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प्रमाणित और बेहद सं्वेदनशील तथ्यों के आलोक में मधयकाल का श्वशलेषण होना चाहिए । मधयकाल की काली राशरि हिनदुओं के लिए बेहद दुखदायी थी तो यह सपष्ट करना ही होगा कि हमारे महान इतिहासकारचों की दपृलस्ट में मधयकाल हिनदुस्ान के लिए स्वर्णिम काल कैसे हो सकता है ? ----कैसे--- ?
डॉ शासरिी के अनुसार हिनदुस्ान के इतिहास का मूल श्रोत या तो समय-समय पर हिनदुस्ान के बारे में जानकारी ए्वं पय्थ्टन की दपृलष्ट से आये श्वदेशी यारिी के संसमरणचों पर या मधयकाल के श्वदेशी तुर्क , मुलसलम या मुग़ल आक्ांता शासकचों की चा्टुकारिता में लिखे गए प्रिलसतपरि पर आधारित है । चा्टुकारिता ए्वं प्रिलसतगान करने ्वाले चा्टुकारचों ने तो अपने अपने न्वाबचों ए्वं बादशाहचों का इतिहास बढ़ा-चढ़ा कर लिखा ही था किंतु हिनदुस्ान के इतिहास लेखन के स्बनध में श्वदेशी याशरियचों के संसमरण पर पूरा भरोसा किया जा सकता है । ऐसे में हिनदुओं की प्रताड़ना ए्वं मधयकाल की सामाजिक , आर्थिक ए्वं प्रशासनिक व्यवस्ा की क्पना की जा सकती है । मधयकाल में हिनदू उतपीडन पराकाषठा पर था । उनमें भी प्रारंभिक यानी आक्मण काल में आक्ोि ए्वं िरिुता के कारण श्वदेशी आक्ांताओं का प्रचंड उतपीडन , स्वाभिमानी , धर्माभिमानी ए्वं योधिा हिनदुओं को सदै्वसहना पड़ा । युधि में बंदी बनाये गए लोगचों के स्मान , स्वाभिमान ए्वं
धर्माभिमान के साथ खिल्वाड़ हुआ । जो हिनदू कमजोर थे ए्वं प्रचंड उतपीडन और अतयाचार के समक् घु्टने ्टेक दिए थे , ्वह धर्म बदलकर मुसलमान बन गए , किनतु कट्र , स्वाभिमानी ए्वं धर्माभिमानी हिनदुओं ने अस्वच् कर्म करना स्वीकार किया , लेकिन हिनदू धर्म को तयागने से इंकार कर दिया ।
डॉ शासरिी ने बताया कि हिनदू समाज में ्वैदिक काल से लेकर मधयकाल के पहले तक स्ायी रूप से अस्पृशयता कभी नहीं थी । डॉ आंबेडकर ने ‘ अछूत कौन और कैसे ?’ पपृषठ 49 ए्वं 50 पर लिखा है कि- “ ब्ाह्मण , क्शरिय , ्वैशय और शूद्र सभी दास होते थे । दास प्रथा अनुलोम क्म से था । ्वैसे भी महाभारत का ्वह प्रकरण जिसमें भग्वान श्री कृषण स्वयं अतिथियचों के भोजन के उपरांत उनके जूठे पत्तल उठाये थे । हिनदू लोक जी्वन में अस्ायी अस्पृशयता का पाया जाना अतयंत साधारण बात है , किनतु स्ायी अस्पृशयता तो अनतयज ए्वं शूद्रचों के साथ भी नहीं था । कोई वयलकत स्ायी रूप से अस्पृशय नहीं हो सकता है । जब तक कोई वयलकत या समूह किसी कार्य या पररलस्शत श्विेष में होता है , तभी तक उसे अस्पृशय माना जाता हैI शौचादि के समय वयलकत के साथ अस्पृशयता की लस्शत प्रायः प्रतिदिन होती है किनतु स्ानादि के उपरानत ्वह अस्पृशयता से मुकत हो जाता है । सूतक काल में स्पूण्थ परर्वार ही दस दिनचों तक अस्पृशय रहता है । इसी प्रकार
लसरियां अपने मासिक धर्म काल में अस्पृशय मानय हैं , किनतु एक शनलशचत समया्वशध ए्वं उसके उपरांत ्वह धर्मादि अनुषठान इतयाशद में सामानय रूप से भागीदारी करती है ।
डॉ शासरिी के अनुसार यदि मधयकाल में हिनदुओं के वयापक ए्वं प्रचंड उतपीडन की घ्टना नहीं हुई होती तो कम से कम ्वत्थमान भारतीय उपमहाद्ीप के देिचों में मुलसलम ्वग्थ , अनुसूचित जाति ए्वं अनुसूचित जनजाति की उतपशत्त तो नहीं ही होती । जिस प्रकार स्वाभिमानी हिनदुओं को दबाकर ए्वं कुचलकर मधयकाल में उनका दमन और दलन के उपरांत बलपू्व्थक अस्वच् कायभों में लगाकर उनहें अस्पृशय ए्वं दलित की पहचान दी गयी , उसी प्रकार ्वत्थमान मुसलमान भी ठीक इसी पररलस्शत में बलपू्व्थक श्वदेशी मुलसलम आक्ांता शासकचों के तल्वार की नचोंक पर हिनदुओं का धर्मानतरण करके बनाये गए । आज भी मुसलमानचों की छठी ए्वं सात्वीं पीढ़ी का प्रमाणित तथय हिनदू पू्व्थजचों के रूप में प्रापत होता हैI यह पूर्ण प्रमाणित और ्वास्तव में स्व्थश्वशदत है कि ्वत्थमान स्पूण्थ दलित ्वग्थ यानी दलित ए्वं जनजातीय समाज प्राचीन काल के स्वाभिमानी हिनदू योधिा ए्वं योधिा जातियचों के सामाजिक रूप से परर्वशत्थत ्वंशज है । भारत , नेपाल तथा अनयानय भारतीय उपमहाद्ीपीय देिचों की ्वास्तविकता से अनभिज्ञ किनतु एक क्टु सतय के आधार पर लगभग सभी दलित जातियां अपने को क्शरिय या राजपूत या ऐसी अनय योधिा प्रजातियचों से अपनी उतपशत्त का प्रमाण देती है । लेकिन इस सनदभ्थ में स्व्थदा प्रमाणिकता ए्वं तथय पूर्ण ठोस शोध कायभों का अभा्व रहा है ।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक क्ेरि में कुछ लोगचों ने “ दलित ” शबद पर आपत्ति जताते हुए कहा करते है कि जिस प्रकार राषट्रपिता महातमा गांधी द्ारा दिया गया नाम " हरिजन " का भा्व दलितचों को आघात पहुंचता है , इस प्रकार दलित शबद का भी भा्व है । ्वास्तव में ऐसी बातें करने ्वालचों के पास दलित समाज की उतपशत्त के सतयाशपत ए्वं प्रमाणित तथ्यों की जानकारी का अभा्व ही रहा । “ दलित ” शबद तो संघर्ष ए्वं ्वीरता का एक पर्याय हैI ्वत्थमान में यदि “ दलित ” जातियचों के
16 iQjojh 2023