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सवर्ण ्या शूद्र , उच्च ्या निम्न माना जाने लगा । शूद्रों को असपृश्य और अछूत माना जाने लगा । इतना ही नहीं उनहें वेदों के अध्य्यन , पठन - पाठन , यज्ञ आदि करने से वंचित कर मद्या ग्या । उच्च वर्ग ने समाज में अपना वर्चसि बना्ये रखने के लिए बडी चालाकी ्यह की कि ज्ान व शिक्ा के अधिकार को उनसे ( निम्न वर्ग से ) छीन मल्या और उनहें अज्ान के अंधकार में झोंक मद्या । इससे वे आज तक जूझ रहे हैं और उबर नहीं पा रहे हैं ।
दलित र्ब्द का वास्तविक अर्थ
दलित शबद का उप्योग अलग-अलग संदभषों में अलग-अलग अथषों में मक्या जाता रहा है । अकसर इस शबद का प्रयोग एससी के संदर्भ में मक्या जाता है । कभी-कभी इसमें एससी और
एसटी दोनों को ससमममलत कर मद्या जाता है । कुछ अन्य मौकों पर और अन्य संदभषों में , इस शबद का इसतेमाल एससी , एसटी व एसईडीबीसी तीनों के लिए सं्युकत रूप से मक्या जाता है । कभी-कभी इन तीनों के लिए ' बहुजन ' शबद का इसतेमाल भी होता है । जैसा कि हम जानते हैं भारती्य समाज में दलित वर्ग के लिए अनेक शबद प्रयोग में ला्ये जाते रहे है , लेकिन अब दलित शबद सर्वसिीका्य्ण है । दलित का शासबदक अर्थ है - मसला हुआ , रौंदा ्या कुचला हुआ , न्ट मक्या हुआ , दरिद्र और पीमडत दलित वर्ग का व्यसकत । भारत में विभिन्न विविान विचारकों ने दलित समाज को अपने - अपने ढंग से संबोधित एवं परिभाषित मक्या है । दलित पैंथर्स
के घोषणा पत् में अनुसूचित जाति , बौद , कामगार , भूमिहीन , मज़दूर , गरीब - किसान , खानाबदोश , आदिवासी और नारी समाज को दलित कहा ग्या है ।
' डिप्रेसड ' और ' सप्रेसड क्ासेज '
डॉ . एनीबेसेंट ने दरिद्र और पीडितों के लिए ' डिप्ेसड ' शबद का प्रयोग मक्या है । सिामी विवेकानंद ने ' सप्ेसड कलासेज ' शबद का प्रयोग उन समुदा्यों के लिए मक्या जो अछूत प्था के शिकार थे । गांधीजी ने भी इस शबद को सिीकार मक्या और ्यह कहा कि वे निःसंदेह ' सप्ेसड ' ( दमित ) हैं । आगे चलकर उनहोंने इन िगषों के लिए ' हरिजन ' शबद गढ़ा और उसका प्रयोग करना शुरू मक्या । सिामी विवेकानंद विारा इसतेमाल किए गए ' सप्ेसड ' शबद को सिामी
दलित शब्द का उपयोग अलग-अलग संिभभों में अलग- अलग अर्थों में किया जाता रहा है । अक्सर इस शब्द का प्रयोग एससमी के संदर्भ में किया जाता है । कभमी-कभमी इसमें एससमी और एसटमी दोनों को सम्मिलित कर दिया जाता है । कु छ अन्य मौकों पर और अन्य संिभभों में , इस शब्द का इतिेमाल एससमी , एसटमी व एसईडमीबमीसमी िमीनों के लिए संयुक्त रूप से किया जाता है ।
श्दानंद ने हिनदी में ' दलित ' के रूप में अनुदित मक्या । सिामी श्दानंद के अछूत जामत्यों के प्मत दृष्टकोण और उनकी सेवा करने के प्मत उनकी सत्यमन्ठा को डॉकटर आंबेडकर और गांधीजी दोनों ने सिीकार मक्या और उसकी प्शंसा की । गांधीजी और आंबेडकर में कई मतभेद थे , परंतु सिामी श्दानंद के मामले में दोनों एकमत थे । बाबा साहेब आंबेडकर , महातमा फुले , रामासिामी पेरर्यार ने इस बृहत समाज के उतथान के लिए उनहें समाज में उचित सथान दिलाने के लिए बहुत संघर्ष मक्या । आज अगर दलित वर्ग में अधिकार और न्या्य चेतना का विकास हुआ है तो वह इनहीं महानुभावों के संघर्ष का सुफल है । हमारे लेखकों , साहित्यकारों ने
दलित समाज के क्टों , अपमान और संघषषों को अपनी लेखनी के माध्यम से पूरे विशि के सामने रखा । विशेषकर दलित वर्ग के लेखकों ने अपनी आतमकथाओं के विारा दलित समाज के क्टकारक ्यथार्थ को बृहद जनमानस के सामने ईमानदारी से प्सतुत मक्या ।
मराठी लेखकों की आत्मकथाएँ
कुछ मराठी लेखकों की आतमकथाएँ सामाजिक-ऐतिहासिक दृष्ट से अत्यंत महतिपूर्ण हैं जिनकी चर्चा अत्यंत आवश्यक है । इनमें एक आतमकथा का शीर्षक है ' उपारा ' ( बाहरी व्यसकत ) ( 1980 ) जो मराठी में लक्मर माने विारा लिखी गई थी । ्यह ककृमत केकाड़ी समुदा्य के बारे में है । ्यह समुदा्य महारा्ट्र में एसईडीबीसी की सूची में शामिल है । ्यह एक ऐसा समुदा्य है जिसे औपनिवेशिक काल में आपराधिक जनजाति अमधमन्यम 1871 के तहत आपराधिक जनजाति करार मद्या ग्या था । केकाड़ी , आंध् प्देश के ्येरूकुला के समकक् हैं , जिनहें पूर्व में ' दमित जामत्यों ' की सूची में शामिल मक्या ग्या था और बाद में एसटी का दर्जा दे मद्या ग्या । ्ये दोनों कर्नाटक के कोराचा , जो एससी की सूची में हैं और तमिलनाडछु के कोरावा के समकक् हैं । कोरावा के कुछ तबकों को एसटी और कुछ को पिछड़ी जामत्यों में शामिल मक्या ग्या है । अलग-अलग राज्यों में उनहें जो भी दर्जा मद्या ग्या हो । इसमें कोई संदेह नहीं कि केकाड़ी समुदा्य , समाज के सबसे निचले पा्यदान पर है और उनके जीवन के बारे में लिखे गए साहित्य को ' दलित साहित्य ' कहा ही जाना चाहिए , लेकिन ऊपर बताए गए सप्टीकरण के साथ । प्मसद लेखिका महाशिेता देवी ने लोध और सबर नामक एसटी समुदा्यों पर केसनद्रत ककृमत्याँ रची हैं ।
दलित साहित्य में सामने आ रहा सच सामान्यतः दलित शबद का इसतेमाल
अनुसूचित जाति के लिए मक्या जाता है अर्थात
iQjojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 47