहना है कि भारत से होत़ी हुई यह प्रथा भूटान , नेपाल , पाकिसतान , श्रीलंका और मयांमार तक भ़ी पहुंच चुक़ी है और वहां रहने वाले हिंदू भ़ी जाति को मानते हैं । दूसऱी ओर यूनिवर्सिट़ी के सेंटर फॉर साउथ एशियन सटड़ीज क़ी सह-निदेशक अंजलि आरोंडेकर कहत़ी हैं कि हिंदुओं के अलावा मुसलमान , सिख , जैन , ईसाई और बौद्धों में भ़ी जाति प्रथा पाई जात़ी है । प्रोफेसर आरोंडेकर ने कहा , " जाति मुखयतया कार्य-आधारित बंटवारा है और जो सदियों से चला आ रहा है ।”
संयुक्त रवाष्ट्र भी मवानिवावधकवार हनन पर
चिंतित संयुकत रा्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल
बैचलेट ने कहा , " हमारे ज़ीिनकाल में मानवाधिकारों के सबसे वयापक और गंभ़ीर झटकों से उबरने के लिए हमें एक ज़ीिन बदलने वाि़ी दृष्ट और ठोस कार्रवाई क़ी जरूरत है ।" मानवाधिकार परिषद के 47वें सत् को संबोधित करते हुए उनहोंने टिग्े में साढे त़ीन लाख लोगों के सामने भुखमऱी के संकट पर चिंता जताई । उ्िेखऩीय है कि पिछले साल कैलिफॉर्निया में सिसको सिसटमस नामक एक बहुराष्ट्रीय कंपऩी पर तब मुकदमा किया गया था जब एक दलित भारत़ीय इंज़ीलनयर को लसि़ीकॉन वैि़ी लसथत इस कंपऩी में जाति के कारण भेदभाव का सामना करना पडा । यह इंज़ीलनयर सिसको के सैन होसे लसथत मुखयािय में तैनात था । उसके कई भारत़ीय सहयोग़ी थे जो कथित ऊंि़ी जातियों से थे । कैलिफॉर्निया के डिपार्टमेंट ऑफ फेयर इंपलॉयमेंट एंड हाउसिंग द्ारा दर्ज मुकदमे के मुताबिक , " उच् जाति के सुपरवाइजर और सहयोग़ी जाति आधारित भेदभावपूर्ण वयिहार को ट़ीम और सिसको के कामकाज के भ़ीतर ले आए थे ।” कंपयूटर नेटवर्क क्ेत् क़ी जाऩीमाऩी कंपनियों में शुमार सिसको ने कहा है कि वह इस मुकदमे के खिलाफ लडेग़ी । �
tuojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 29