तथा भारतीय संश्वधान की प्रतियां भी फूंकी थीं ।
्वो्टचों की खातिर कांग्ेस ने राम को ना्टक का का्पशनक पारि बता दिया और रामेश्वरम के समीप श्रीराम द्ारा बनाये गए सेतुबंध के अलसतत्व को ही नकार दिया । समरणीय है कि तमिलनाडु के दशक्ण-पूर्वी त्ट पर पंबन द्ीप और श्रीलंका के उत्तर-पलशचम त्ट पर मन्नार द्ीप के बीच श्रीराम के लंका श्वजय के समय
यह सेतु ( पुल ) बनाया गया था जो 1480 के भयंकर तूफान में बुरी तरह क्शतग्सत हो गया था । पुरातत्वश्वद् प्रो . माखनलाल , ओरेगन यूशन्वशस्थ्टी की प्राधयापक चे्सी रोस के अधययन
्व से्टेलाइ्ट फो्टो से शसधि हुआ है कि 40 कि . मी . का मार्ग ( पुल ) मान्व निर्मित है , प्राकृतिक सरंचना नहीं ।
यूपीए सरकार के हिससेदार डी . एम . के के प्रतिनिधि डी . राजा के परर्वहन जलयानचों को सीधा रासता देने के लिए इस सेतुबंध को तोडने की योजना बनाई चूंकि डी . राजा के जलयानचों को 80 किलोमी्टर घूम कर आना पडता था ।
2005 में नये सेतुसमुद्रम परियोजना का भारी श्वरोध हुआ और मामला मद्रास हाईको ्ट ्व सुप्रीम को ्ट पहुंच गया । कांग्ेस सरकार ने को ्ट में दलील दी कि ्वह पुल प्राकृतिक संरचना है ,
राम द्ारा निर्मित पुल नहीं है । भारतीय पुरातत्व श्वभाग से भी ऐसा ही हलफनामा दिलाया गया । इतना ही नहीं ततकालीन कांग्ेस सरकार के ्वकील कपिल सिबबल ने कहा कि राम का्पशनक पारि हैं तो सेतुबंध कैसे बन सकता है ? कोई भी इन कांग्ेशसयचों से पूछ सकता है कि जिनहें आप अपना बापू कहते हैं उनकी समाधि पर आपने हे राम क्यों लिख्वाया है ?
्वास्तव में नेताओं की स्वार्थपरता के लपे्टे में आकर कुछ तुच् मानसिकता के लोग श्रीराम पर अनर्गल प्रलाप करने लगते हैं । इलाहाबाद हाई को ्ट के नयायमूर्ति शेखर कुमार याद्व ने 9 अक्टूबर को आकाश जा्ट्व की जमानत की याचिका पर श्वचार करते समय जो श्टपपणी की है ्वह स्पूण्थ भारतीय समाज के लिये श्वचारणीय है । नयायमूर्ति श्री याद्व ने कहा- ' राम ्व कृषण के बिना भारत अधूरा है । कोई ईश्वर को माने या न माने , उसे लोगचों की आस्ा को चो्ट पहुंचाने का अधिकार नहीं है । अभिवयलकत की स्वतंरिता असीमित नहीं , प्रतिबंधित भी है । जिस देश में हम रहते हैं , उस देश के महापुरुषचों और संसकृशत का स्मान करना जरूरी है । हमारा संश्वधान बहुत उदार है किंतु मान्व खोपडी हाथ में लेकर घूमने की इजाजत नहीं दी जा सकती । हमारे संश्वधान में भी राम-सीता के शचरि अंकित है । मुसलमानचों में भी राम-कृषण के भकत रहे हैं । रसखान , अमीर खुसरो , आलम शेख , ्वाजिद अली शाह , नजीर बनारसी आदि राम-कृषण के भकत रहे हैं । राम-कृषण का अपमान पूरे देश का अपमान है ।'
जस्टिस याद्व की श्टपपणी काफ़ी श्वस्तृत है , यह तो सार-तत्व है । राम भारत की आतमा है । सेकयुलर्वाद या धर्मनिरपेक्ता के चककर में हम अपनी आतमा को खुद से पपृ्क नहीं कर सकते । राम का नाम कभी बिसारा नहीं जा सकता । राम का तारक मंरि कहता है-
' राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्नाम तत्तु्यं रामनाम ्वरानने ॥'
सच तो यह है कि श्वषणु सहस्नाम के 1000 पाठ से जो पुणय प्रापत होता है , ्वह पुणय राम नाम के एक उच्ारण से प्रापत हो जाता है । �
iQjojh 2023 27