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भी मल्या करते थे । इस प्कार जन-सह्योग से तारापुर में क्रांतिकारर्यों का दसता अपने तरीके से भारत की आजादी के लिए संघर्षरत था ।
तारापुर में सेनामन्यों का दूसरा बडा केनद्र संरिामपुर प्खंड के सुपौर जमुआ रिाम ससथत ‘ श्ीभवन ’ से संचालित होता था । जहां उस वकत कांरिेस से बडे -बडे नेता भी आ्या करते थे । इसी केनद्र से तारापुर “ तरंग “ और “ विपलि “ जैसी क्रांतिकारी पमत्का छपती थी । बिहार के प्थम मुख्यमंत्ी श्ीकृष्ण सिंह , तारापुर के प्थम विधा्यक वासुकी नाथ रा्य की कर्मभूमि तारापुर थी । उनके सह्योग में ज्यमंगल सिंह शासत्ी , दीनानाथ सहा्य , हितलाल राजहंश , नंदकुमार सिंह , सुरेशिर पाठक , भैरव पासवान व सूचि सिंह इत्यादि कांरिेसकमटी तन-मन-धन से अपनी जान की बाजी लगाकर जुटे रहते थे ।
इसी दौरान 1931 में हुआ गाँधी – इरविन समझौता भंग होने के बाद जब कांरिेस को अवैध संगठन घोषित कर अंरिेजों ने सभी कांरिेस का्या्णल्य पर मब्मटश झंडा ्यूमन्यन जैक टांग मद्या । महातमा गांधी , सरदार पटेल और राजेंद्र बाबू जैसे दिगगज नेताओं को गिरफतार कर मल्या ग्या था । इसी की प्रतिक्रिया में ्युदक समिति के प्धान सरदार शार् दुल सिंह कवीशिर ने एक संकलप पत् कांग्रेसियों और क्रांतिकारर्यों के नाम जारी मक्या कि 15 फरवरी सन 1932 को सभी सरकारी भवनों पर तिरंगा झंडा लहरा्या जाए । उनका मनदजेश था कि प्त्येक थाना क्ेत् में पांच सत्याग्रहियों का जतथा झंडा लेकर धावा बोलेगा और शेष का्य्णकर्ता दो सौ गज की दूरी पर खडे होकर सत्याग्रहियों का मनोबल बढाएंगे ।
्युदक समिति के प्धान सरदार शार् दुल सिंह कवीशिर के आदेश को कार्यान्वित करने के लिए सुपोर-जमुआ के ‘ श्ी भवन ‘ में कांरिेसी का्य्णकर्ताओं व अन्य क्रांतिकारर्यों की बैठक हुई जिसमें मदन गोपाल सिंह ( रिाम – सुपोर- जमुआ ), मत्पुरारी कुमार सिंह ( रिाम-सुपोर- जमुआ ), महावीर प्साद सिंह ( रिाम-महेशपुर ), कार्तिक मंडल ( रिाम-चनकी ) और परमाननद झा ( रिाम-पसराहा ) सहित 500 सदस्यों का धावक दल ््यमनत मक्या ग्या । 15 फरवरी सन 1932
को तारापुर थाना भवन पर राष्ट्रीय झंडा तिरंगा फहराने के का्य्णक्रम की सूचना पुलिस को पूर्व में ही मिल ग्यी थी । इसी को लेकर मब्मटश कलेकटर मिसटर ई० ओ० ली० और एसपी डबल्यू० एस मैगरेथ सशसत् बल के साथ थाना परिसर में मौजूद थे ।
दोपहर 2 बजे धावक दल ने थाना भवन पर धावा बोला और अंरिेजी सिपामह्यों की लाठी और बेत खाते हुए अंततः धावक दल के मदन गोपाल सिंह ने तारापुर थाना पर तिरंगा फहरा मद्या । उधर
दूर खडे होकर मनोबल बढा रहे समर्थक धावक दल पर बरसती लामठ्यों से आक्रोशित हो उठे । गुससे से उबलते समर्थकों ने पुलिस बल पर पथराव शुरू कर मद्या जिसमें कलेकटर ई० ओ० ली० घा्यल हो ग्ये और उसने पुलिस बल को निहतथे प्दर्शनकारर्यों पर गोली चलाने का आदेश दे मद्या । इस गोलीकाणड में पुलिस बल विारा कुल 75 चक्र गोमल्याँ चली जिसमें दर्जनो घा्यल हुए थे और तीन दिन बाद घटनासथल से 34 शव बरामद हुए जिनमे से केवल 13 शहीद जिनकी पहचान हो पाई थी वो थे शहीद श्ी विशिनाथ सिंह ( छत्हार ), श्ी महिपाल सिंह ( रामचुआ ), श्ी शीतल चमार ( असरगंज ), श्ी सुकुल सोनार ( तारापुर ), श्ी संता पासी ( तारापुर ), श्ी झोंटी झा ( सतखरर्या ), श्ी सिंहेशिर राजहंस ( बिहमा ), श्ी बदरी मंडल ( धनपुरा ), श्ी वसंत धानुक ( लौढि़्या ), श्ी रामेशिर मंडल ( पडभाडा ), श्ी गैबी सिंह ( महेशपुर ), श्ी अशफटी मंडल ( क्टीकरी ) तथा श्ी चंडी महतो ( चोरगांव )। इसके अलावे 21 शव ऐसे मिले
जिनकी पहचान नहीं हो पा्यी थी । और कुछ शव तो गंगा में बहा दिए गए थे । इस घटना ने अप्ैल 1919 को अमृतसर के जामल्यांवाला बाग गोलीकांड की बर्बरता की ्याद ताजा कर दी थी ।
आज भी शहीदों की ्याद में तारापुर का वह मब्मटशकालीन थाना भवन मौजूद है जहां झंडा फहरा्या ग्या था । गौरतलब है कि आजादी से पूर्व तक अखिल भारती्य कांरिेस विारा हर वर्ष 15 फरवरी को “ तारापुर दिवस ” मना्या जाता रहा है लेकिन आज़ादी के बाद सत्ता के सिाद में हमारे नेता सितंत्ता शहीदों की शहादत को भूल ग्ये और बडे इतिहासकारों ने ‘ तारापुर गोलीकांड ’ के साहसिक ककृत्यों को इतिहास में शामिल करना मुनासिब नहीं समझा । लेकिन सूचना क्रांति के इस ्युग में इंटरनेट दिनोदिन इतिहास के नए पन्ने जोड़ रहा है । लाखों – करोड़ों तथ्य जो छछुपा्ये गए ्या नजरअंदाज मक्ये गए वो आज सामने आ रहे हैं । गुमनाम बना दिए गए नेताजी सुभाष ्नद्र बोस से जुडी फाइलें आज वेबसाईट पर सबके लिए उपलबध कराई जा रही हैं । ठीक वैसे ही ‘ तारापुर शहीद दिवस ’ भी धीरे-धीरे अपनी जगह बना रहा है ।
15 फरवरी 1932 के शहीदों की कहानी को का्य्णक्रमों , लेखों और सोशल मीमड्या के विविध रूपों से ्युवा ट्रसट के का्य्णकर्ताओं ने राष्ट्रीय सतर तक पहुंचा्या है । हमारे लिए गौरब की बात है कि हमारे भेजे गए विष्य को अपने मन की बात में शामिल करते हुए आदरणी्य प्धानमंत्ी नरेंद्र मोदीजी ने तारापुर के शहीदों को नमन मक्या और उनके बलिदान की कहानी को वैसशिक पटल पर रखा ।
अंत मे ्यही कहूंगा कि ्यह तारापुर गोलीकांड अपने मे एक अद्भुत घटना है जिसमें दो बातें ध्यान देने ्योग्य है , पहला कि पूर्व मन्योजित रूप में नौजवान एक टीम बनाकर झंडा फहराने आ्ये थे जबकि मालूम था कि गोली चलेगी , लाठी चलेगी और जान भी जाएगी । दूसरा , इस गोलीकांड के शहीदों में हर जाती्य वर्ग के लोग शामिल थे । शहीदों के नाम पढ़कर ्यह अंदाजा लगा्या जा सकता है कि भारत मे सितंत्ता की लड़ाई सभी जामत्यों ने मिलकर लड़ी थी । �
50 दलित आं दोलन पत्रिका iQjojh 2022