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साथ है ।
प्देश में दलित जनता की संख्या पिछडा वर्ग के बाद सबसे ज्यादा है । किसी सम्य कांरिेस का वोट बैंक रहने वाला दलित वर्ग जाटव और गैर जाटव में विभकत है । जाटव जाति की जनसंख्या 54 प्मतशत है , जबकि 16 प्मतशत पासी और 15 प्मतशत बालमीमक जाति से हैं । बसपा के साथ जुड़कर दलित वर्ग ने प्देश में पहली बार मा्यावती को 1995 में और फिर 2002 और 2007 में सत्ता तक पहुंचा्या । लेकिन 2014 के बाद दलित जनता को पहली बार ऐसा लगा कि वासति में विकास की राजनीति ही उनके दुःख-दर्द को दूर कर सकती है । केंद्र सरकार की ्योजनाओं के मक्र्यानिन से दलित , पिछड़ी और गरीब जनता को जिस तरह से लाभ मिलना प्ारमभ हुआ , वह अनुभव उनके लिए न्या और सुखद था ।
विकास की राजनीति से समाज में आ रहे बदलाव के कारण ही बसपा कमजोर होती चली ग्यी । दलित समाज में पैदा हुई चेतना के कारण 2017 में भाजपा को 324 सीट मिल गई । दलित , पिछड़े और गरीब वर्ग की जनता के लिए पिछले पांच वर्ष के दौरान प्देश के अंदर जमीनी सतर पर जिस तरह से का्य्ण हुआ , उसका लाभ उठाने वाली दलित , पिछड़ी और गरीब जनता पुनः भाजपा के साथ खड़ी हुई है । सरकार की विभिन्न विकासवादी ्योजनाओं का लाभ प्देश की समपूर्ण जनता को मिलना , ्योजनाओं के मक्र्यान्वयन में भेदभाव का न होना , क़ानून-व्यवसथा का चुसत-दुरुसत रहना , अपराधी एवं समाज विरोधी ततिों के विरुद सखती सहित शासन-प्शासन का वासतमिक रूप से विकास ्योजनाओं , परर्योजनाओं और कार्यो पर ध्यान देना आदि कई ऐसे कारण हैं ,
जो एक बार फिर ्योगी आदित्यनाथ की सरकार को पुनः सत्ता में ला रहे हैं ।
जातिगत आकंड़ों के आधार पर प्देश में सवर्ण मतदाता लगभग 23 प्मतशत है , इनमें 11 प्मतशत ब्ामहर , 8 प्मतशत राजपूत और 2 प्मतशत का्यसथ हैं । इस जाति पर कभी भी किसी राजनीतिक दल का कबजा नहीं रहा । प्देश में आठ ब्ामहर मुख्यमंत्ी और तीन राजपूत मुख्यमंत्ी रह चुके हैं । 1990 के बाद प्देश की राजनीति में ब्ाह्मण और राजपूत जामत्यों का दबदबा कम हुआ है । इसके बावजूद ब्ाह्मण और राजपूत खेमा भी मोदी-्योगी के प्मत सकारातमक भाव को रखता है । सभी जाति , उपजाति और वर्ग की जनता भाजपा के शासनकाल में जाति-उपजाति की सीमाओं को तोड़ने में जुटी हुई है । राजनीति के सथान पर जमीनी सतर पर जाकर देखा जा्ये तो जाति के बंधन तोड़कर आम जनता अपने अपने सामाजिक-समर्थन का दा्यरा लगातार बढाती जा रही है ।
भाजपा की आधुनिक विकासवादी अवधारणा आम जनता की जातिगत सोच की जातिगत सोच में बदलाव का वाहक बन रही है । विकासवादी सोशल-इंजीमन्यरिंग के कारण भाजपा आज लगभग 54 प्मतशत ओबीसी और 20.7 प्मतशत दलित आबादी वाले प्देश में अन्य पामट्ट्यों से आगे निकल चुकी है । प्देश में होने जा रहे चुनाव में एक बार फिर जाति , उपजाति ्या वर्ग के हितों के दावे करने वाले नेताओं को पराज्य का सामना करना पड़ेगा । जनहित के नाम पर सिमहत में डूबे नेता चाहे कितने भी आरोप लगाएं , पर उनकी असमल्यत सभी के सामने हैं । उनकी अपनी ही जाति , उपजाति ्या वर्ग की जनता को समझ भी आ ग्या हैं कि किस तरह उनके हितों के नाम पर राजनीति की मलाई का सेवन परिवार के साथ मक्या जा रहा था । आगामी विधानसभा चुनाव का परिणाम प्देश में पुनः जाति , उपजाति , वर्ग और धर्म की राजनीति करने वालों को एक न्या सबक सिखाएगा , इसमें कोई संदेह नहीं है । �
iQjojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 15