eMag_Jan2022_DA | Page 21

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बजट में गत वर्ष क़ी तुलना में क़ी गई कटौत़ी इसका साफ उदाहरण है । सममेिन को संबोधित करते हुए सिगोच् नयायालय के विशेष आयुकत के पूर्व राजय सलाहकार सदसय बलराम ने कहा कि मनरेगा कानून मनरेगा श्लमकों को अपने ह़ी रहवास क्ेत् में प्रतिवर्ष 100 दिन काम क़ी गारंट़ी देता है । पारदर्शिता और प्रशासनिक अधिकारियों क़ी जवाबदेह़ी सुलनलशित करता है । यह एकमात् देश का पहला कानून है , जिसमें ग्ाम सभाओं और पंचायतों को सशकत करने का पूरा-पूरा मौका प्रदान करता है , लेकिन 14 िषमों बाद भ़ी सरकाऱी मश़ीनऱी कानूऩी प्रावधानों को जम़ीऩी धरातल पर उतारने में असफल हो रह़ी है , जिसका स़ीिा असर राजय के उपेलक्त ग्ाम़ीिों खासकर मनरेगा श्लमकों पर पड रहा है ।
मजदूरी की दर के प्रति नकवारवात्मक मवानसिकिवा
सरकार का मजदूरों के प्रति नकारातमक मानसिकता इस बात से साफ झलकत़ी है कि आज राजय क़ी नयूनतम कृषि मजदूऱी अकुशल श्लमकों के लिए 257.29 रुपये है , जबकि यहां मनरेगा मजदूरों को सिर्फ 171 रुपये दैनिक
मजदूऱी द़ी जा रह़ी है । यह देश के 29 राजयों और पांच केंरि शासित प्रदेशों मंर सबसे कम मजदूऱी है । बलराम ने कहा कि कानून में योजनाओं के चयन का अधिकार ग्ाम सभाओं को है , लेकिन राजय सरकार कानून लागू होने के समय से ह़ी योजनाओं को ग्ाम़ीिों पर ऊपर से थोपने का काम करत़ी रह़ी है । एक समय सभ़ी पंचायतों में 50-50 कुंए खोदने का आदेश दिया । 2015-16 में सभ़ी गांवों में डोभा खोदने का फरमान राजय से जाऱी किया गया । जबकि उस़ी वर्ष ग्ाम सभाओं ने अपने गांवों के लिए विलभन् प्रकार क़ी दस लाख से जयादा योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर चयन किया था । उनहोंने कहा कि संविधानिक संसथा ग्ाम सभा के भावनाओं का इस तरह सरकार ठेस पहुंचाएग़ी तो ऊपर से थोप़ी गई योजनाओं के साथ जनता खुद को जोड नहीं पात़ी है और ऐस़ी मनरेगा योजनाएं बिचैलियों क़ी योजना बनकर रह जात़ी हैं ।
मनरेगवा बनवा समस्याओ ंकवा मपरवारवा सममेिन में राजय के विलभन् जिलों से आए
लोगों ने अपने-अपने विचार रखे । इसमें पिछले
पांच सालों के दरमियान राजय के विलभन् बैंकों में मजदूरों के करोडों रुपये रिजेकटेड रहने तथा मजदूऱी भुगतान लंबित रहने जैसे मुद्ों को रखा गया । सदसयों ने यह भ़ी बताया कि यहां इस राजय में शिकायत निवारण प्रणाि़ी लगभग धिसत हो चुक़ी है । राजय एवं जिला सतर पर सथालपत टोल फ्री नंबर में दर्ज शिकायतों पर अधिकाऱी कोई कार्रवाई नहीं करते हैं । कानून क़ी धारा 12 के तहत गठित राजय रोजगार गारंट़ी परिषद क़ी बैठक भ़ी नियमित रूप से नहीं होत़ी और इसमें लिए गए निर्णयों पर भ़ी समयबद्ध तऱीके से अमल नहीं किया जाता । कानून क़ी धारा 27 ( 1 ) में जन शिकायतों के निवारण के लिए सभ़ी जिलों में मनरेगा लोकपालों क़ी नियुलकत अनिवार्य क़ी गई है , लेकिन पिछले त़ीन सालों से अधिकांश जिलों में लोकपाल के पद खाि़ी पडे हैं । इस़ी प्रकार भारत सरकार और सामाजिक संगठनों के वयापक दबाव के बाद कानून क़ी धारा 17 ( 2 ) के अनतग्थत ग्ाम सभाओं के माधयम से मनरेगा स्कीमों क़ी नियमित सामाजिक अंकेक्ि 2017 से प्रारंभ क़ी गई है । उसके बाद से योजना क्रियानियन से संबंधित तकऱीबन साठ हजार से अधिक मामलों क़ी पुष्ट हुई है जिनमें करोडों रूपए क़ी राशि के दुरुपयोग साबित हुए हैं । साथ ह़ी राजय सरकार ग्ाम सभाओं द्ारा संपु्ट और जयूऱी सदसयों द्ारा निर्णित अधिकांश मुद्ों पर ससमय कार्रवाई नहीं कर रह़ी है ।
याऩी समग्ता में समझें तो झारखंड में गऱीबों को समसयाओं से निजात दिलाने के बजाय मनरेगा खुद में ह़ी समसयाओं का पिटारा बन कर रह गया है । लनलशित तौर पर इस मसले क़ी अनदेख़ी का स़ीिा और बडा दु्प्रभाव आम गऱीबों , मजदूरों , दलितों , आदिवासियों और वंचित तबके पर पडता है । ऐसे में आवशयक है कि इस मामले को गंभ़ीरता से देखा जाए और ग्ाम सभाओं को पूरा अलखतयार देते हुए उनके हाथ मजबूत किए जाएं ताकि एक ओर ग्ाम सिराज क़ी संक्पना भ़ी साकार हो और दूसऱी ओर समाज के अंतिम वयलकत को पूरा हक मुहैया हो सके । �
tuojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 21