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जनरल का हवाला देते हुए दावा किया गया है कि 1980 के दशक के बाद लसथलतकाऱी बदल गई है , और आज हम दलित समुदाय से आने वाले वक़ीिों क़ी संखया में पर्यापत वृद्धि देखते हैं । हालांकि , उनहें इस बात का भ़ी अफसोस है कि दलित और आदिवास़ी समुदायों के सदसयों को पर्यापत प्रतिनिधिति नहीं मिला है कयोंकि कोई प्रणाि़ीगत समावेश़ी वयिसथा संसथागत नहीं थ़ी ।
दलित पहचवान छु पवाने की मजबूरी
उच् जातियों के त़ीन मौजूदा उच् नयायालय के नयायाि़ीशों का हवाला देते हुए , जिनहोंने स्वीकार किया कि लनिि़ी अदालतों में जाति किाइंट प्रापत करने में भूमिका निभा सकत़ी है , रिपोर्ट में कहा गया है कि अकसर , दलित समुदाय
के कुछ वक़ीि मामलों को प्रापत करने के लिए अपऩी पहचान छुपाते हैं । इस तथय क़ी दलित समुदाय के एक अनय प्रतिवाद़ी द्ारा पुष्ट क़ी गई , जिनहोंने साझा किया कि उनके एक रिशतेदार ने मुिलककि प्रापत करने के लिए अपना उपनाम बदलकर ब्ाह्मण उपनाम कर लिया था । रिपोर्ट में कहा गया है कि “ चूंकि दलित सबसे वंचित सामाजिक समूहों में से एक हैं , इसलिए उनहें गुणवत्ापूर्ण कानूऩी शिक्ा तक पहुंच में बाधाओं का सामना करना पडता है । रिपोर्ट कहत़ी है कि भारत के एक पूर्व मुखय नयायाि़ीश ने टिप्पणी क़ी कि उनके समय में अधिकांश दलित वक़ीि अंग्ेज़ी माधयम सकूिों में अधययन नहीं करते थे । इसके परिणामसिरूप , वे लनिि़ी अदालतों में प्रैलकटस करने तक ह़ी स़ीलमत थे कयोंकि उच् नयायालयों को अंग्ेज़ी में उन्त दक्ता क़ी आवशयकता होत़ी है । कयोंकि उच् नयायालयों और उच्तम नयायालय में सुनवाई का माधयम अंग्ेज़ी है , दलित समुदाय के अधिकांश वक़ीिों के पास यह विक्प नहीं था कि वे इन संवैधानिक अदालतों के समक् अपऩी वकालत शुरू करें ।
जवाविगत भेदभवाि से दलित हतोत्साहित
रिपोर्ट में कहा गया है कि कानूऩी पेशे में दलित समुदाय के सामने आने वाि़ी मुलशकिें यहीं खतम नहीं होत़ी हैं । रिपोर्ट में इंगित किया गया है कि भारत में बार एसोसिएशनों में ऐतिहासिक रूप से उच् जाति के पुरुषों का वर्चसि रहा है । वर्तमान पद धारकों और बार काउंसिल ऑफ इंडिया ( ब़ीस़ीआई ) के अनय अधिकारियों के प्रोफाइल क़ी सम़ीक्ा से पता चलता है कि इसमें मुखय रूप से उच् जाति क़ी पृ्ठभूमि के वयलकत शामिल हैं । शुरुआत़ी सालों में दलित वक़ीिों को समर्थन देने वाि़ी ब़ीस़ीआई या किस़ी बार एसोसिएशन क़ी कोई योजना नहीं लमि़ी । रिपोर्ट कहत़ी है कि भेदभाव के परिणामसिरूप युवा दलित वक़ीिों के पास कानूऩी क्ेत् में समान अवसरों तक पहुंच नहीं है , उनके पास केवल स़ीलमत विक्प हैं , जिससे
वे दलित समुदाय के अधिकारों क़ी वकालत करने वाले अपने सियं के जम़ीऩी सतर के संगठन बनाने के लिए प्रेरित होते हैं । इससे भ़ी बदतर लसथलत यह है कि दलित / आदिवास़ी समुदाय के लिए जम़ीऩी सतर पर मानवाधिकार मामलों पर काम करने वाले वक़ीिों को माओवाद़ी या नक्सली के रूप में ब्ांडेड किया जा रहा है , ताकि उनहें राजय प्रशासन के अनुरूप बनाया जा सके ।
अत्याचवार के मवामलों के प्रति असंवेदनशीििवा
रिपोर्ट में कहा गया है कि एसस़ी / एसट़ी अतयािार के मामलों के प्रति असंवेदनश़ीिता है । जबकि आपराधिक नयाय प्रशासन प्रणाि़ी के साथ काम करने वाले मानवाधिकारों के लिए राष्ट्रीय अभियान और नयाय के लिए राष्ट्रीय दलित आंदोलन जैसे संगठनों के माधयम से दलित वक़ीिों क़ी क्मता को बढािा देने के प्रयास किए गए हैं , जो अतयािार और हिंसा से प्रभावित लोगों के नयाय तक पहुंच के मुद्ों को हल करने के लिए काम कर रहे हैं । रिपोर्ट में कहा गया है कि जिला सतर पर अधिकांश सरकाऱी अभियोजकों को न तो अतयािार कानून का ज्ान है और न ह़ी वे पीड़ितों क़ी पृ्ठभूमि के प्रति संवेदनश़ीि हैं । एसस़ी और एसट़ी के खिलाफ अतयािार से संबंधित मामलों का जिक्र करते हुए , रिपोर्ट में एक दशक से अधिक समय से सुप्ऱीम कोर्ट में प्रैलकटस कर रहे एक दलित वक़ीि को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि अकसर वह दलितों से संबंधित मामलों को संभालने में वरर्ठ अधिवकताओं द्ारा अपनाए गए दृष्टकोणों में अंतर अनुभव करता है । रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे ह़ी एक उदाहरण में उच्तम नयायालय के त़ीन नयायाि़ीशों , जिनहें उनके दृष्टकोण में उदार माना जाता था , ने उनहें अतयािारों और सकारातमक कार्रवाई के मामलों में अपऩी बात रखने से रोक दिया । एक अनय उदाहरण में उनहें अतयािार के मामले में तथयों को पढने के लिए नयायाि़ीश द्ारा रोका गया था । �
tuojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 27